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पलायन आयोग ही कर गया 'पलायन', अधिकांश पहल को सरकार ने कूड़ेदान में डाला: हरीश रावत

पूर्व सीएम और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने अल्मोड़ा से हो रहे पलायन को लेकर त्रिवेंद्र सरकार को आढ़े हाथ लिया है. हरदा ने कहा कि पलायन आयोग खुद पौड़ी से देहरादून पलायन कर गया है. ऐसे में पलायन पर कैसे लगाम लगेगा. उनके कार्यकाल में संचालित पहलुओं को त्रिवेंद्र सरकार ने ठंड़े बस्ते में डालने का काम किया है.

पलायन को लेकर हरदा ने त्रिवेंद्र सरकार साधा जमकर निशाना
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Published : Jun 18, 2019, 9:01 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में पलायन सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. पर्वतीय जिलों से मूलभूत सुविधा समेत अन्य कारणों से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. आलम ये है कि आज कई गांव खाली हो गए हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट की मानें तो अकेले अल्मोड़ा जिले में 10 सालों में करीब 70 हजार लोग अपने पैतृक गांव को छोड़कर पलायन कर चुके हैं. जो बेहद चिंता का विषय बना हुआ है. उधर, अल्मोड़ा और पौड़ी जिले से लगातार हो रहे पलायन को लेकर पूर्व सीएम और कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने चिंता जाहिर करते हुए त्रिवेंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा है.

गौर हो कि पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है साल 2001 से 2011 तक यानि इन 10 सालों में अल्मोड़ा जिले से करीब 70 हजार लोगों ने पलायन किया है. रिपोर्ट के अनुसार बीते दस सालों में सल्ट, भिकियासैंण, चौखुटिया, स्याल्दे विकासखंड से सबसे ज्यादा लोगों ने पलायन किया है. इन ब्लाकों के कई गांवों में सड़क, पेयजल, बिजली, स्वास्थ्य और आजीविका के साधन नहीं हैं, जिससे लोग जिला मुख्यालय और प्रदेश के अन्य शहरी क्षेत्रों में जाकर बस गए हैं. साल 2001 से 2011 तक जिले के 1022 ग्राम पंचायतों में 53611 लोगों ने पूरी तरीके से पलायन नहीं किया है. ये लोग समय-समय पर अपने पैतृक गांव आते हैं. जबकि 646 पंचायतों में 16207 लोगों ने स्थायी रूप से पलायन किया है.

पलायन को लेकर हरीश रावत ने त्रिवेंद्र सरकार पर जमकर साधा निशाना.

अब इस मामले में पूर्व सीएम और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. हरदा का कहना है कि उनके कार्यकाल के दौरान पलायन को रोकने के लिए विशेष प्रयास किए गए थे, लेकिन उन्हें ज्यादा समय नहीं मिल पाया था. ऐसे में वो उन पहलों को क्रियान्वित नहीं कर सके थे. साथ ही कहा कि वर्तमान त्रिवेंद्र सरकार ने अधिकांश पहलुओं को कूड़ेदान में डाल दिया है.

ये भी पढ़ेंः अल्मोड़ा जिले में पलायन को लेकर आयोग ने जारी की रिपोर्ट, चौंकाने वाले आंकड़े आए सामने

वहीं, अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में हो रहे पलायन पर चिंता जताते हुए हरदा ने कहा कि दोनों जिलों में पलायन की गंभीर स्थिति बनी हुई है. साथ ही सरकार को आढ़े हाथ लेते हुए कहा कि जब पलायन आयोग ही पौड़ी से देहरादून पलायन कर गया है, तो ऐसे में पलायन कैसे रुकेगा. उत्तराखंड की जनता पलायन के कारणों को जानती है. उनके कार्यकाल में पलायन रोकने के लिए करीब 3500 योजनाएं प्रारंभ की गईं थी. जो पलायन रोकने की दिशा में काफी मददगार साबित हो रहीं थी. लेकिन बीजेपी सरकार में सारी योजनाएं गायब हो गई है.

हरदा ने कहा कि साल 2015-16 में उत्तराखंड के भीतर मंडुवा, चौलाई समेत पारंपरिक अनाजों के बुआई का क्षेत्र बढ़ा था. जो पर्वतीय जिलों में पहली बार हुआ था, लेकिन अब इसका ग्राफ लगातार गिर रहा है. साथ ही कहा कि 2015 से 2017 तक बेरोजगारी की वृद्धि दर में गिरावट देखने को मिली थी. ऐसे में साफतौर पर लग रहा था कि उनकी सरकार सही दिशा की ओर बढ़ रही है, लेकिन वर्तमान सरकार ने अधिकांश पहलुओं को ठंड़े बस्ते में डाल दिया है. कुछ पहलुओं को उनकी बैकिंग नहीं मिल पा रही है, जबकि अभी तक कुछ ही पहल जिंदा हैं.

देहरादूनः उत्तराखंड में पलायन सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. पर्वतीय जिलों से मूलभूत सुविधा समेत अन्य कारणों से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. आलम ये है कि आज कई गांव खाली हो गए हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट की मानें तो अकेले अल्मोड़ा जिले में 10 सालों में करीब 70 हजार लोग अपने पैतृक गांव को छोड़कर पलायन कर चुके हैं. जो बेहद चिंता का विषय बना हुआ है. उधर, अल्मोड़ा और पौड़ी जिले से लगातार हो रहे पलायन को लेकर पूर्व सीएम और कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने चिंता जाहिर करते हुए त्रिवेंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा है.

गौर हो कि पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है साल 2001 से 2011 तक यानि इन 10 सालों में अल्मोड़ा जिले से करीब 70 हजार लोगों ने पलायन किया है. रिपोर्ट के अनुसार बीते दस सालों में सल्ट, भिकियासैंण, चौखुटिया, स्याल्दे विकासखंड से सबसे ज्यादा लोगों ने पलायन किया है. इन ब्लाकों के कई गांवों में सड़क, पेयजल, बिजली, स्वास्थ्य और आजीविका के साधन नहीं हैं, जिससे लोग जिला मुख्यालय और प्रदेश के अन्य शहरी क्षेत्रों में जाकर बस गए हैं. साल 2001 से 2011 तक जिले के 1022 ग्राम पंचायतों में 53611 लोगों ने पूरी तरीके से पलायन नहीं किया है. ये लोग समय-समय पर अपने पैतृक गांव आते हैं. जबकि 646 पंचायतों में 16207 लोगों ने स्थायी रूप से पलायन किया है.

पलायन को लेकर हरीश रावत ने त्रिवेंद्र सरकार पर जमकर साधा निशाना.

अब इस मामले में पूर्व सीएम और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. हरदा का कहना है कि उनके कार्यकाल के दौरान पलायन को रोकने के लिए विशेष प्रयास किए गए थे, लेकिन उन्हें ज्यादा समय नहीं मिल पाया था. ऐसे में वो उन पहलों को क्रियान्वित नहीं कर सके थे. साथ ही कहा कि वर्तमान त्रिवेंद्र सरकार ने अधिकांश पहलुओं को कूड़ेदान में डाल दिया है.

ये भी पढ़ेंः अल्मोड़ा जिले में पलायन को लेकर आयोग ने जारी की रिपोर्ट, चौंकाने वाले आंकड़े आए सामने

वहीं, अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में हो रहे पलायन पर चिंता जताते हुए हरदा ने कहा कि दोनों जिलों में पलायन की गंभीर स्थिति बनी हुई है. साथ ही सरकार को आढ़े हाथ लेते हुए कहा कि जब पलायन आयोग ही पौड़ी से देहरादून पलायन कर गया है, तो ऐसे में पलायन कैसे रुकेगा. उत्तराखंड की जनता पलायन के कारणों को जानती है. उनके कार्यकाल में पलायन रोकने के लिए करीब 3500 योजनाएं प्रारंभ की गईं थी. जो पलायन रोकने की दिशा में काफी मददगार साबित हो रहीं थी. लेकिन बीजेपी सरकार में सारी योजनाएं गायब हो गई है.

हरदा ने कहा कि साल 2015-16 में उत्तराखंड के भीतर मंडुवा, चौलाई समेत पारंपरिक अनाजों के बुआई का क्षेत्र बढ़ा था. जो पर्वतीय जिलों में पहली बार हुआ था, लेकिन अब इसका ग्राफ लगातार गिर रहा है. साथ ही कहा कि 2015 से 2017 तक बेरोजगारी की वृद्धि दर में गिरावट देखने को मिली थी. ऐसे में साफतौर पर लग रहा था कि उनकी सरकार सही दिशा की ओर बढ़ रही है, लेकिन वर्तमान सरकार ने अधिकांश पहलुओं को ठंड़े बस्ते में डाल दिया है. कुछ पहलुओं को उनकी बैकिंग नहीं मिल पा रही है, जबकि अभी तक कुछ ही पहल जिंदा हैं.

Intro: राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड में हो रहा पलायन चिंता का विषय है, प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव से लोग पलायन कर रहे हैं वर्तमान में पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अल्मोड़ा जनपद में वर्ष 2001 से 2011 तक इन 10 सालों में करीब सत्तर हजार लोग अपने पैतृक गांव को छोड़कर पलायन कर गए, वहीं पूर्व सीएम और कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने अल्मोड़ा और पौड़ी में हो रहे पलायन पर चिंता जाहिर करते हुए त्रिवेन्द्र सरकार पर निशाना साधा है।
summary- पूर्व सीएम और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने इस मसले पर त्रिवेंद्र सरकार को घेरते हुए कहा कि पलायन आयोग जब पौड़ी की बजाए देहरादून पलायन कर गया हो तो इन जिलों की स्थिति बखूबी समझी जा सकती है।


Body: अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में हो रहे पलायन पर चिंता जताते हुए पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि दोनों जिलों में पलायन की गंभीर स्थिति बनी हुई है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि जब पलायन आयोग ही पौड़ी से देहरादून पलायन कर गया हो तो इन जिलों की स्थिति क्या होगी ।पलायन के विषय में हर उत्तराखंडी जानता है कि इसके क्या कारण हो सकते हैं, उनके कार्यकाल में पलायन रोकने के लिए 35 सौ के करीब योजनाएं प्रारंभ हुई थी जो पलायन रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण थी। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हे क्रियान्वित करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाया कि कोई बड़ा असर पैदा किया जा सके। मगर उदाहरण के तौर पर 2015- 16 में उत्तराखंड के भीतर मंडवा, चौलाई और बुआई का क्षेत्र बढ़ा था जो कि पर्वतीय जनपदों मे पहली बार हुआ था और जिसका ग्राफ लगातार गिर रहा था। 2015 से 2017 तक बेरोजगारी की वृद्धि दर मे बेहद गिरावट देखने को मिली। यह कुछ संकेत ऐसे थे जिससे लगता था कि हम सही दिशा की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन वर्तमान सरकार ने अधिकांश पहलुओं को कूड़ेदान में डाल दिया है और कुछ को उनकी बैकिंग नहीं मिल पा रही है ,जबकि कुछ ही पहल अभी तक जिंदा है।

बाईट-हरीश रावत,पूर्व सीएम,कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव


Conclusion: गौरतलब है कि पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है 2001 से 2011 तक अल्मोड़ा जिले से करीब 70 हजार लोगों ने पलायन किया है। ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों से पूरे पलायन को रोकने के लिए आयोग की ओर से सरकार को सुझाव भी दिए जा चुके हैं ऐसे में पूर्व सीएम और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत का कहना है कि उनके कार्यकाल के दौरान पलायन को रोकने के लिए विशेष प्रयास किए गए थे लेकिन उनको इतना समय नहीं मिल पाया कि वो उन पहलो को क्रियान्वित करा सकें, जबकि वर्तमान सरकार ने अधिकांश तब पहलुओं को कूड़ेदान में डाल दिया है।
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