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यहां होली में वीरान रहती हैं सड़कें, 100 साल से नहीं मनाया गया रंगों का पर्व

बैतूल के डहुआ गांव में पिछले 100 सालों से ग्रामीणों ने होली नहीं मनाई हैं. वहीं जब भी यहां होली मनाने की कोशिश की गई है, कोई न कोई जनहानि हुई है. जानें पिछले 100 सालों से होली से क्यों वंचित है ये गांव इस स्पेशल रिपोर्ट में.

celebrating holi
100 साल से नहीं मना रहे होली
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Published : Mar 7, 2020, 7:27 AM IST

बैतूल (मप्र): रंगों का पर्व होली दस्तक दे चुका है. देश के काेने-कोने में होली की अमिट धूम रहती है. क्या बूढ़े, क्या बच्चे सभी होली के खुमार में डूबे रहते हैं. होली के मदहोश कर देने वालों फागों से पूरा वातावरण महक उठता है. हवा में उड़ते रंग-बिरंगे गुलाल, जोर-शोरों से डीजे में बजते गाने, भांग की मस्ती में मग्न लोग, शोरगुल कर पिचकारियों से खेलते बच्चे और गुझिया-पकवानों का आनंद लेते बुजुर्ग. कुछ ऐसा ही देश भर में माहौल होता है होली के दिन.

100 साल से नहीं मना रहे होली

लेकिन पूरा देश जब गुलाल के रंग और भांग की मस्ती में मग्न रहता है, तब बैतूल के डहुआ गांव में सन्नाटा पसरा रहता है. डहुआ गांव एक ऐसा गांव हैं जहां पिछले 100 सालों से ग्रामीणों ने होली हीं नहीं खेली है. वहीं जब कभी ग्रामीणों ने होली खेलने की कोशिश भी की तो किसी न किसी अनहोनी ने आकर रोड़ा डाल ही दिया.

डहुआ गांव के ग्रामीण बताते हैं कि 100 साल पहले गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली के दिन रंग गुलाल खेलते वक्त गांव की ही एक बावड़ी में डूबने से मौत हो गई थी, जिसके बाद एक-दो साल तक तो होली नहीं मनाई गई, लेकिन जैसे एक बार होली मनाने की कोशिश की गई तो गांव के ही एक परिवार में फिर किसी का देहांत हो गया.

ये भी पढ़ें: बजट सत्रः जिला विकास प्राधिकरण पर सियासत, सदन में विपक्ष का हंगामा

गांव में बहू बनकर आईं महिलाएं भी बुजुर्गों की इस परंपरा को निभा रही हैं. महिलाओं का कहना है कि उनके मायके में रंग-गुलाल से होली मनाते है और खेलते आ रही हैं, लेकिन ससुराल में जबसे शादी हुई है उन्होंने होली नहीं मनाई है. वहीं जब होली न मनाने का कारण सुना तो इस माहौल में खुद ही ढल गईं.

भले ही इस गांव में 100 सालों से होली के दिन होली नहीं मनाई गई हो लेकिन रंग पंचमी पर ग्रामीण पूरे हर्षोल्लास के साथ रंग का यह पर्व मनाते हैं.

बैतूल (मप्र): रंगों का पर्व होली दस्तक दे चुका है. देश के काेने-कोने में होली की अमिट धूम रहती है. क्या बूढ़े, क्या बच्चे सभी होली के खुमार में डूबे रहते हैं. होली के मदहोश कर देने वालों फागों से पूरा वातावरण महक उठता है. हवा में उड़ते रंग-बिरंगे गुलाल, जोर-शोरों से डीजे में बजते गाने, भांग की मस्ती में मग्न लोग, शोरगुल कर पिचकारियों से खेलते बच्चे और गुझिया-पकवानों का आनंद लेते बुजुर्ग. कुछ ऐसा ही देश भर में माहौल होता है होली के दिन.

100 साल से नहीं मना रहे होली

लेकिन पूरा देश जब गुलाल के रंग और भांग की मस्ती में मग्न रहता है, तब बैतूल के डहुआ गांव में सन्नाटा पसरा रहता है. डहुआ गांव एक ऐसा गांव हैं जहां पिछले 100 सालों से ग्रामीणों ने होली हीं नहीं खेली है. वहीं जब कभी ग्रामीणों ने होली खेलने की कोशिश भी की तो किसी न किसी अनहोनी ने आकर रोड़ा डाल ही दिया.

डहुआ गांव के ग्रामीण बताते हैं कि 100 साल पहले गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली के दिन रंग गुलाल खेलते वक्त गांव की ही एक बावड़ी में डूबने से मौत हो गई थी, जिसके बाद एक-दो साल तक तो होली नहीं मनाई गई, लेकिन जैसे एक बार होली मनाने की कोशिश की गई तो गांव के ही एक परिवार में फिर किसी का देहांत हो गया.

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गांव में बहू बनकर आईं महिलाएं भी बुजुर्गों की इस परंपरा को निभा रही हैं. महिलाओं का कहना है कि उनके मायके में रंग-गुलाल से होली मनाते है और खेलते आ रही हैं, लेकिन ससुराल में जबसे शादी हुई है उन्होंने होली नहीं मनाई है. वहीं जब होली न मनाने का कारण सुना तो इस माहौल में खुद ही ढल गईं.

भले ही इस गांव में 100 सालों से होली के दिन होली नहीं मनाई गई हो लेकिन रंग पंचमी पर ग्रामीण पूरे हर्षोल्लास के साथ रंग का यह पर्व मनाते हैं.

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