देहरादून: प्रदेश के पर्यटन एवं लोक निर्माण मंत्री सतपाल महाराज ने नई सरकार में मंत्रियों के उच्च अधिकारियों की एसीआर लिखने का जो मुद्दा उठाया, उसकी तपिश थमने का नाम नहीं ले रही है. वहीं बीते दिन पंचायती राज मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि अब ब्लॉक प्रमुख अपने खंड विकास अधिकारी की एसीआर लिख सकेंगे. वहीं, इन सभी फैसलों की जानकारी पंचायती राज मंत्री ने एक कार्यशाला के दौरान दी. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गोपनीय रिपोर्ट के मामले में सतपाल महाराज को निशाने पर लिया है.
एसीआर पर सियासत: उत्तराखंड में बेलगाम नौकरशाही को लेकर अक्सर आवाज उठती रहती है. दरअसल, पिछली सरकार में मंत्रियों और अधिकारियों के बीच टकराव की स्थित बनी रही. तभी से इस मुद्दे को भी हवा मिलने लगी थी और ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाए जाने की मांग उठने लगी थी. वहीं बीते दिन पंचायती राज मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि अब ब्लॉक प्रमुख अब अपने खंड विकास अधिकारी की एसीआर लिख सकेंगे.
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हरीश रावत ने साधा निशाना: जिसके बाद पूर्व सीएम हरीश रावत ने ट्वीट कर लिखा कि वाह महाराज, आपने तो वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट बीडीओ की लिखने का आदेश ही जारी कर दिया. वर्तमान सरकार के मंत्रियों की प्राथमिकता अधिकारियों की एसीआर (एनुअल कॉन्फिडेंस रिपोर्ट) लिखना है और जैसे ही यह अधिकार मंत्रीगणों को मिलेगा और भाजपा के सभी निर्वाचित व गैर निर्वाचित प्रतिनिधियों को मिलेगा कि वो प्रशासन तंत्र की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट लिख सकें, तो लगता है राज्य की सारी समस्याओं का समाधान निकल आएगा. यह आग भी बुझ जाएगी जो जंगलों को खाक कर रही है, कई इलाकों में जो पानी की समस्या अभी अप्रैल में खड़ी हो गई है.
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समस्याओं के बहाने घेरा: उस समस्या का भी समाधान निकल आएगा, स्कूलों में अध्यापक भी पहुंच जाएंगे, हॉस्पिटल्स में डॉक्टर्स भी पहुंच जाएंगे, जो सड़कें खराब हैं वो सड़कें भी ठीक हो जाएंगी, महंगाई और बेरोजगारी के समाधान का रास्ता भी यहीं से निकलेगा. देखते हैं यदि सब लोगों की एक ही दवा है, तो हम भी कहेंगे कि जय एसीआर
जानिए सतपाल महाराज की मांग: कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने एक बार फिर से विभागीय सचिव की एसीआर मंत्रियों द्वारा लिखे जाने की मांग की है. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज (Cabinet Minister Satpal Maharaj) का कहना है कि उन्होंने यह विषय कैबिनेट के सामने भी उठाया था. महाराज का कहना है कि अन्य मंत्रियों को भी यह विषय सरकार के सामने लाना चाहिए. उनका मानना है कि इससे एक अनुशासन आएगा. उनका कहना है कि अन्य राज्यों में इस तरह की व्यवस्था है. लेकिन उत्तराखंड में भी एनडी तिवारी सरकार के समय ये व्यवस्था थी, जिसे बाद में बंद कर दिया गया.