देहरादूनः सीएम तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव लड़ने पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि संवैधानिक नियमों के मुताबिक प्रदेश में अब उपचुनाव नहीं हो सकते हैं. लेकिन चुनाव आयोग अगर सरकार के रहमों करम पर रहा तो कुछ भी हो सकता है.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने राज्य में पैदा हुए संविधानिक संकट पर कहा कि प्रदेश में अगर उपचुनाव होता है, तो कांग्रेस उसे पूरी मजबूती से लड़ेगी. लेकिन जो नियम और संवैधानिक स्थिति है उसमें यह स्पष्ट है कि किसी राज्य में यदि विधानसभा के आम चुनाव की अवधि 1 साल से कम रहती है तो उन परिस्थितियों में कोई उपचुनाव नहीं हो सकता है.
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प्रीतम सिंह ने कहा कि हालांकि आखिर में निर्णय चुनाव आयोग को लेना है. अगर चुनाव आयोग संवैधानिक व्यवस्थाओं को देखते हुए निर्णय लेता है तो निश्चित रूप से एक संवैधानिक स्थितियां पैदा होंगी. किंतु केंद्र और राज्य सरकार के अनुरूप निर्णय लेगा तो स्थितियां दूसरी हो जाएंगी.
इस दौरान प्रीतम सिंह ने चुनाव आयोग को निशाने में लेते हुए कहा कि वैसे तो चुनाव आयोग का कोई विवेक नहीं है. क्योंकि वह सरकार के रहमों करम पर है. जैसा निर्देश सरकार से मिलता है चुनाव आयोग वैसा ही काम करता है.
क्या कहते हैं जानकार?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151(क) के अन्तर्गत भारत निर्वाचन आयोग को राज्य सभा, लोक सभा और राज्यों की विधानसभाओं की किसी भी सीट के खाली होने पर 6 माह की अवधि के अंदर उपचुनाव कराने होते हैं. लेकिन इसी धारा की उपधारा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि, परन्तु इस धारा की कोई बात उस दशा में लागू नहीं होगी, जिसमें (अ) किसी रिक्ति से सम्बंधित सदस्य की पदावधि का शेष भाग एक वर्ष से कम है या (ब) निर्वाचन आयोग केन्द्रीय सरकार से परामर्श करके, यह प्रमाणित करता है कि उक्त अवधि के भीतर ऐसा उप निर्वाचन करना कठिन है. यह प्रमाणित करता है कि उक्त अवधि के भीतर ऐसा उप निर्वाचन करना कठिन है.
6 महीन के अंदर लेनी होती है विधानसभा की सदस्यता
संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के प्रावधानों का लाभ उठाते हुए तीरथ सिंह रावत बिना विधानसभा सदस्यता के ही मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 164 (4) की उपधारा में यह प्रावधान है कि मुख्यमंत्री बनने के 6 महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी. यानी 6 महीने के भीतर उपचुनाव जीतना होगा तभी वह मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे. अगर वह 6 महीने के भीतर विधायिका की सदस्यता ग्रहण नहीं कर पाते हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा. हालांकि, इसी तरह का प्रावधान केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए भी है जिसके लिए संविधान के अनुच्छेद 75 (5) में इसका प्रावधान किया गया है.