देहरादून: हाल ही में टिहरी झील में फ्लोटिंग हट्स से गंदे पानी को सीधे गंगा नदी में डाले जाने वाले वीडियो के सामने आने के बाद गंगा को साफ रखने के मकसद से शुरू की गई नमामि गंगे योजना पर सवाल उठने लगे हैं. हालांकि ईटीवी भारत में खबर प्रकाशित होने के बाद संबंधित विभाग के अधिकारी हरकत में आए हैं. बता दें कि जून 2014 में नमामि गंगे योजना की शुरुआत की गई थी, जिसका मकसद था कि जीवनदायिनी मां गंगा और उसकी सहायक नदियों को साफ रखा जाए. आइए जानते हैं उत्तराखंड में गंगा को साफ रखने के लिए अब तक नमामि गंगे योजना के तहत क्या-क्या कार्य किए गए हैं.
उत्तराखंड में सैकड़ों छोटी-बड़ी नदियां मिलकर भागीरथी और अलकनंदा में मिलती है और ये दोनों नदियां देवप्रयाग संगम में मिलने के बाद गंगा बन जाती हैं. देश में गंगा एवं उत्तराखंड से निकलने वाली नदियों का विशेष महत्व है, क्योंकि देवभूमि से निकलने वाली हर नदी या तो गंगा में या फिर यमुना में जाकर मिलती हैं. प्रदेश की लाइफ लाइन कही जाने वाली इन नदियों को साफ रखने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2014 में बेहद बड़े स्तर पर नमामि गंगे योजना की शुरुआत की थी, जिसमें खास तौर से सबसे अधिक धार्मिक महत्व रखने वाली गंगा नदी में बढ़ रही गंदगी को लेकर कई अभियान और प्रोजेक्ट चलाए गए. उत्तराखंड में भी गंगा नदी को साफ व पीने योग्य बनाए रखने के लिए कई प्रयास शुरू किये गए.
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बनाए गये सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट: उत्तराखंड में गंगा नदी को साफ रखने के लिए सबसे पहले नदी में सीधे जा रहे सीवरेज के गंदे नालों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई गई और यह प्रावधान किया गया कि इन नालों से निकलने वाले पानी को पहले ट्रीट किया जाएगा, उसके बाद ही नदी में छोड़ा जाएगा. इसी के चलते उत्तराखंड में गंगा नदी के किनारे नमामि गंगे योजना के तहत 1219 करोड़ के 22 बड़े STP प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं. इन प्रोजेक्टर्स में कीर्तिनगर, श्रीनगर, नंदप्रयाग, हरिद्वार, मुनी की रेती, ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, जोशीमठ, बदरीनाथ, श्रीकोट, रामनगर, देहरादून जैसे शहरों में एसटीपी (सीवरेज ट्रांसफर प्लान) प्रस्तावित है.
इसमें से 19 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं. पूरे हुए प्रोजेक्ट में हरिद्वार में 3, कीर्तिनगर, श्रीनगर, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग बदरीनाथ, रुद्रप्रयाग, मुनी की रेती, श्रीकोट, गोपेश्वर और रामनगर के ट्रीटमेंट प्लांट का काम पूरा हो चुका है. वहीं तपोवन, स्वर्गाश्रम, ज्ञानसू, श्रीनगर और हरिद्वार में एक ट्रीटमेंट प्लांट का उच्चीकरण भी किया गया है. जल्द ही ऋषिकेश, जोशीमठ और देहरादून में रिस्पना और बिंदाल नदी के लिए बनाए जा रहे ट्रीटमेंट प्लांट का काम भी पूरा होना है और फरवरी 2030 तक उधम सिंह नगर के प्लांट का काम पूरा होना है.
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नमामि गंगे योजना के तहत गंगा और उसकी सहायक नदियों के तमाम घाटों की साफ-सफाई और घाटों को व्यवस्थित रखने के लिए घाट विकास की 295 करोड़ की योजनाएं भी चलाई जा रही हैं. इस योजना के तहत हरिद्वार चंडी घाट में रिवरफ्रंट योजना के अलावा 29 स्नान घाट और 26 मोक्ष घाट बनाए गए हैं. टिहरी में पांच, उत्तरकाशी में 12, रुद्रप्रयाग में 7, चमोली में 11, पौड़ी में 11, उधम सिंह नगर में दो और हरिद्वार में 10 स्नान और मोक्ष घाट बनाए गए हैं.
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टिहरी झील में डाला जा रहा था सीवरेज: हाल ही में भागीरथी नदी जिसे सामान्यत: उत्तराखंड में मुख्य रूप से गंगा नदी का हिस्सा ही कहा जाता है. इस पर बने टिहरी झील पर मौजूद फ्लोटिंग हट्स के बाथरूम से निकल रहे सीवरेज का गंदे पानी सीधे गंगा में डाले जाने का वीडियो वायरल हुआ था. टिहरी झील में बने इन फ्लोटिंग हट्स का संचालन ली रॉय होटल कर रहा है. इस वीडियो पर खूब बवाल मचा और जीवनदायिनी मां गंगा की स्वच्छता को लेकर के सवाल किए जाने लगे, क्योंकि इसी नदी पर आगे जाकर ऋषिकेश-हरिद्वार में देशभर से लोग आचमन के लिए आते हैं.
इस प्रकरण के बाद तमाम तथ्यों पर सवाल किए जाने लगे कि गंगा नदी के नाम पर चलाए जा रहे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स और अभियानों का क्या फायदा, जब इस तरह से खुलेआम मां गंगा में गंदगी को उड़ेला जा रहा है, जिसके बाद स्थानीय प्रशासन ने इसका संज्ञान लिया था.
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड पूरे राज्य में चला रहा अभियान: टिहरी झील में हुई इस घटना के बाद तमाम राज्य स्तरीय एजंसियां सक्रिय हुई हैं. वहीं, नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अपर स्टेप सचिव उदयराज सिंह ने बताया कि इस घटना के तुरंत बाद उन्होंने जिले की गंगा समिति को एक पत्र लिखा था, जिसके अध्यक्ष जिलाधिकारी होते हैं. नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर ने पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को भी इस घटना के संबंधित पत्र भेजा है, जिस पर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड न केवल टिहरी झील बल्कि पूरे प्रदेश भर में इस तरह के तमाम रिजॉर्ट्स और होटलों की जांच करेगा जहां पर सीवरेज को इस तरह से सीधे नदियों में डाला जा रहा है.