देहरादून: साल 2009 में उत्तराखंड विधानसभा घेराव मामले में सोमवार को देहरादून कोर्ट में सुनवाई हुई. इस मामले में कांग्रेस के पूर्व कैबिनेट मंत्री, विधायक और मौजूदा बीजेपी सरकार के मंत्रियों पर आरोप तय (चार्ज फ्रेम) हो गए. इस दौरान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और कांग्रेस महानगर अध्यक्ष लाल चंद शर्मा कोर्ट में पेश हुए. मामले की अगली सुनवाई 27 जून को होगी.
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बता दें कि 21 दिसंबर 2009 को तत्कालीन बीजेपी सरकार के खिलाफ कई कांग्रेसी नेता सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव करने जा रहे थे. इस दौरान पुलिस ने सभी कांग्रेसी नेताओं को रिस्पना पुल के पास रोक दिया था. आरोप है कि इस दौरान कांग्रेसी नेताओं ने पुलिस के साथ धक्का-मुक्की और मारपीट की थी. इसके अलावा पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़कर वहां जमकर हंगामा भी किया था. इस मामले में कांग्रेस के करीब 24 लोगों के खिलाफ नेहरू कॉलोनी थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था.
इन कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ हुआ था मुकदमा दर्ज
पुलिस ने इस मामले में पूर्व कांग्रेस नेता (मौजूदा बीजेपी सरकार में मंत्री) हरक सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, पूर्व कांग्रेसी विधायक (मौजूदा बीजेपी सरकार में मंत्री) सुबोध उनियाल, पूर्व कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, विधायक हीरा सिंह बिष्ट, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा, तत्कालीन कांग्रेस विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, कांग्रेस नेता लालचंद शर्मा, संग्राम सिंह, महेश शर्मा, विनोद रावत, विजय चौहान, मनीष नागपाल व विवेकानंद खंडूड़ी समेत 24 लोगों के खिलाफ संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था.
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इस मामले में कई बार तय तारीख पर कोर्ट में पेश न होने के चलते कई नेताओं के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हुए थे. हालांकि, बाद में कोर्ट में पेश होने के बाद आरोपी नेताओं को जमानत दे दी गई थी. सोमवार को सुनवाई के बाद कोर्ट से बाहर आते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि मामला कोर्ट में विचारधीन हैं. ऐसे में जो भी फैसला कोर्ट से आएगा वह उसे स्वीकार करेंगे और आगे की कानूनी प्रक्रिया पर विचार करेंगे.
इस प्रदर्शन को लोकहित में बताते हुए पूर्व की हरीश रावत सरकार और मौजूद त्रिवेंद्र सरकार दो बार कोर्ट में मुकदमा वापस लेने की कोर्ट में अर्जी लगाई जा चुकी है. लेकिन दोनों ही बार कोर्ट ने इसे लोकहित श्रेणी से बाहर रखते हुए सरकार की अर्जी ठुकरा दी और इस मामले पर कानूनी कार्रवाई जारी रखी है.