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उत्तराखंड में रोक और UP में मंजूरी, पढ़ें Timeline के जरिए कांवड़ यात्रा की पूरी स्टोरी - Kanwar Yatra in Uttarakhand

सावन में शिव आराधना का बड़ा महत्व है. इस दौरान जगह-जगह कांवड़ियों की लंबी कतारें बम-बम भोले के जयकारे लगाते हुए दिखतीं हैं. क्या आप जानते हैं कि आस्था की यह यात्रा कैसे शुरू हुई और इसका उत्तराखंड से क्या कनेक्शन है.

Kanwar Yatra in Uttarakhand
उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा का महत्व
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Published : Jul 14, 2021, 7:17 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड सरकार कांवड़ यात्रा पर पाबंदी लगा चुकी है. पिछले साल की तरह इस बार भी वहां कांवड़ यात्रा नहीं होगी. सनातन धर्म में कांवड़ यात्रा का एक विशेष महत्व है. क्योंकि आस्था की प्रतीक यह यात्रा एक संकल्प यात्रा के रूप में भी जानी जाती है. सावन महीने में शुरू होने वाली इस यात्रा में कांवड़िए लंबा सफर तय करने के बाद हरिद्वार, ऋषिकेश से गंगाजल भरकर अपने ईष्टदेव महादेव का जलाभिषेक करते हैं. उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा रद्द होने के कारण न सिर्फ कांवड़िए नाराज हो गए हैं, बल्कि प्रदेश में हजारों करोड़ के व्यवसाय को भी नुकसान पहुंचा है.

कांवड़ यात्रा के पीछे कई पौराणिक कहानियां हैं. लेकिन पुराणों के मुताबिक, सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी श्रावण के महीने में समुद्र मंथन से संबंधित है. समुद्र मंथन के दौरान महासागर से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया. तब से उनका नाम 'नीलकंठ' पड़ गया. लेकिन विष के नकारात्मक असर ने नीलकंठ को घेर लिया था. विष के असर को कम करने के लिए देवी पार्वती समेत सभी देवी-देवताओं ने उन पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया, तब जाकर शंकर विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए. यहीं से कांवड़ यात्रा की परंपरा की भी शुरुआत मानी जाती है.

वहीं, कुछ मान्यताएं ये भी हैं कि भगवान परशुराम ने सबसे पहले पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना कर कांवड़ में गंगाजल से महादेव का जलाभिषेक करते हुए कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी. हर साल सावन के महीने में करीब 3 से 4 करोड़ कांवड़िए हरिद्वार आते हैं और कांवड़ में गंगाजल भरकर अपने गंतव्य की ओर पैदल यात्रा शुरू करते हैं. कांवड़िए अपने कांवड़ में जो गंगाजल भरते हैं, उससे सावन की चतुर्दशी पर भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है.

कांवड़ यात्रा को लेकर मान्यता है कि सावन महीने में भगवान शिव अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी कनखल हरिद्वार में रहते हैं और इस महीने भगवान विष्णु के शयन में जाने के कारण तीनों लोक की देखभाल भगवान शिव ही करते हैं. यही वजह है कि कांवड़िये श्रावण माह में गंगाजल लेने हरिद्वार आते हैं.

पढ़ें: मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने बताया क्यों रद्द की कांवड़ यात्रा, IMA ने जताई खुशी

उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा रद्द की: कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए इस साल होने वाली कांवड़ यात्रा को रद्द कर दिया है. राज्य सरकार का तर्क है कि वह हरिद्वार को कोरोना का केंद्र नहीं बनाना चाहती है. यात्रा आस्था का विषय है, लेकिन लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं, जिसके चलते कांवड़ यात्रा को रद्द किया जाता है.

पर्यटन को लगा तिहरा झटका: इस साल भी कांवड़ यात्रा रद्द होने से उत्तराखंड को तीसरा झटका लगा है. क्योंकि इसी साल हरिद्वार में हुए कुंभ को भी काफी सीमित रखा गया था. जबकि सामान्य दिनों में कुंभ के दौरान करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने हरिद्वार आते हैं. लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण की वजह से हरिद्वार कुंभ को काफी सीमित रखा गया था. साथ ही कोरोना संक्रमण को देखते हुए चारधाम यात्रा को भी फिलहाल स्थगित कर दिया गया है.

यूपी में कांवड़ यात्रा रहेगी जारी: उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा को रद्द तो कर दिया है लेकिन, उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक कांवड़ यात्रा रोके जाने पर कोई फैसला नहीं लिया है. मतलब साफ है कि यूपी में कांवड़ यात्रा फिलहाल जारी रहेगी. तत्कालीन तीरथ सरकार ने कांवड़ यात्रा रद्द करने का फैसला लिया था. राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के बाद अटकलें लगाई जा रही थी कि धामी सरकार प्रदेश में कांवड़ यात्रा को शुरू कर सकती है. लेकिन, कोरोना संकट और दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों से बातचीत के बाद राज्य सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला लिया है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड के पर्यटन व्यवसाय पर तिहरी मार, कुंभ, चारधाम के बाद कांवड़ यात्रा रद्द

1100 परिवारों को लगा झटका: उत्तराखंड के व्यापारी लंबे समय से कांवड़ यात्रा संचालित करने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि पिछले साल भी कांवड़ यात्रा संचालित नहीं होने और वैश्विक महामारी के चलते लागू कोरोना कर्फ्यू से काफी नुकसान का सामना करना पड़ा था. हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम लोगों को भी यात्रा रद्द होने से झटका लगा है. हरिद्वार में कांवड़ मुस्लिम समाज ही बनाता है. उत्तराखंड के लगभग 1100 परिवार इस यात्रा का साल भर इंतजार करते हैं. दो साल से कांवड़ यात्रा न होने के कारण लगभग 1 हजार करोड़ रुपए के नुकसान की आशंका जताई जा रही है.

दबाब के बावजूद सरकार ने रद्द की यात्रा: उत्तराखंड सरकार पर कांवड़ यात्रा चलाने को लेकर उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार का शुरू से ही दबाव रहा था. बावजूद इसके मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश के भीतर कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया है. दरअसल, हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश में अभी तक चारधाम की यात्रा शुरू नहीं हो पाई है. ऐसे में अगर उत्तराखंड सरकार कांवड़ यात्रा संचालित करने पर सहमति देती तो एक बार फिर हाईकोर्ट इस पर रोक लगा सकता था. लिहाजा हाईकोर्ट के डर से उत्तराखंड सरकार ने पहले ही कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया है. क्योंकि हाईकोर्ट भी धार्मिक आयोजनों पर नजर बनाए हुए है और सरकार से लगातार जवाब तलब कर रहा है. ऐसे में हरिद्वार कुंभ में लगे आक्षेप के बाद सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

कांवड़ियों को संभालना बड़ी चुनौती: उत्तर प्रदेश सरकार 25 जुलाई से कांवड़ यात्रा संचालित करने का मन बना चुकी है. ऐसे में राज्य सरकार बॉर्डर पर कांवड़ियों को रोकने के लिए अपनी तैयारियों में जुट गई है. क्योंकि हर साल कांवड़ यात्रा पर आने वाले कांवड़ियों की भीड़ को संभालने में उत्तराखंड पुलिस नाकाम ही साबित हुई है.

जीवन से नहीं कर सकते खिलवाड़: शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तीसरी लहर को लेकर चिंता व्यक्त की है. ऐसे में धर्म के प्रति आस्था होनी चाहिए, लेकिन आम आदमी के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं.

कांवड़ियों को रोकने के लिए अन्य सरकारों से होगी बात: राज्य सरकार उन सभी राज्य सरकारों से बातचीत करने जा रही है जहां से कावड़िए उत्तराखंड गंगाजल भरने आते हैं. ऐसे में राज्य सरकार की कोशिश है कि उन सभी राज्य सरकारों से बातचीत कर कांवड़ियों के उत्तराखंड आने पर रोक लगाई जाए. जिससे हरिद्वार में कांवड़ियों की भीड़ नहीं लगेगी और ना ही हरिद्वार बॉर्डर पर कांवड़ियों को रोकने की जरूरत होगी.

हरिद्वार के हबीब का परिवार 35 सालों से बनाता है कांवड़: हरिद्वार के ज्वालापुर में रहने वाले हबीब कहते हैं कि उनका परिवार लगभग 35 साल से कांवड़ बनाने का काम कर रहा है. मेरे पिता भी इस काम को करते थे और मैं भी इस काम को कर रहा हूं. हमें अच्छा लगता है कि हिंदुओं के इतने बड़े पर्व में हमारा भी योगदान होता है. लेकिन, 2 सालों से कांवड़ यात्रा ना होने की वजह से हमें बेहद नुकसान हो रहा है.

इस बार भी हमने सोचा था कि अब सब कुछ ठीक हो गया है तो सामान मंगवा लिया जाए. लेकिन जैसे ही पता चला कि इस बार भी यात्रा अटक सकती है तो हमने अपने हाथ पीछे खींच लिए. क्योंकि पिछले साल भी हमें लाखों रुपए का नुकसान हुआ था. हमारे जैसे छोटे-छोटे बहुत सारे कारीगर हैं, जो कांवड़ मेले के लिए उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से हरिद्वार में कांवड़ बनवाने के लिए आते हैं. ऐसे में उनकी रोजी-रोटी पर भी इसका असर पड़ रहा है.

टूटा हरिद्वार का व्यापार: हरिद्वार में होटल व्यवसाय से जुड़े अभिषेक बंटा कहते हैं कि कावड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में काम बेहद अच्छा चलता है. खाने-पीने का सामान दिन में ही खत्म हो जाता है. लिहाजा कारीगरों को समय भी नहीं मिलता था और सभी लोग व्यस्त रहते हैं. लेकिन अब कारोबार मंदा है. प्रशासन कोरोना कर्फ्यू और कोविड-19 के चलते दुकानों को जल्द बंद करवा देता है. इससे ना केवल राशन का नुकसान हो रहा है, बल्कि होटल में अन्य कर्मचारी को भी तनख्वाह समय से नहीं मिल पा रही है. हमने कई कर्मचारियों को होटल में आने से रोक लगा रखा है. क्योंकि जब पैसे नहीं होंगे तो लोगों की सैलरी कहां से आएगी. कारोबारी चारधाम यात्रा का इंतजार कर रहे थे, लेकिन वह भी बंद हो गई. कुंभ में भी इस बार कोई काम नहीं हुआ और अब कांवड़ बंद हो जाने की वजह से हरिद्वार का व्यापार पूरी तरह से टूट चुका है.

यात्रा स्थगित करने का फैसला सही: हरिद्वार के कौशल सिकोला बताते हैं कि मौजूदा मुख्यमंत्री का कांवड़ यात्रा को स्थगित करने का ऐलान कहीं ना कहीं हरिद्वार और पूरे उत्तराखंड के लिए सही है. कुंभ मेले में जिस तरह से हरिद्वार की छवि को धब्बा लगा है, उसके बाद अगर यहां पर कावड़ यात्रा का आयोजन होता तो शायद हालात और भी बुरे हो सकते थे. क्योंकि जितनी भीड़ कुंभ में नहीं आई थी, उससे ज्यादा भीड़ कावड़ियों के रूप में हरिद्वार आती. साल दर साल कावड़ियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है. अब यह संख्या लगभग तीन करोड़ तक पहुंच गई है. ऐसे में संक्रमण काल के दौरान इस यात्रा को करवाना सही नहीं था.

आस्था में नहीं आएगा बदलाव: कई लोग यह भी कह रहे हैं कि इससे आस्था में बदलाव आएगा. यानी जो लोग हरिद्वार जल लेने आते थे, वे अब गढ़मुक्तेश्वर या शुक्रताल से जल लेकर चले जाएंगे. ऐसे में हरिद्वार की महत्ता कम हो जाएगी और आने वाले समय में लोग वहीं से कांवड़ उठाएंगे. इस पर कौशल सिकोला कहते हैं कि ऐसा नहीं है पूरे देश में जब कर्फ्यू लगा हुआ था तब भी हरिद्वार में अस्थि विसर्जन और कर्मकांड हुए थे. ऐसे में लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं आने वाली है.

वही, गंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ कहते हैं कि सरकार जो भी फैसला ले रही है, हम उस फैसले के साथ हैं. सब कुछ ठीक हो जाने के बाद हम हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित देशभर के कांवड़ियों और श्रद्धालुओं का स्वागत पलक-पांवड़े बिछाकर करेंगे.

देहरादून: उत्तराखंड सरकार कांवड़ यात्रा पर पाबंदी लगा चुकी है. पिछले साल की तरह इस बार भी वहां कांवड़ यात्रा नहीं होगी. सनातन धर्म में कांवड़ यात्रा का एक विशेष महत्व है. क्योंकि आस्था की प्रतीक यह यात्रा एक संकल्प यात्रा के रूप में भी जानी जाती है. सावन महीने में शुरू होने वाली इस यात्रा में कांवड़िए लंबा सफर तय करने के बाद हरिद्वार, ऋषिकेश से गंगाजल भरकर अपने ईष्टदेव महादेव का जलाभिषेक करते हैं. उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा रद्द होने के कारण न सिर्फ कांवड़िए नाराज हो गए हैं, बल्कि प्रदेश में हजारों करोड़ के व्यवसाय को भी नुकसान पहुंचा है.

कांवड़ यात्रा के पीछे कई पौराणिक कहानियां हैं. लेकिन पुराणों के मुताबिक, सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी श्रावण के महीने में समुद्र मंथन से संबंधित है. समुद्र मंथन के दौरान महासागर से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया. तब से उनका नाम 'नीलकंठ' पड़ गया. लेकिन विष के नकारात्मक असर ने नीलकंठ को घेर लिया था. विष के असर को कम करने के लिए देवी पार्वती समेत सभी देवी-देवताओं ने उन पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया, तब जाकर शंकर विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए. यहीं से कांवड़ यात्रा की परंपरा की भी शुरुआत मानी जाती है.

वहीं, कुछ मान्यताएं ये भी हैं कि भगवान परशुराम ने सबसे पहले पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना कर कांवड़ में गंगाजल से महादेव का जलाभिषेक करते हुए कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी. हर साल सावन के महीने में करीब 3 से 4 करोड़ कांवड़िए हरिद्वार आते हैं और कांवड़ में गंगाजल भरकर अपने गंतव्य की ओर पैदल यात्रा शुरू करते हैं. कांवड़िए अपने कांवड़ में जो गंगाजल भरते हैं, उससे सावन की चतुर्दशी पर भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है.

कांवड़ यात्रा को लेकर मान्यता है कि सावन महीने में भगवान शिव अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी कनखल हरिद्वार में रहते हैं और इस महीने भगवान विष्णु के शयन में जाने के कारण तीनों लोक की देखभाल भगवान शिव ही करते हैं. यही वजह है कि कांवड़िये श्रावण माह में गंगाजल लेने हरिद्वार आते हैं.

पढ़ें: मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने बताया क्यों रद्द की कांवड़ यात्रा, IMA ने जताई खुशी

उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा रद्द की: कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए इस साल होने वाली कांवड़ यात्रा को रद्द कर दिया है. राज्य सरकार का तर्क है कि वह हरिद्वार को कोरोना का केंद्र नहीं बनाना चाहती है. यात्रा आस्था का विषय है, लेकिन लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं, जिसके चलते कांवड़ यात्रा को रद्द किया जाता है.

पर्यटन को लगा तिहरा झटका: इस साल भी कांवड़ यात्रा रद्द होने से उत्तराखंड को तीसरा झटका लगा है. क्योंकि इसी साल हरिद्वार में हुए कुंभ को भी काफी सीमित रखा गया था. जबकि सामान्य दिनों में कुंभ के दौरान करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने हरिद्वार आते हैं. लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण की वजह से हरिद्वार कुंभ को काफी सीमित रखा गया था. साथ ही कोरोना संक्रमण को देखते हुए चारधाम यात्रा को भी फिलहाल स्थगित कर दिया गया है.

यूपी में कांवड़ यात्रा रहेगी जारी: उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा को रद्द तो कर दिया है लेकिन, उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक कांवड़ यात्रा रोके जाने पर कोई फैसला नहीं लिया है. मतलब साफ है कि यूपी में कांवड़ यात्रा फिलहाल जारी रहेगी. तत्कालीन तीरथ सरकार ने कांवड़ यात्रा रद्द करने का फैसला लिया था. राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के बाद अटकलें लगाई जा रही थी कि धामी सरकार प्रदेश में कांवड़ यात्रा को शुरू कर सकती है. लेकिन, कोरोना संकट और दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों से बातचीत के बाद राज्य सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला लिया है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड के पर्यटन व्यवसाय पर तिहरी मार, कुंभ, चारधाम के बाद कांवड़ यात्रा रद्द

1100 परिवारों को लगा झटका: उत्तराखंड के व्यापारी लंबे समय से कांवड़ यात्रा संचालित करने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि पिछले साल भी कांवड़ यात्रा संचालित नहीं होने और वैश्विक महामारी के चलते लागू कोरोना कर्फ्यू से काफी नुकसान का सामना करना पड़ा था. हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम लोगों को भी यात्रा रद्द होने से झटका लगा है. हरिद्वार में कांवड़ मुस्लिम समाज ही बनाता है. उत्तराखंड के लगभग 1100 परिवार इस यात्रा का साल भर इंतजार करते हैं. दो साल से कांवड़ यात्रा न होने के कारण लगभग 1 हजार करोड़ रुपए के नुकसान की आशंका जताई जा रही है.

दबाब के बावजूद सरकार ने रद्द की यात्रा: उत्तराखंड सरकार पर कांवड़ यात्रा चलाने को लेकर उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार का शुरू से ही दबाव रहा था. बावजूद इसके मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश के भीतर कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया है. दरअसल, हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश में अभी तक चारधाम की यात्रा शुरू नहीं हो पाई है. ऐसे में अगर उत्तराखंड सरकार कांवड़ यात्रा संचालित करने पर सहमति देती तो एक बार फिर हाईकोर्ट इस पर रोक लगा सकता था. लिहाजा हाईकोर्ट के डर से उत्तराखंड सरकार ने पहले ही कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया है. क्योंकि हाईकोर्ट भी धार्मिक आयोजनों पर नजर बनाए हुए है और सरकार से लगातार जवाब तलब कर रहा है. ऐसे में हरिद्वार कुंभ में लगे आक्षेप के बाद सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

कांवड़ियों को संभालना बड़ी चुनौती: उत्तर प्रदेश सरकार 25 जुलाई से कांवड़ यात्रा संचालित करने का मन बना चुकी है. ऐसे में राज्य सरकार बॉर्डर पर कांवड़ियों को रोकने के लिए अपनी तैयारियों में जुट गई है. क्योंकि हर साल कांवड़ यात्रा पर आने वाले कांवड़ियों की भीड़ को संभालने में उत्तराखंड पुलिस नाकाम ही साबित हुई है.

जीवन से नहीं कर सकते खिलवाड़: शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तीसरी लहर को लेकर चिंता व्यक्त की है. ऐसे में धर्म के प्रति आस्था होनी चाहिए, लेकिन आम आदमी के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं.

कांवड़ियों को रोकने के लिए अन्य सरकारों से होगी बात: राज्य सरकार उन सभी राज्य सरकारों से बातचीत करने जा रही है जहां से कावड़िए उत्तराखंड गंगाजल भरने आते हैं. ऐसे में राज्य सरकार की कोशिश है कि उन सभी राज्य सरकारों से बातचीत कर कांवड़ियों के उत्तराखंड आने पर रोक लगाई जाए. जिससे हरिद्वार में कांवड़ियों की भीड़ नहीं लगेगी और ना ही हरिद्वार बॉर्डर पर कांवड़ियों को रोकने की जरूरत होगी.

हरिद्वार के हबीब का परिवार 35 सालों से बनाता है कांवड़: हरिद्वार के ज्वालापुर में रहने वाले हबीब कहते हैं कि उनका परिवार लगभग 35 साल से कांवड़ बनाने का काम कर रहा है. मेरे पिता भी इस काम को करते थे और मैं भी इस काम को कर रहा हूं. हमें अच्छा लगता है कि हिंदुओं के इतने बड़े पर्व में हमारा भी योगदान होता है. लेकिन, 2 सालों से कांवड़ यात्रा ना होने की वजह से हमें बेहद नुकसान हो रहा है.

इस बार भी हमने सोचा था कि अब सब कुछ ठीक हो गया है तो सामान मंगवा लिया जाए. लेकिन जैसे ही पता चला कि इस बार भी यात्रा अटक सकती है तो हमने अपने हाथ पीछे खींच लिए. क्योंकि पिछले साल भी हमें लाखों रुपए का नुकसान हुआ था. हमारे जैसे छोटे-छोटे बहुत सारे कारीगर हैं, जो कांवड़ मेले के लिए उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से हरिद्वार में कांवड़ बनवाने के लिए आते हैं. ऐसे में उनकी रोजी-रोटी पर भी इसका असर पड़ रहा है.

टूटा हरिद्वार का व्यापार: हरिद्वार में होटल व्यवसाय से जुड़े अभिषेक बंटा कहते हैं कि कावड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में काम बेहद अच्छा चलता है. खाने-पीने का सामान दिन में ही खत्म हो जाता है. लिहाजा कारीगरों को समय भी नहीं मिलता था और सभी लोग व्यस्त रहते हैं. लेकिन अब कारोबार मंदा है. प्रशासन कोरोना कर्फ्यू और कोविड-19 के चलते दुकानों को जल्द बंद करवा देता है. इससे ना केवल राशन का नुकसान हो रहा है, बल्कि होटल में अन्य कर्मचारी को भी तनख्वाह समय से नहीं मिल पा रही है. हमने कई कर्मचारियों को होटल में आने से रोक लगा रखा है. क्योंकि जब पैसे नहीं होंगे तो लोगों की सैलरी कहां से आएगी. कारोबारी चारधाम यात्रा का इंतजार कर रहे थे, लेकिन वह भी बंद हो गई. कुंभ में भी इस बार कोई काम नहीं हुआ और अब कांवड़ बंद हो जाने की वजह से हरिद्वार का व्यापार पूरी तरह से टूट चुका है.

यात्रा स्थगित करने का फैसला सही: हरिद्वार के कौशल सिकोला बताते हैं कि मौजूदा मुख्यमंत्री का कांवड़ यात्रा को स्थगित करने का ऐलान कहीं ना कहीं हरिद्वार और पूरे उत्तराखंड के लिए सही है. कुंभ मेले में जिस तरह से हरिद्वार की छवि को धब्बा लगा है, उसके बाद अगर यहां पर कावड़ यात्रा का आयोजन होता तो शायद हालात और भी बुरे हो सकते थे. क्योंकि जितनी भीड़ कुंभ में नहीं आई थी, उससे ज्यादा भीड़ कावड़ियों के रूप में हरिद्वार आती. साल दर साल कावड़ियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है. अब यह संख्या लगभग तीन करोड़ तक पहुंच गई है. ऐसे में संक्रमण काल के दौरान इस यात्रा को करवाना सही नहीं था.

आस्था में नहीं आएगा बदलाव: कई लोग यह भी कह रहे हैं कि इससे आस्था में बदलाव आएगा. यानी जो लोग हरिद्वार जल लेने आते थे, वे अब गढ़मुक्तेश्वर या शुक्रताल से जल लेकर चले जाएंगे. ऐसे में हरिद्वार की महत्ता कम हो जाएगी और आने वाले समय में लोग वहीं से कांवड़ उठाएंगे. इस पर कौशल सिकोला कहते हैं कि ऐसा नहीं है पूरे देश में जब कर्फ्यू लगा हुआ था तब भी हरिद्वार में अस्थि विसर्जन और कर्मकांड हुए थे. ऐसे में लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं आने वाली है.

वही, गंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ कहते हैं कि सरकार जो भी फैसला ले रही है, हम उस फैसले के साथ हैं. सब कुछ ठीक हो जाने के बाद हम हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित देशभर के कांवड़ियों और श्रद्धालुओं का स्वागत पलक-पांवड़े बिछाकर करेंगे.

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