देहरादूनः प्रदेश में पिछले कुछ समय से निजी हथियारों का चलन तेजी से बढ़ रहा है. निजी तौर पर हथियार रखना जो कभी संगीन अपराधों से बचने का सुरक्षा कवच हुआ करता था, वहीं आज एक स्टेटस सिंबल बन चुका है. बदलते समय के साथ आज हथियार रखने का चलन इस कदर पढ़ चुका है कि बीते समय की तुलना वर्तमान में लाइसेंस लेने की प्रक्रिया जटिल व लंबी होने के बावजूद आज लोग लगातार तमाम कठिन औपचारिकताएं को पूरी कर किसी भी कीमत में हथियार रखना पसंद कर रहे हैं. उत्तराखंड बनने के 18 वर्षों बाद आज प्रतिदिन सैकड़ों की तादात में राज्य के ज्यादातर जिला प्रशासन कार्यालय व पुलिस के पास हथियार लाइसेंस लेने की आवेदन पत्र पहुंच रहे हैं.
कभी बीते समय में निजी हथियारों को रखने का सरोकार अपने व्यापार, अपने धन, अपनी निजी सुरक्षा सहित संगीन अपराध घटनाओं के समय आत्म सुरक्षा की दृष्टि के अलावा खुशी के समय हथियार को इजहार करने का तरीका होता था.
आज इन तमाम वजहों के ना होने के बावजूद भी हथियार रखना एक स्टेटस सहित फैशन का चलन बनता जा रहा है जो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. अन्य वर्ग के साथ ही साधु संत समाज में भी बड़ा हथियार रखने का क्रेज देखा जा रहा है. जहां एक समय साधु संतों के समाज में हथियार रखने जैसी कोई परंपरा या चलन नहीं था. वहीं वर्तमान समय में साधु संत समाज में भी लाइसेंसी हथियार रखने का चलन बढ़ता चला जा रहा है.
बात अगर उत्तराखंड की धर्म नगरी हरिद्वार जिले की करें तो यहां साधु समाज के पास भारी मात्रा में निजी हथियार लाइसेंस उपलब्ध हैं, वहीं देहरादून की बात करें तो यहां भी हथियार रखने की ठोस वजह ना होने के बावजूद तेजी से हर वर्ग लाइसेंस लेकर हथियार रखने को एक फैशन के तौर पर अपना रहा है.
देहरादून में सन 1972 से लाइसेंसी हथियारों को बेचने वाले श्यामसुंदर के मुताबिक किसी जमाने में कुछ चुनिंदा लोगों ही हथियार का लाइसेंस इसलिए प्राप्त करते थे क्योंकि उनको खुद की सुरक्षा करनी रहती थी.
वही आज बदलते समय के अनुसार हथियार रखने की खास वजह के ना होने के बावजूद भी वर्तमान में पिस्टल, रिवाल्वर सहित अन्य तरह के हथियार रखना जरूरी स्टेटस सिंबल बनाये रखने के साथ ही फैशन बन गया है.उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय द्वारा मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव के अंतर्गत प्रदेशभर से अगर लाइसेंसी हथियारों की संख्या की बात करें तो 26,080 लोगों ने चुनाव आचार संहिता के दौरान अपने लाइसेंसी निजी हथियारों को सत्यापन नियम के तहत थाना चौकी और एजेंसियों जमा किए थे.
वहीं आंकड़ा बढ़कर वर्ष 2017 उत्तराखंड विधानसभा में हथियारों 42246 का हो गया था. वहीं वर्तमान समय में उत्तराखंड में निजी लाइसेंसधारी हत्यारों का आंकड़ा 60 हजार के पार पहुंच चुका है। अभी 2019 आगामी लोकसभा चुनाव में आचार संहिता के चलते अभी तक 24,825 लाइसेंसी लोग अपने हथियारों को जमा करा चुके हैं हालांकि यह आंकड़ा अभी बढ़ता जाएगा.
ऐसे में यह साफ तौर पर माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों की तर्ज पर निजी हथियार रखना लोगों की स्टेटस और फैशन में जुड़ता जा रहा है वह इस मामले में उत्तराखंड में अपराध व कानून व्यवस्था की कमान संभालने वाले महानिदेशक अशोक कुमार का भी मानना है कि समय के अनुसार उत्तराखंड में निजी हथियारों लाइसेंस लेने की होड़ लगी हुई है.
लोग अब इसे स्टेटस और रुतबे से जोड़कर फैशन के तर्ज पर लेना पसंद कर रहे हैं. इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि जहां उत्तराखंड देहरादून हरिद्वार, उधम सिंह नगर, नैनीताल जैसे कई मैदानी जिलों में बाहर से आकर लोग बसने के चलते भीड़भाड़ होने से अपराध के मामले में असुरक्षा का भाव भी लोगों में आया. जिसके चलते में लोग लाइसेंसी हथियार को रखना अपनी जरूरत समझ रहे हैं.