नैनीताल: बागेश्वर में सरयू नदी में हो रहे खनन पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. हाईकोर्ट ने 22 मार्च 2020 के आदेश के अनुसार नदी में मशीन से खनन पर रोक लगाने के आदेश को यथावत रखा है. खनन ठेकेदार को निर्देश दिए हैं कि वह मशीन चलाने के लिए खनन कमेटी को अपना प्रत्यावेदन दें. अगर कमेटी मशीन से खनन करने की अनुमति देती है तो डीएम के आदेश के आधार पर खनन किया जाएगा.
बागेश्वर में सरयू नदी में मशीनों से खनन करने या न करने के मामले पर अब हाईकोर्ट ने गेंद डीएम बागेश्वर के पाले में डाल दी है. हाईकोर्ट ने खननकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि वह अपना प्रत्यावेदन खनन कमेटी को दें. कमेटी नियमानुसार ही नदी में मशीन से खनन करने पर फैसला करे. हाईकोर्ट ने कहा कि डीएम बागेश्वर फैसला करें कि नदी में मशीन से खनन किया जाना है या नहीं.
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हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक खननकर्ता प्रत्यावेदन खनन कमेटी के पास नहीं भेजेंगे तब तक 22 मार्च 2020 के कोर्ट के आदेश के आधार पर मशीनों से नदी में खनन पर रोक यथावत रहेगी.
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बागेश्वर निवासी प्रमोद कुमार मेहता ने नैनीताल हाईकोर्ट में इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि बागेश्वर की सरयू नदी में प्रशासन के द्वारा 9 मार्च को निविदा प्रकाशित की गई थी. इसमें स्थानीय व्यक्तियों/संस्थाओं को सरयू नदी में रेत, उप-खनिज को निकालने के लिए खुली नीलामी आमंत्रित की गई थी.
याचिकाकर्ता ने इस आधार पर चुनौती दी है कि खुली नीलामी की आड़ में जिला प्रशासन भू-माफिया को लाभ पहुंचाने की कोशिश कर रहा है. बड़ी मशीनों जेसीबी, पोकलैंड के उपयोग की अनुमति देकर नदी के स्वरूप को खत्म करने का प्रयास कर रहा है. आज तक सरयू नदी में बिना मशीन के ही चुगान होता आया है.
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याचिकाकर्ता ने कहा कि मशीनों के प्रयोग से नदी का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा. साथ ही क्षेत्र में आपदा व भू-कटाव की समस्या उत्पन्न हो जाएगी. याचिकाकर्ता का कहना है कि सरयू नदी से रेत, बजरी की बिना आकलन के ही नियम विरुद्ध तरीके से नीलामी की जा रही है. ये उत्तराखंड रिवर ट्रेनिंग एक्ट 2020 के प्रावधानों के विपरीत है.