अल्मोड़ाः कोरोना महामारी के बीच एक दवा काफी सुर्खियों में है. एकाएक इसकी डिमांड पूरी दुनिया में बढ़ गई है. सुपर पावर राष्ट्र अमेरिका भी भारत से इस दवाई को देने की मांग कर रहा है. ये दवाई है मलेरिया के इलाज में कारगर हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन. लेकिन क्या आपको पता है कि मलेरिया के परजीवी और उसकी दवा की खोज करने वाले डॉक्टर का जन्म उत्तराखंड में हुआ था. जी हां पूरी दुनिया को मलेरिया से निजात दिलाने वाले डॉक्टर सर रोनाल्ड रॉस का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.
एक समय था जब दुनिया भर में मलेरिया जानलेवा बीमारी मानी जाती थी. असंख्य लोग इसकी चपेट में आकर असमय काल कवलित हो जाया करते थे. मलेरिया के चलते ही उत्तराखंड के पहाड़ों से मैदानी भागों यानी तराई और भाबर में जाने वाले लोगों को लेकर यह मान लिया जाता था कि उनके वापस लौटने की संभावनाएं काफी कम होंगी. क्योंकि, वहां जाने वाले लोग बरसात के मौसम में किसी अनजान किस्म के ज्वर का शिकार होकर मर जाते थे.
माना जाता था कि मलेरिया नामक यह असाध्य बुखार प्रदूषित मैदानी हवा के कारण होता था. मलेरिया की बीमारी का कारण पहचानने वाले पहले वैज्ञानिक सर रोनाल्ड रॉस थे. उन्होंने साबित किया कि मलेरिया मच्छर से होता है. जिसके बाद उन्होंने इसकी दवाई कुनैन की खोज की. इसके लिए उन्हें साल 1902 का चिकित्सा नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था. यह सम्मान पाने वाले वे पहले ब्रिटिश नागरिक थे. इसके अलावा नोबेल से सम्मानित होने वाले वे ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिनका जन्म यूरोप से बाहर यानि भारत में हुआ था.
अल्मोड़ा में जन्मे थे सर रोनाल्ड रॉस
सर रोनाल्ड रॉस का जन्म 13 मई 1857 को अल्मोड़ा में हुआ था. जिस घर में उनका जन्म हुआ था, उसे कंकरकोटी हाउस के नाम से भी जाना जाता था. यह घर आज भी अल्मोड़ा में मौजूद है. इसमें वर्तमान में अल्मोड़ा जिले के एसएसपी का सरकारी आवास है. पूर्व स्वास्थ्य निदेशक रह चुके डॉ. जेसी दुर्गापाल ने बताया कि दुनिया को मलेरिया से निजात दिलाने के लिए कुनैन, जिससे क्लोरोक्वाइन बनती है, उसकी खोज सर रोनाल्ड रॉस ने ही की थी.
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उनका कहना है कि क्लोरोक्वाइन मलेरिया के लिए शत प्रतिशत कारगर और रामबाण औषधि तो है ही, साथ ही इसका इस्तेमाल कई अन्य बीमारियों में भी किया जाता है. उन्होंने बताया कि मलेरिया के अलावा इसका इस्तेमाल जिन्जवाइटिस, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर यानी जोड़ों के दर्द में भी किया जाता है. इसके अलावा घुटनों के दर्द, दांतों के दर्द के लिए यह काफी उपयोगी मानी जाती है.
वहीं, उनका कहना है कि अभी यह कोरोना संक्रमण में कितनी कारगर है, यह कह पाना मुश्किल है, लेकिन कोरोना से संक्रमित होकर जो ठीक स्थिति में आ जाते हैं, उनके लिए यह कारगर है. इसलिए अमेरिका समेत कई देश इस दवाई की भारत से डिमांड कर रहे हैं. इस दवाई का सबसे बड़ा उत्पादक देश भारत ही माना जाता है.
डॉ. दुर्गापाल बताते हैं कि क्लोरोक्वाइन के कई दुष्प्रभाव भी होते हैं. जैसे इसका सेवन करने पर यह बोन मैरो को प्रभावित करता है. जिससे खून नहीं बनता है. इसे खासकर खून की कमी वाले, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को नहीं दिया जाता है.
लेखक बनना चाहते थे वैज्ञानिक सर रोनाल्ड रॉस
ब्रिटिश इंडियन आर्मी में ऊंचे पर पर तैनात सर कैम्पबेल ग्रांट रॉस और माटिल्डा शार्लोट एल्डरटन के दस बच्चों में सबसे बड़े रोनाल्ड रॉस थे. आठ साल का होने पर उन्हें पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेजा गया. बचपन से ही कला और कविता में दिलचस्पी रखने वाले रोनाल्ड को गणित में भी महारत हासिल थी. सोलह साल की आयु में उन्होंने चित्रकला में एक राष्ट्रीय स्तर का इनाम जीता.
वे लेखक बनना चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने उनका दाखिला एक मेडिकल कॉलेज में करवा दिया. बाईस साल की उम्र में वे बाकायदा डॉक्टर बन गए. दो साल बाद उन्होंने इंडियन मेडिकल सर्विस ज्वाइन कर ली. इस सेवा में उन्होंने कुल पच्चीस साल बिताए. भारत में अपनी सेवा के दौरान साल 1888-89 में वे स्टडी लीव पर इंग्लैंड गए और वहां पर उन्होंने बैक्टीरियोलॉजी में एक कोर्स किया. इस कोर्स ने ही उनके जीवन की दिशा बदल दी.
चिकित्सा नोबेल पुरस्कार से नवाजे जा चुके सर रोनाल्ड रॉस
इसके बाद वे भारत में विभिन्न स्थानों पर रहकर मलेरिया पर शोध करते रहे और साल 1897 में उन्होंने सिद्ध किया कि, मलेरिया का बुखार मच्छरों के काटने से फैलता है. उन्हें उन्नसवीं सदी में बेहद महत्वपूर्ण खोज करने पर चिकित्सा नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. बताते हैं कि उन्होंने यह खोज प्रमाणिक तौर पर 21 अगस्त 1897 को की थी. इसके अगले दिन उन्होंने इस बाबत एक कविता लिखकर अपनी पत्नी को भेजी थी.
एक चिकित्सक और वैज्ञानिक के रूप में अपना करियर बनाने वाले रोनाल्ड रॉस बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने कई कविताएं लिखीं. साथ ही उपन्यास प्रकाशित किए, गाने कम्पोज किए और चित्र बनाए. गणित की विलक्षण जन्मजात प्रतिभा उनके भीतर थी.