हल्द्वानी: उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग ने प्रदेश में फूलों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं. जिससे उत्तराखंड को फूलों की घाटी के नाम से जाना जा सके, लेकिन 20 साल बीत जाने के बाद भी न तो उत्तराखंड की पहचान फूलों के नाम पर हुई और न ही यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार ही मिल पाया है.
प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर उत्तराखंड में कई तरह के फूल पाए जाते हैं. सरकार ने इसे बढ़ावा देने के लिए 5 साल में 38 लाख रुपए खर्च तो कर दिए, लेकिन आज भी फूलों के नाम से पहचाना जाने वाला उत्तराखंड फूलों की घाटी बनने से वंचित है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक निदेशालय उद्यान एवं प्रसंस्करण विभाग ने साल 2013 से 2018 तक प्रदेश में फूलों के बढ़ावा देने के नाम पर करीब 38 लाख का बजट खर्च किया है. जबकि गुलाब, ग्लेडियोलाइड, गेंदा, कारनेशन डहेलिया, रजनीगंधा, लिलियम सहित अन्य पौधों का संरक्षण करने का काम जारी है. विभाग ने जानकारी दी कि साल 2019-20 के लिए सरकार द्वारा कोई बजट जारी नहीं किया गया है. विभाग द्वारा राज्य के 14 उद्यान केंद्रों को समय-समय पर बजट का आवंटन किया गया है.
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आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत गोनिया का कहना है कि उत्तराखंड बने 20 साल हो चुके हैं. सरकार ने उत्तराखंड को फूलों की पहचान के लिए 5 साल में 38 लाख खर्च तो कर दिए, लेकिन न ही उत्तराखंड के फूलों को पहचान मिल पाई, न स्थानीय लोगों को रोजगार मिल पाया. ऐसे में विभाग द्वारा सरकारी धन की बर्बादी की जा रही है. हेमंत गोनिया ने सरकार से मांग की है कि जिस तरह से उत्तराखंड को देश-दुनिया में जाना जाता है. उसी तरह उत्तराखंड में फूलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. जिससे कि यहां के फूलों को पहचान मिल सके और स्थानीय लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सके.