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कैसी होती है संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था, एक नजर

Security Layers at Parliament : लोकसभा के भीतर बुधवार को जो कुछ हुआ, उसने सदन की सुरक्षा व्यवस्था पर ही सवाल उठा दिए हैं. सवाल ये पूछा जा रहा है कि इतनी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था होने के बावजूद कैसे दो युवक कैनिस्टर के साथ अंदर दाखिल हो गए. सदन के भीतर पहुंचने से पहले किसी भी व्यक्ति को कम के कम सुरक्षा के चार लेयर को पार करने होते हैं. कैसी होती है संसद की सुरक्षा व्यवस्था, आइए इस पर एक नजर डालते हैं.

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लोकसभा में कूदे दो युवक
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 13, 2023, 5:32 PM IST

नई दिल्ली : जब भी कोई भी व्यक्ति संसद भवन में दाखिल होना चाहता है, तो उसकी एक प्रक्रिया होती है. उसे पूरी करने के बाद ही कोई भी व्यक्ति संसद भवन में प्रवेश कर सकता है. आमतौर पर किसी भी विजिटर के लिए सांसद ही पास जारी करते हैं. लेकिन वह व्यक्ति जब संसद भवन में दाखिल होता है, तो वहां पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों की जवाबदेही होती है कि उसके पास कोई हथियार या घातक सामान न हो. बुधवार को जो घटना हुई, उसने यह साबित कर दिया है कि कहीं न कहीं पर खामियां जरूर हैं. सदन की सुरक्षा व्यवस्था में मुख्य रूप से चार लेयर होते हैं.

पहला घेरा दिल्ली पुलिस का होता है. संसद भवन का यह सबसे बाहरी घेरा होता है. इसे आउटर लेयर भी कहा जाता है. आप जैसे ही संसद भवन में प्रवेश करना चाहेंगे, तो सबसे पहली चेकिंग इनके द्वारा ही की जाती है.

दूसरा घेरा -दूसरे घेरे की जिम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षा बलों की होती है. इनमें सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एनएसजी वगैरह शामिल होते हैं. यहां पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम स्वैट भी शामिल होती है. अगर संसद परिसर के भीतर कभी भी कोई अनहोनी हो जाए, तो उस व्यवस्था से निपटने के लिए ये हमेशा तैयार रहते हैं.

तीसरा घेरा पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप का होता है. इनका गठन 13 दिसंबर 2001 की घटना के बाद किया गया था. आतंकरोधी ऑपरेशन को यह अंजाम देने की स्थिति में होते हैं. इनके पास अपनी मेडिकल टीम और अपनी संचार व्यवस्था होती है. ऐसा कहा जाता है कि संसद परिसर के भीतर इनकी संख्या 1500 से ज्यादा है.

चौथा घेरा - पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस के जवानों से यह बना होता है. इनकी जवाबदेही संसद भवन के भीतर सुरक्षा व्यवस्था को देखने की होती है. यह सबसे अंदर की लेयर है. एक बार जब आप संसद भवन में दाखिल हो गए, तो आप पर नजर बनाए रखना इनकी जवाबदेही होती है. सांसदों से लेकर स्पीकर और सभापति की सुरक्षा व्यवस्था भी यही देखते हैं. सदन के भीतर मार्शल भी इन्हें ही रिपोर्ट करते हैं. जब पीएम आते हैं, तो यह एसपीजी से तालमेल बिठाकर उन्हें सुरक्षा व्यवस्था देते हैं.

कौन देखता है पूरी सुरक्षा व्यवस्था - संसद की सुरक्षा व्यवस्था को सुरक्षा विभाग के संयुक्त सचिव देखते हैं. उनके नीचे सुरक्षा के कई चक्र होते हैं, जिसमें दिल्ली पुलिस से लेकर केंद्रीय बलों की तैनाती की जाती है. इनके पास आधुनिकतम हथियार से लेकर नवीनतम तकनीक से युक्त मशीन उपलब्ध होते हैं.

आपने संसद भवन के बाहर देखा होगा कि रोड ब्लॉकर और टायर किलर्स का उपयोग किया जाता है. इसे एक रणनीति के रूप से रखा जाता है. हरेक लेवल पर इस तरह का एक चक्र होता है और उन्हें उस दायरे में सुरक्षा व्यवस्था को संभालना होता है.

सिक्योरिटी ऑफिसर - असिस्टेंट डायरेक्ट रैंक का एक अधिकारी इसका बॉस होता है. उनका काम संसद भवन में दाखिल होने वाले हरेक व्यक्ति की फुलप्रूफ चेकिंग सुनिश्चित करनी होती है. अगर किसी भी व्यक्ति ने पास का दुरुपयोग किया, तो उन्हें इसे रोकना होता है. ऐसी स्थिति में उन्हें डिप्टी डायरेक्टर (सुरक्षा) को उन्हें इसकी जानकारी देनी होती है.

एरिया इन चार्ज का काम होता है कि वे अपने दायरे में सभी नॉर्म्स का पूरी तरह से पालन करवाएं. हरेक एरिया का एक सुपरवाइजर होता है.

  • VIDEO | "This is a big security breach and it should be investigated properly. Action should be taken against those responsible for this breach," says RLP MP @hanumanbeniwal on Parliament security breach. pic.twitter.com/Cbo2uM7Dmy

    — Press Trust of India (@PTI_News) December 13, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

गैलरी यानी दर्शक दीर्घा में दाखिल होकर संसद की कार्यवाही देखने के लिए सांसदों द्वारा पास जारी किया जाता है. हालांकि, आज की घटना के बाद इस पास के जारी होने पर रोक लगा दी गई है. हरेक पास का एक आईडी नंबर होता है.

जब आप संसद परिसर में दाखिल होते हैं, तो जगह-जगह पर मेटल डिटेक्टर, रेडियो फ्रीक्वेंसी टैग्स लगे होते हैं. अगर आपके पास कुछ भी ऐसा सामान है, तो ये उसे डिटेक्ट कर लेता है. आपके पास बैग है, तो इसकी प्रॉपर चेकिंग होती है और उसके बाद उस पर स्टिकर चिपकाया जाता है, जो यह प्रूफ करता है कि इसमें कोई भी घातक सामान नहीं है. उस बैग की तीन बार चेकिंग की जाती है.

संसद के भीतर किसी भी व्यक्ति को हथियार ले जाने की अनुमति नहीं होती है. सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े कर्मियों को ही हथियार लेकर अंदर जाने की अनुमति होती है. पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस, दिल्ली पुलिस, आईबी, एसपीजी और एनएसजी के साथ समन्वय बनाता है.

हालांकि, बुधवार को जो घटना घटी है, इसने पूरी व्यवस्था को झकझोर दिया है. सवाल ये पूछा जा रहा है कि आखिर इतनी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था होने के बावजूद किस तरह से दो युवक जूते में गैस कनस्तर को छिपाकर अंदर दाखिल हो गया. निश्चित तौर पर उसने सुरक्षा के कई लेयर को धोखा दिया होगा. ऐसा माना जाता है कि कहीं न कहीं पर जिस व्यक्ति ने उसकी फ्रिस्किंग की होगी, उसने जरूर लापरवाही बरती है.

ये भी पढ़ें : 'कुछ पल के लिए तो सारे सांसद घबरा गए, पता नहीं कुछ अनहोनी न हो जाए'

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नई दिल्ली : जब भी कोई भी व्यक्ति संसद भवन में दाखिल होना चाहता है, तो उसकी एक प्रक्रिया होती है. उसे पूरी करने के बाद ही कोई भी व्यक्ति संसद भवन में प्रवेश कर सकता है. आमतौर पर किसी भी विजिटर के लिए सांसद ही पास जारी करते हैं. लेकिन वह व्यक्ति जब संसद भवन में दाखिल होता है, तो वहां पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों की जवाबदेही होती है कि उसके पास कोई हथियार या घातक सामान न हो. बुधवार को जो घटना हुई, उसने यह साबित कर दिया है कि कहीं न कहीं पर खामियां जरूर हैं. सदन की सुरक्षा व्यवस्था में मुख्य रूप से चार लेयर होते हैं.

पहला घेरा दिल्ली पुलिस का होता है. संसद भवन का यह सबसे बाहरी घेरा होता है. इसे आउटर लेयर भी कहा जाता है. आप जैसे ही संसद भवन में प्रवेश करना चाहेंगे, तो सबसे पहली चेकिंग इनके द्वारा ही की जाती है.

दूसरा घेरा -दूसरे घेरे की जिम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षा बलों की होती है. इनमें सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एनएसजी वगैरह शामिल होते हैं. यहां पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम स्वैट भी शामिल होती है. अगर संसद परिसर के भीतर कभी भी कोई अनहोनी हो जाए, तो उस व्यवस्था से निपटने के लिए ये हमेशा तैयार रहते हैं.

तीसरा घेरा पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप का होता है. इनका गठन 13 दिसंबर 2001 की घटना के बाद किया गया था. आतंकरोधी ऑपरेशन को यह अंजाम देने की स्थिति में होते हैं. इनके पास अपनी मेडिकल टीम और अपनी संचार व्यवस्था होती है. ऐसा कहा जाता है कि संसद परिसर के भीतर इनकी संख्या 1500 से ज्यादा है.

चौथा घेरा - पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस के जवानों से यह बना होता है. इनकी जवाबदेही संसद भवन के भीतर सुरक्षा व्यवस्था को देखने की होती है. यह सबसे अंदर की लेयर है. एक बार जब आप संसद भवन में दाखिल हो गए, तो आप पर नजर बनाए रखना इनकी जवाबदेही होती है. सांसदों से लेकर स्पीकर और सभापति की सुरक्षा व्यवस्था भी यही देखते हैं. सदन के भीतर मार्शल भी इन्हें ही रिपोर्ट करते हैं. जब पीएम आते हैं, तो यह एसपीजी से तालमेल बिठाकर उन्हें सुरक्षा व्यवस्था देते हैं.

कौन देखता है पूरी सुरक्षा व्यवस्था - संसद की सुरक्षा व्यवस्था को सुरक्षा विभाग के संयुक्त सचिव देखते हैं. उनके नीचे सुरक्षा के कई चक्र होते हैं, जिसमें दिल्ली पुलिस से लेकर केंद्रीय बलों की तैनाती की जाती है. इनके पास आधुनिकतम हथियार से लेकर नवीनतम तकनीक से युक्त मशीन उपलब्ध होते हैं.

आपने संसद भवन के बाहर देखा होगा कि रोड ब्लॉकर और टायर किलर्स का उपयोग किया जाता है. इसे एक रणनीति के रूप से रखा जाता है. हरेक लेवल पर इस तरह का एक चक्र होता है और उन्हें उस दायरे में सुरक्षा व्यवस्था को संभालना होता है.

सिक्योरिटी ऑफिसर - असिस्टेंट डायरेक्ट रैंक का एक अधिकारी इसका बॉस होता है. उनका काम संसद भवन में दाखिल होने वाले हरेक व्यक्ति की फुलप्रूफ चेकिंग सुनिश्चित करनी होती है. अगर किसी भी व्यक्ति ने पास का दुरुपयोग किया, तो उन्हें इसे रोकना होता है. ऐसी स्थिति में उन्हें डिप्टी डायरेक्टर (सुरक्षा) को उन्हें इसकी जानकारी देनी होती है.

एरिया इन चार्ज का काम होता है कि वे अपने दायरे में सभी नॉर्म्स का पूरी तरह से पालन करवाएं. हरेक एरिया का एक सुपरवाइजर होता है.

  • VIDEO | "This is a big security breach and it should be investigated properly. Action should be taken against those responsible for this breach," says RLP MP @hanumanbeniwal on Parliament security breach. pic.twitter.com/Cbo2uM7Dmy

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गैलरी यानी दर्शक दीर्घा में दाखिल होकर संसद की कार्यवाही देखने के लिए सांसदों द्वारा पास जारी किया जाता है. हालांकि, आज की घटना के बाद इस पास के जारी होने पर रोक लगा दी गई है. हरेक पास का एक आईडी नंबर होता है.

जब आप संसद परिसर में दाखिल होते हैं, तो जगह-जगह पर मेटल डिटेक्टर, रेडियो फ्रीक्वेंसी टैग्स लगे होते हैं. अगर आपके पास कुछ भी ऐसा सामान है, तो ये उसे डिटेक्ट कर लेता है. आपके पास बैग है, तो इसकी प्रॉपर चेकिंग होती है और उसके बाद उस पर स्टिकर चिपकाया जाता है, जो यह प्रूफ करता है कि इसमें कोई भी घातक सामान नहीं है. उस बैग की तीन बार चेकिंग की जाती है.

संसद के भीतर किसी भी व्यक्ति को हथियार ले जाने की अनुमति नहीं होती है. सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े कर्मियों को ही हथियार लेकर अंदर जाने की अनुमति होती है. पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस, दिल्ली पुलिस, आईबी, एसपीजी और एनएसजी के साथ समन्वय बनाता है.

हालांकि, बुधवार को जो घटना घटी है, इसने पूरी व्यवस्था को झकझोर दिया है. सवाल ये पूछा जा रहा है कि आखिर इतनी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था होने के बावजूद किस तरह से दो युवक जूते में गैस कनस्तर को छिपाकर अंदर दाखिल हो गया. निश्चित तौर पर उसने सुरक्षा के कई लेयर को धोखा दिया होगा. ऐसा माना जाता है कि कहीं न कहीं पर जिस व्यक्ति ने उसकी फ्रिस्किंग की होगी, उसने जरूर लापरवाही बरती है.

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