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आज आएगी NRC की अंतिम सूची, असमंजस में लोग
31 अगस्त को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (नेशनल सिटिजन रजिस्टर) का प्रकाशन होगा. NRC प्रकाशन से पहले कई लोगों के खुदखुशी करने की खबरें सामने आई हैं. कई ऐसे लोग हैं जो अपनी नागरिकता सिद्ध कर पाने में असफल रहे हैं. आपको बता दें जून माह में प्रकाशित ड्राफ्ट में लाखों लोगों का नाम नहीं था. लोग अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं. पढ़ें पूरी खबर...
असम एनआरसी
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Published : Aug 30, 2019, 3:09 PM IST
| Updated : Sep 28, 2019, 8:55 PM IST
गुवाहाटी: 31 अगस्त को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (नेशनल सिटिजन रजिस्टर) का प्रकाशन होगा. इससे यह मालूम हो जाएगा कि पिछले साल के मसौदे से बाहर हुए 40 लाख लोगों में से कितने इस एनआरसी लिस्ट में जगह बना पाते हैं और कितने नहीं.
असम के स्थायी निवासियों में कई लोग ऐसे हैं, जो NRC के लिए आवेदन नहीं भर सके थे. एनआरसी लिस्ट में पत्नी का नाम ना आने से करीमगंज के सोनैरपार गांव में प्रीति भूषण दत्ता नाम के एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली.
ऐसे ही बंती पुर गांव के रहीम अली ने इस डर से आत्महत्या कर ली कि उनके बच्चों का नाम NRC की सूची में नहीं आया तो उनको जेल भेज दिया जाएगा. रहीम अली की पत्नी हलिमुन नेस्सा ने बताया कि रहीम कहा करते थे कि उनके पास न्यायालय में केस लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं. और उनके बच्चों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
आज आएगी NRC की अंतिम सूची, असमंजस में लोग उन्होंने कहा कि उनको नहीं पता कि वह क्या करेंगी अगर शनिवार को प्रकाशित होने वाली सूची में उनके बच्चों का नाम नहीं आया.
सरकार की NRC के आलोचकों का मानना है कि इससे लाखों लोग बेघर हो जाएंगे और वह किसी देश के नहीं रह जाएंगे.
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार NRC जैसा नागरिकता प्लान पूरे देश में लागू करना चाहती है.
गौरतलब है कि जून में प्रकाशित रजिस्ट्री के ड्राफ्ट में असम में रहने वाले 32 लाख लोगों में से लगभग चार लाख लोगों का नाम नहीं शामिल था.
खबर है कि कुछ भाग गए और कुछ ने बरपेटा के रहने वाले अली की तरह आत्महत्या कर ली. जानकारी के लिए बता दें कि बरपेटा गुवाहाटी से 130 किमी उत्तरपश्चिम में एक गांव है.
असम के हरे भरे पहाड़ी क्षेत्र ने हमेशा से पड़ोसी बांग्लादेश से कामगारों को आकर्षित किया . कामगार अंग्रेजों के जमाने के असम के चाय के बागानों में काम करने के लिए आते रहे हैं.
NRC के समर्थकों का कहना है कि लगातार विदेशियों की संख्या बढ़ने से असम की राजनीति में स्थानीय लोगों की जगह विदेशियों का दबदबा है.
आपको बता दें कि NRC के खिलाफ प्रदर्शन में कांदाकरपारा गांव में पुलिस की कार्रवाई में चार प्रदर्शनकारियों की जान चली गई थी.
पढ़ें-बिंदुवार समझें क्या है NRC और क्यों है इस पर विवाद
जो लोग देश में गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं उनको व्यवस्था के समक्ष अपनी भारतीय नागरिका को सिद्ध करना होगा. NRC के आलोचकों का मानना है कि NRC के जरिए लाखों मुस्लिमों को बांग्लादेश भेजने की कोशिश है, जिनमें से कई गैरकानूनी तरीके से देश में घुसे थे.
हालांकि NRC के समर्थकों का मानना है कि यह असम के स्वदेशी लोगों की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने के लिए है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की उनका धर्म क्या है.
समुज्जल भट्टाचार्य जो गुवाहाटी में गैरकानूनी अप्रवासन के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा हैं, उनका कहना है कि यह हिन्दु या मुस्लिम का सवाल नहीं है.
आपको बता दें कि जो लोग ट्रीब्यूनल के सामने अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पाएंगे उनको विदेशी मान लिया जाएगा. उनको 120 दिनों को समय दिया जाएगा जिसमें वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं. अगर ऐसा नहीं होता है, कोई याचिका नही दाखिल की जाती है तो जिला मजिस्ट्रेट न्यायाधिकरण को नागरिकता छीनने के लिए एक रेफरल देते हैं.
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि जिनकी नागरिकता छिन जाती है तो उसके बाद उनके साथ क्या होगा. क्योंकि भारत का बांग्लादेश के साथ नागरिकों को वापस भेजने को लेकर कोई समझौता नहीं है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और असम राज्य की आलोचना करते हुए कहा कि हजारों लोग जो वर्षों से विदेशी घोषित किए गए थे गायब हो गए. वहीं असम की जेलों में लगभग 1,000 अन्य लोग बंद हैं.
51 वर्षिय हिंदू मंजुरी भौमिक को डर है कि अगर उनको विदेशी घोषित कर दिया गया तो उनके दो बेटों का क्या होगा. भौमिक पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं. 1991 में शादी के बाद वह असम आ गईं थी. उनको संदिग्ध मतदाता होने का नोटिस आया था. लिहाजा भौमिक ने अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पहचान पत्र की कापियां और कलकत्ता विश्वविद्याल की डिग्री तक जमा की है.
जानकारी के लिए बता दें, वर्ष 1948 में पाकिस्तान, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से शरणार्थियों के लिए आधिकारिक कटऑफ की तारीख तय की गई थी. इसे बाद में 1951 कर दिया गया था और फिर 1971 तक बढ़ा दिया था.
गुवाहाटी के रहने वाले पूर्व सैनिक मोहम्मद सनाउल्लाह कहते हैं, मुझे आश्चर्य होता है कि मैनें 30 साल देश की सेवा की और अब देश की नागरिकता के लिए भीख मांगनी पड़ रही है.
उन्होंने कहा, मुसलमानों को निशाना बनाया जाने की बात झूठ है और इसे बांग्लादेशी फैला रहे हैं. असम का जनसांख्यिकीय पैटर्न बदल गया है और असम और पूर्वोत्तर के लोगों की पहचान, भाषा, संस्कृति के लिए खतरा है.
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों की एक टीम ने कहा कि NRC देश में धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव को बढ़ा सकता है.
बता दें कि एनआरसी का प्रकाशन भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के एक माह के भीतर होना है.
गुवाहाटी: 31 अगस्त को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (नेशनल सिटिजन रजिस्टर) का प्रकाशन होगा. इससे यह मालूम हो जाएगा कि पिछले साल के मसौदे से बाहर हुए 40 लाख लोगों में से कितने इस एनआरसी लिस्ट में जगह बना पाते हैं और कितने नहीं.
असम के स्थायी निवासियों में कई लोग ऐसे हैं, जो NRC के लिए आवेदन नहीं भर सके थे. एनआरसी लिस्ट में पत्नी का नाम ना आने से करीमगंज के सोनैरपार गांव में प्रीति भूषण दत्ता नाम के एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली.
ऐसे ही बंती पुर गांव के रहीम अली ने इस डर से आत्महत्या कर ली कि उनके बच्चों का नाम NRC की सूची में नहीं आया तो उनको जेल भेज दिया जाएगा. रहीम अली की पत्नी हलिमुन नेस्सा ने बताया कि रहीम कहा करते थे कि उनके पास न्यायालय में केस लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं. और उनके बच्चों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
आज आएगी NRC की अंतिम सूची, असमंजस में लोग उन्होंने कहा कि उनको नहीं पता कि वह क्या करेंगी अगर शनिवार को प्रकाशित होने वाली सूची में उनके बच्चों का नाम नहीं आया.
सरकार की NRC के आलोचकों का मानना है कि इससे लाखों लोग बेघर हो जाएंगे और वह किसी देश के नहीं रह जाएंगे.
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार NRC जैसा नागरिकता प्लान पूरे देश में लागू करना चाहती है.
गौरतलब है कि जून में प्रकाशित रजिस्ट्री के ड्राफ्ट में असम में रहने वाले 32 लाख लोगों में से लगभग चार लाख लोगों का नाम नहीं शामिल था.
खबर है कि कुछ भाग गए और कुछ ने बरपेटा के रहने वाले अली की तरह आत्महत्या कर ली. जानकारी के लिए बता दें कि बरपेटा गुवाहाटी से 130 किमी उत्तरपश्चिम में एक गांव है.
असम के हरे भरे पहाड़ी क्षेत्र ने हमेशा से पड़ोसी बांग्लादेश से कामगारों को आकर्षित किया . कामगार अंग्रेजों के जमाने के असम के चाय के बागानों में काम करने के लिए आते रहे हैं.
NRC के समर्थकों का कहना है कि लगातार विदेशियों की संख्या बढ़ने से असम की राजनीति में स्थानीय लोगों की जगह विदेशियों का दबदबा है.
आपको बता दें कि NRC के खिलाफ प्रदर्शन में कांदाकरपारा गांव में पुलिस की कार्रवाई में चार प्रदर्शनकारियों की जान चली गई थी.
पढ़ें-बिंदुवार समझें क्या है NRC और क्यों है इस पर विवाद
जो लोग देश में गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं उनको व्यवस्था के समक्ष अपनी भारतीय नागरिका को सिद्ध करना होगा. NRC के आलोचकों का मानना है कि NRC के जरिए लाखों मुस्लिमों को बांग्लादेश भेजने की कोशिश है, जिनमें से कई गैरकानूनी तरीके से देश में घुसे थे.
हालांकि NRC के समर्थकों का मानना है कि यह असम के स्वदेशी लोगों की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने के लिए है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की उनका धर्म क्या है.
समुज्जल भट्टाचार्य जो गुवाहाटी में गैरकानूनी अप्रवासन के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा हैं, उनका कहना है कि यह हिन्दु या मुस्लिम का सवाल नहीं है.
आपको बता दें कि जो लोग ट्रीब्यूनल के सामने अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पाएंगे उनको विदेशी मान लिया जाएगा. उनको 120 दिनों को समय दिया जाएगा जिसमें वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं. अगर ऐसा नहीं होता है, कोई याचिका नही दाखिल की जाती है तो जिला मजिस्ट्रेट न्यायाधिकरण को नागरिकता छीनने के लिए एक रेफरल देते हैं.
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि जिनकी नागरिकता छिन जाती है तो उसके बाद उनके साथ क्या होगा. क्योंकि भारत का बांग्लादेश के साथ नागरिकों को वापस भेजने को लेकर कोई समझौता नहीं है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और असम राज्य की आलोचना करते हुए कहा कि हजारों लोग जो वर्षों से विदेशी घोषित किए गए थे गायब हो गए. वहीं असम की जेलों में लगभग 1,000 अन्य लोग बंद हैं.
51 वर्षिय हिंदू मंजुरी भौमिक को डर है कि अगर उनको विदेशी घोषित कर दिया गया तो उनके दो बेटों का क्या होगा. भौमिक पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं. 1991 में शादी के बाद वह असम आ गईं थी. उनको संदिग्ध मतदाता होने का नोटिस आया था. लिहाजा भौमिक ने अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पहचान पत्र की कापियां और कलकत्ता विश्वविद्याल की डिग्री तक जमा की है.
जानकारी के लिए बता दें, वर्ष 1948 में पाकिस्तान, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से शरणार्थियों के लिए आधिकारिक कटऑफ की तारीख तय की गई थी. इसे बाद में 1951 कर दिया गया था और फिर 1971 तक बढ़ा दिया था.
गुवाहाटी के रहने वाले पूर्व सैनिक मोहम्मद सनाउल्लाह कहते हैं, मुझे आश्चर्य होता है कि मैनें 30 साल देश की सेवा की और अब देश की नागरिकता के लिए भीख मांगनी पड़ रही है.
उन्होंने कहा, मुसलमानों को निशाना बनाया जाने की बात झूठ है और इसे बांग्लादेशी फैला रहे हैं. असम का जनसांख्यिकीय पैटर्न बदल गया है और असम और पूर्वोत्तर के लोगों की पहचान, भाषा, संस्कृति के लिए खतरा है.
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों की एक टीम ने कहा कि NRC देश में धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव को बढ़ा सकता है.
बता दें कि एनआरसी का प्रकाशन भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के एक माह के भीतर होना है.
RESTRICTION SUMMARY: AP CLIENTS ONLY
SHOTLIST:
ASSOCIATED PRESS – AP CLIENTS ONLY
Barpeta - 28 August 2019
1. Tilt-down from Halimun Nessa, 32, and her children to the grave of her husband Rahim Ali who committed suicide
2. Nessa's children
3. Various of Nessa washing dishes
4. SOUNDBITE (Assamese) Halimun Nessa, Widow:
"The day after he died, there was a hearing (about the non-inclusion of names in the NRC register of his five children). He was saying we don't have any money to fight this case. He was thinking that his children will be taken away. He went to the market, came back and did this (killed himself)."
5. Nessa sweeping house
6. Nessa's children
7. SOUNDBITE (Assamese) Halimun Nessa, Widow:
"It has been very difficult. I don't know where to go with my kids. We don't have any land to cultivate. My kids are yet to grow up and start earning. People are helping us, so we are surviving that way."
8. Nessa and children holding a photograph of her dead husband
9. Various of people on streets
10. Various of Kaliman Nessa, 60, mother of deceased Maidul Mullah, who died 21 July 2010 from police gunfire while protesting the National Register of Citizens
11. SOUNDBITE (Assamese) Kaliman Nessa, 60, Grieving Mother:
"AAMSU (All Assam Muslim Students Union) had asked everyone to go to the meeting and so he also went with others. Later, I heard that he has been shot. He was taken to the doctor and to Gauhati subsequently. From there, his dead body returned."
12. Mullah's tombstone reading (Assamese) "Martyr Memorial Stone Established on July 21, 2010, sacrificing his life on streets of Barpeta for the cause of NRC (National Register of Citizens), brave martyr Maidul Mullah will be remembered till eternity. Khuda Hafiz. Your parents, grandparents, present and future family members. Inaugurated on 11.09.2011"
13.Tilt-down from Nessa's face to her hands holding an identity card of her deceased son Mullah
ASSOCIATED PRESS – AP CLIENTS ONLY
Gauhati - 27 August 2019
14. Various of Samujjal Bhattacharya, Chief Advisor of All Assam Students Union (AASU) during a television interview
15. SOUNDBITE (English) Samujjal Bhattacharya, Chief Advisor of All Assam Students Union:
"It's not a question of Hindus and Muslims, illegal foreigner is a foreigner, he may be Hindu, he may be Muslims. I like to tell one thing - India is for Indians and Assam in northeast is in India. So, India, Assam in northeast, is not a dumping ground for illegal Bangladeshis."
ASSOCIATED PRESS – AP CLIENTS ONLY
Barpeta - 28 August 2019
16. Board reading (English) 'Foreigners' Tribunal'
17. Women waiting outside tribunal
18. Set-up of Manjuri Bhowmik waiting
19. Exterior of Foreigner's Tribunal
20. SOUNDBITE (Assamese) Manjuri Bhowmik, 51, Hindu Resident:
"It is not a good thing which is happening. Despite giving valid documents, people are being harassed, which is wrong. Since 10 a.m., we are sitting here. This causes immense mental stress. They give date every one month. If we miss the date somehow, the case gets more delayed. I have already submitted all the valid documents."
ASSOCIATED PRESS – AP CLIENTS ONLY
Gauhati - 27 August 2019
21. Retired Indian Army veteran Mohammad Sanaullah's photograph on a wall
22. Various of Sanaullah sitting with his wife
23. SOUNDBITE (English) Mohammad Sanaullah's, 53, Retired Indian Army Veteran:
"Now I feel very very shocked, very very shocked to me that I served 30 years to the nation, now I am beggar (begging) for the citizenship to the nation."
24. Group photograph of Sanaullah with colleagues from the Indian Army
25. SOUNDBITE (English) Samujjal Bhattacharya, Chief Advisor of All Assam Students Union:
"They (those advocating for Bangladeshis) are propagating that human rights is violated here. We'd like to ask them, who is violating human rights in the state of Assam? The illegal Bangladeshis, they're violating human rights of the indigenous people in our own motherland. Our rights is being violated by the illegal Bangladeshis."
ASSOCIATED PRESS – AP CLIENTS ONLY
Barpeta - 28 August 2019
26. Woman in village
27. Women and children in village
ASSOCIATED PRESS – AP CLIENTS ONLY
Gauhati - 27 August 2019
28. SOUNDBITE (English) Samujjal Bhattacharya, Chief Advisor of All Assam Students Union:
"The whole demographic pattern of Assam has changed. So it is a threat to the identity, language, culture of the indigenous people of Assam and northeast."
29. Various of valley
STORYLINE:
On the day before his five children were due to appear in front of a tribunal in India's northeastern state of Assam to prove they were not in the country illegally, Rahim Ali hanged himself outside their corrugated metal house in the Muslim village of Banti Pur, his wife said.
He was worried the children would be excluded from a government citizenship list that advocates hope will stem decades of unchecked immigration, his widow Halimun Nessa said standing over Ali's fresh grave.
He had feared they would be sent to a detention camp.
"He was saying we don't have any money to fight this case. He was thinking that his children will be taken away. He went to the market, came back and did this," Nessa said, adding that she doesn't know what she'll do if her children's names don't appear on the list that will be published on Saturday.
Critics of the government's plan to publish a National Register of Citizens, or NRC, fear it will leave off millions of people, rendering them stateless.
And the Hindu nationalist-led government of Prime Minister Narendra Modi, which fully backs the citizenship project in Assam, vows to roll out a similar plan nationwide.
A draft version of the registry released in June left off roughly 4 million of the more than 32 million residents of Assam.
Some people fled, while others took their own lives, like Ali did in Barpeta, about 130 kilometres (80 miles) northwest of the state capital Gauhati.
For hundreds of years the verdant, hilly state of Assam has drawn workers from neighbouring Bangladesh to its massive colonial-era tea plantations, but resentment of these immigrants runs deep.
Advocates of a citizenship registry say that because of the influx, foreigners in Assam have gained more political clout than natives.
In 2010, the government selected Barpeta, one of Assam's nine Muslim-majority districts, for a pilot NRC program as part of a plan to verify voter rolls.
When protests erupted about the program in the bucolic village of Khandakarpara, police gunfire killed four demonstrators, including 25-year-old Maidul Mullah.
He is buried behind a mosque that dates to 1916
His gravestone honours him for "sacrificing his life on streets of Barpeta for the cause of NRC."
Those suspected of being in the country illegally must prove their citizenship under what many see as a messy, overly bureaucratic system.
Critics view it as a naked attempt to deport millions of minority Muslims, many of whom have entered India from neighbouring Bangladesh.
But those who have been leading the fight for such a list say the project is meant to protect the cultural identity of Assam's indigenous people, regardless of their religion.
Samujjal Bhattacharya, who has been part of a movement in Gauhati against illegal immigration for decades, said it is "not a question of Hindus and Muslims" and Assam is "not a dumping ground for illegal Bangladeshis."
Those excluded are presumed to be foreigners unless they can prove otherwise at one of hundreds of tribunals, presided over by people who are not judges.
They have 120 days to file appeals and take their case to higher courts.
If no appeal is filed, a district magistrate makes a referral to the tribunal to strip their citizenship.
It's unclear what will happen to those ultimately branded as foreigners, because India has no treaty with Bangladesh to deport them.
Earlier this summer, India's Supreme Court criticized the central government and that of Assam state, saying thousands of people who had been declared foreigners over the years had disappeared.
About 1,000 others are held in Assam's overcrowded prisons.
Manjuri Bhowmik, a 51-year-old Hindu, dreads what it will mean for her two sons if she is declared a foreigner.
Originally from West Bengal, Bhowmik said she had lived in Assam since moving there to marry her husband in 1991.
She recently received notice that she was a suspected "D-voter," or "doubtful voter," placing her status and that of her children at risk.
Despite submitting copies of ID cards, her degree from Calcutta University and a deposition from her brother, she sat outside a foreigner tribunal in Barpeta waiting for her chance to prove her citizenship.
"People are being harassed," and "this causes great mental stress," she said.
Modi's home minister, Amit Shah, has called Bangladeshi migrants "infiltrators" and "termites."
Millions of people with unclear citizenship status were born in India to parents also born in India.
The year 1948 was decreed the official cutoff date for refugees from Pakistan, including East Pakistan - now Bangladesh.
The date was later updated to 1951, and again to 1971, the year Bangladesh became an independent country.
Hundreds of people with voting rights of diverse lineage, including Hindus and Assamese, have been arrested and detained on suspicion of being a foreign migrant.
"I feel very shocked that I served 30 years to the nation, now I am a beggar for citizenship," said army veteran Mohammad Sanaullah, who lives in Gauhati.
Bhattachary, however, a said the idea that Muslims are being targeted is propaganda pushed by a pro-Bangladeshi conspiracy.
He said the "demographic pattern of Assam has changed and there is "a threat to the identity, language, culture of the indigenous people of Assam and northeast."
A team of United Nations experts, including the special rapporteur for freedom of religion or belief, said in July that the NRC could exacerbate the xenophobic climate while fueling religious intolerance and discrimination in the country.
Shah, the home minister, has vowed to expand Assam's registry nationwide, using mandatory identification cards.
At the same time, Modi and Shah are expected to resurrect a controversial citizenship bill or take up an obscure constitutional provision to grant citizenship to persecuted believers who entered India illegally from neighbouring countries, including Hindus, Sikhs and Christians, but not Muslims.
The registry comes less than a month after the Modi government unilaterally stripped Jammu and Kashmir, India's only Muslim-majority state, of special constitutional protections that gave it political autonomy and exclusive land rights.
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Last Updated : Sep 28, 2019, 8:55 PM IST