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वाराणसी की सिटी बसों में अपने रिस्क पर कीजिए सफर, जानिए क्या है वजह

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सिटी बसों की हालत पूरी तरह से जारजार हो चुकी है. धार्मिक नगरी काशी में तो बसों में सुविधा बाकी जगहों की तरह खास होने की उम्मीद की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत पूरी तरह से जुदा नजर आ रही है. ऐसे में अगर आप सिटी बस से सफर कर रहे हैं तो रिस्क लेने के लिए पूरी तरह से तैयार रहिये.

बनारस में सिटी बसों में मूलभूत सुविधाओं की कमी.
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Published : Sep 16, 2019, 10:25 AM IST

वाराणसी: सड़क पर नियमों की अनदेखी लोगों की जेब हल्का कर दे रही है. जरा सा नियम टूटा नहीं कि चालान आपके घर पहुंच जा रहा है. हाईटेक होते दौर में हर कोई अपने को बचते बचाते सड़क पर गाड़ियों में फर्राटा भर रहा है और सुरक्षित रह रहा है, लेकिन इन सबके बीच पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने वाले लोगों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, वह भी प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में.

ईटीवी भारत ने सिटी बसों की सुविधाओं का किया रियलिटी चेक..

कपड़े अगर फड़वाना हो तो कीजिए सिटी बस में सफर
विश्वास नहीं होता तो एक बार जरा वाराणसी में चलने वाली सिटी बसों का सफर करके देख लीजिए. बसों के अंदर की फर्श गायब होती जा रही हैं. सीटें ऐसी कि अगर बैठ गए तो उसमें मौजूद कीलें या तो आप को टिटनेस दे देगी या फिर आपके महंगे कपड़े फाड़ देंगी.

इतना ही नहीं आग से बुझाने के लिए भी यहां कोई व्यवस्था नहीं है और न ही छोटी मोटी चोट लगने पर फर्स्ट एड मिलने का कोई चांस यानी अगर आप सिटी बसों में यात्रा कर रहे हैं तो अपने रिस्क पर कीजिए.

...तो ऐसे बनेगा वाराणसी का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को स्मार्ट बनाने की कवायद चल रही है. इसके तहत पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को भी स्मार्ट करने की बातें लंबे वक्त से जारी हैं, लेकिन स्मार्ट तो तब होगा जब स्थितियां बेहतर होंगी. फिलहाल 130 सिटी बसों का संचालन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहा है, लेकिन इनमें से 120 से ज्यादा ऐसी बसे हैं, जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं.

बदहाल अवस्था में सिटी बसों की सीटें
हालात यह है कि बस के अंदर घुसने से पहले ही आपको बस देखते ही डर लगने लगेगा. बस के दरवाजे रस्सियों से बांधकर रखे गए हैं और अंदर घुसने के साथ ही सीट या तो आपको लकड़ी की मिलेगी या फिर जो आरामदायक सीट मौजूद थी, उनको टूटने-फूटने के बाद वहां मौजूद कीलें आपके कपड़े फाड़ देगी.

निर्भया कांड के बाद बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर छेड़खानी रोकने की कवायद हुई थी, जिसमें करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन अब न ही सीसीटीवी है और न ही सुरक्षा की भावना आपको बस में महसूस होगी क्योंकि कैमरे गायब हैं. सिर्फ तार लटक रहे हैं.

ये भी पढ़ें: वाराणसी: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने फूंका कुलपति का पुतला

...चोट लगने पर नहीं मिलता कोई मरहम
सिटी बसों के इन हालात को देखकर तो डर लगना लाजमी है, लेकिन अगर आप सिटी बसों में सफर कर रहे हैं और हल्की-फुल्की चोट भी लग जाती है तो यह मत सोचिएगा कि यहां मौजूद फर्स्ट एड बॉक्स से आपको कोई राहत मिलेगी, क्योंकि फर्स्ट एड बॉक्स नाम के हैं. अंदर न ही मरहम है और न ही पट्टी.

ये भी पढ़ें: BHU: छात्राओं का धरना समाप्त, लंबी छु्ट्टी पर भेजे गए आरोपी प्रोफेसर

अगर कहीं ऐसा हो जाए तो...
सिटी बस में सफर करते समय अगर उसमें आग लग गई तो अग्निशमन यंत्र भी इन बसों में मौजूद नहीं है. सिर्फ स्टैंड लगे हुए हैं. इतना ही नहीं, लाखों रुपये खर्च कर लगवाए गए डिस्प्ले बोर्ड आज तक शुरू ही नहीं हो सके. डिस्प्ले बोर्ड के लिए बसों में बनाए गए बॉक्स में अब गंदे कपड़े और कबाड़ रखने का काम होता है.

कुल मिलाकर इन बसों के हालात ईटीवी भारत के रियलिटी चेक में सामने आए हैं, जिसके बाद अब सवाल उठना लाजमी है कि सड़कों पर नियम कानून के नाम पर लोगों के साथ हो रही जबरदस्त वसूली भले ही लोगों की जिंदगी बचाने का काम कर रही हो, लेकिन बसों में जिस तरह से भाड़ा खर्च करने के बाद भी लोग इस स्थिति में सफर कर रहे हैं, वह कितने सुरक्षित हैं...

वाराणसी: सड़क पर नियमों की अनदेखी लोगों की जेब हल्का कर दे रही है. जरा सा नियम टूटा नहीं कि चालान आपके घर पहुंच जा रहा है. हाईटेक होते दौर में हर कोई अपने को बचते बचाते सड़क पर गाड़ियों में फर्राटा भर रहा है और सुरक्षित रह रहा है, लेकिन इन सबके बीच पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने वाले लोगों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, वह भी प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में.

ईटीवी भारत ने सिटी बसों की सुविधाओं का किया रियलिटी चेक..

कपड़े अगर फड़वाना हो तो कीजिए सिटी बस में सफर
विश्वास नहीं होता तो एक बार जरा वाराणसी में चलने वाली सिटी बसों का सफर करके देख लीजिए. बसों के अंदर की फर्श गायब होती जा रही हैं. सीटें ऐसी कि अगर बैठ गए तो उसमें मौजूद कीलें या तो आप को टिटनेस दे देगी या फिर आपके महंगे कपड़े फाड़ देंगी.

इतना ही नहीं आग से बुझाने के लिए भी यहां कोई व्यवस्था नहीं है और न ही छोटी मोटी चोट लगने पर फर्स्ट एड मिलने का कोई चांस यानी अगर आप सिटी बसों में यात्रा कर रहे हैं तो अपने रिस्क पर कीजिए.

...तो ऐसे बनेगा वाराणसी का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को स्मार्ट बनाने की कवायद चल रही है. इसके तहत पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को भी स्मार्ट करने की बातें लंबे वक्त से जारी हैं, लेकिन स्मार्ट तो तब होगा जब स्थितियां बेहतर होंगी. फिलहाल 130 सिटी बसों का संचालन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहा है, लेकिन इनमें से 120 से ज्यादा ऐसी बसे हैं, जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं.

बदहाल अवस्था में सिटी बसों की सीटें
हालात यह है कि बस के अंदर घुसने से पहले ही आपको बस देखते ही डर लगने लगेगा. बस के दरवाजे रस्सियों से बांधकर रखे गए हैं और अंदर घुसने के साथ ही सीट या तो आपको लकड़ी की मिलेगी या फिर जो आरामदायक सीट मौजूद थी, उनको टूटने-फूटने के बाद वहां मौजूद कीलें आपके कपड़े फाड़ देगी.

निर्भया कांड के बाद बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर छेड़खानी रोकने की कवायद हुई थी, जिसमें करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन अब न ही सीसीटीवी है और न ही सुरक्षा की भावना आपको बस में महसूस होगी क्योंकि कैमरे गायब हैं. सिर्फ तार लटक रहे हैं.

ये भी पढ़ें: वाराणसी: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने फूंका कुलपति का पुतला

...चोट लगने पर नहीं मिलता कोई मरहम
सिटी बसों के इन हालात को देखकर तो डर लगना लाजमी है, लेकिन अगर आप सिटी बसों में सफर कर रहे हैं और हल्की-फुल्की चोट भी लग जाती है तो यह मत सोचिएगा कि यहां मौजूद फर्स्ट एड बॉक्स से आपको कोई राहत मिलेगी, क्योंकि फर्स्ट एड बॉक्स नाम के हैं. अंदर न ही मरहम है और न ही पट्टी.

ये भी पढ़ें: BHU: छात्राओं का धरना समाप्त, लंबी छु्ट्टी पर भेजे गए आरोपी प्रोफेसर

अगर कहीं ऐसा हो जाए तो...
सिटी बस में सफर करते समय अगर उसमें आग लग गई तो अग्निशमन यंत्र भी इन बसों में मौजूद नहीं है. सिर्फ स्टैंड लगे हुए हैं. इतना ही नहीं, लाखों रुपये खर्च कर लगवाए गए डिस्प्ले बोर्ड आज तक शुरू ही नहीं हो सके. डिस्प्ले बोर्ड के लिए बसों में बनाए गए बॉक्स में अब गंदे कपड़े और कबाड़ रखने का काम होता है.

कुल मिलाकर इन बसों के हालात ईटीवी भारत के रियलिटी चेक में सामने आए हैं, जिसके बाद अब सवाल उठना लाजमी है कि सड़कों पर नियम कानून के नाम पर लोगों के साथ हो रही जबरदस्त वसूली भले ही लोगों की जिंदगी बचाने का काम कर रही हो, लेकिन बसों में जिस तरह से भाड़ा खर्च करने के बाद भी लोग इस स्थिति में सफर कर रहे हैं, वह कितने सुरक्षित हैं...

Intro:स्पेशल स्टोरी--- रियलिटी चेक ईटीवी भारत वाराणसी: सड़क पर नियमों की अनदेखी लोगों की जेब हल्का कर दे रही है जरा सा नियम टूटा नहीं चालान आपके घर पहुंच जा रहा है हाईटेक होते दौर में हर कोई अपने को बचते बचाते सड़क पर गाड़ियों में फर्राटा भर रहा है और सुरक्षित रह रहा है लेकिन इन सबके बीच पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने वाले लोगों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं वह भी प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विश्वास नहीं आता एक बार जरा वाराणसी में चलने वाली सिटी बसों का सफर करके देख लीजिए बसों के अंदर की फर्श गायब होती जा रही है सीटें ऐसी कि अगर बैठ गए तो उसमें मौजूद कि या तो आप को टिटनेस दे देगी या फिर आपके मांगे कपड़े फाड़ देगी इतना ही नहीं आग से लड़ने के लिए नहीं यहां कोई व्यवस्था है और ना ही छोटी मोटी चोट लगने पर फर्स्ट एड मिलने का कोई चांस यानी अगर आप सिटी बसों में यात्रा कर रहे हैं तो अपने रिस्क पर कीजिए.


Body:वीओ-01 दरअसल प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को स्मार्ट बनाने की कवायद चल रही है इसके तहत स्मार्ट पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को भी करने की बातें लंबे वक्त से जारी हैं लेकिन स्मार्ट तो तब होगा जब स्थितियां बेहतर होंगी फिलहाल 130 सिटी बसों का संचालन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहा है लेकिन इनमें से 120 से ज्यादा ऐसी बसे हैं जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं हालात ही हैं बस के अंदर घुसने से पहले ही आपको बस देखते ही डर लगने लगेगा बस के दरवाजे रस्सियों से बांधकर रखे गए हैं और अंदर घुसने के साथ ही सीट या तो आपको लकड़ी की मिलेगी या फिर जो आरामदायक सीट मौजूद थी उनको टूटने फूटने के बाद वहां मौजूद किले आपके कपड़े फाड़ नहीं आपको चोटिल करने के लिए आपका इंतजार कर रहे होंगे निर्भया कांड के बाद बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर छेड़खानी रोकने की कवायद हुई थी जिसमें करोड़ों रुपए खर्च हुए लेकिन अब ना ही सीसी कैमरे हैं और ना ही सुरक्षा की भावना आपको बस में महसूस होगी क्योंकि कैमरे गायब हैं सिर्फ तार लटक रही है.


Conclusion:वीओ-02 सिटी बसों के इन हालात को देखकर तो डर लगना लाजमी है लेकिन अगर आप सिटी बसों में सफर कर रहे हैं और हल्की-फुल्की चोट भी लग जाती है तो यह सोचेगा कि यहां मौजूद फर्स्ट एड बॉक्स से आपको कोई राहत मिलेगी क्योंकि फर्स्ट एड बॉक्स नाम के हैं अंदर ना ही मरहम है ना पट्टी और अगर आग लग गई तो इसमें आग से लड़ने की व्यवस्था के लिए लगाए गए फायर इंस्टिगयूटर्स अब इन बसों में मौजूद ही नहीं सिर्फ स्टैंड लगे हैं और वह गायब हैं इतना ही नहीं लाखों रुपए खर्च कर लगाएगा डिस्प्ले बोर्ड आज तक शुरू ही नहीं हो सके डिस्प्ले बोर्ड के लिए बसों में बनाए गए बॉक्स में अब गंदे कपड़े और कबाड़ रखने का काम होता है कुल मिलाकर इन बसों के हालात ईटीवी भारत के रियल्टी चेक में सामने आए हैं जिसके बाद अब सवाल उठना लाजमी है कि सड़कों पर नियम कानून के नाम पर लोगों के साथ हो रही जबरदस्त वसूली भले ही लोगों की जिंदगी बचाने का काम कर रही हो लेकिन बसों में जिस तरह से भाड़ा खर्च करने के बाद भी लोग इस स्थिति में सफर कर रहे हैं वह कितने सुरक्षित हैं और अगर कोई घटना होती है तो उनके साथ सच में क्या होगा यह भगवान भरोसे है. बाईट- चंद्रशेखर सिंह, चालक रोडवेज बाईट- शिव शंकर, यात्री गोपाल मिश्र 9839809074
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