प्रयागराज: न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश या कमेटी की संस्तुति पर बाल गृह में रखी गयी नाबालिग की निरुद्धि को अवैध करार देते हुए क्या बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की जा सकती है. इस मुद्दे पर न्यायिक निर्णयों में मतभिन्नता को देखते हुए याचिका वृहदपीठ को निर्णय लेने के लिए मुख्य न्यायाधीश को भेजी गई है. वैध आदेश से निरूद्धि के खिलाफ याचिका पोषणीय है या नहीं ,फैसला वृहदपीठ द्वारा किया जायेगा. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति पी के श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कुमारी रचना व अन्य की बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है.
याची का कहना है कि 16 फरवरी 2020 को परिवार की तरफ से एफआईआर दर्ज कराई गई थी. नाबालिग लड़की को बरामद कर पुलिस ने मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था. कोर्ट मे पेश लड़की की मां ने कोर्ट से लडकी को चिल्ड्रेन होम मे रखने का अनुरोध किया. जिसपर चाइल्ड वेल्फेयर कमेटी की भी संस्तुति है.
मां का आरोप है कि उसकी नाबालिग लड़की को गुमराह कर अपहरण कर लिया गया है. जब कि लड़की ने कहा कि मां ने उसे मारा और वह अपनी मर्जी से सहेली याची के साथ रह रही है. जबकि एफआईआर में याची के भाई व परिवार पर लड़की के अपहरण का आरोप लगाया गया है. सरकारी अधिवक्ता का कहना था कि मजिस्ट्रेट के आदेश से चिल्ड्रेन होम मे रखा गया है. इसके खिलाफ याची को अपील करने का अधिकार है.
याची और विपक्षी ने अपने पक्ष मे फैसले दिए. इन फैसलों मे विरोधाभास है. एक में मजिस्ट्रेट के आदेश से निरूद्धि को वैध माना गया है और कहा है कि यह न्यायिक प्रक्रिया का अंग है, तो दूसरे फैसलों मे कहा गया है कि मजिस्ट्रेट या कमेटी के आदेश पर यदि निरूद्धि विधि विरूद्ध है. तो उसके खिलाफ बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की जा सकती है. जुवनायल जस्टिस (केयर एण्ड प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन)एक्ट के तहत बच्चे की इच्छा के विपरीत रखना अवैध निरूद्धि मानी जाएगी. वृहदपीठ को इसी मुद्दे पर फैसला देना है. कोर्ट ने याची को निरूद्धि आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करने की छूट दी है.