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नगर पालिका को दुकान किराए का बकाया भू-राजस्व के रूप में वसूलने का अधिकार नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में नगर पालिका को दुकान किराए का बकाया भू-राजस्व के रूप में वसूलने का अधिकार नहीं होने की बात कही है. हाइकोर्ट ने ये आदेश एक वसूली प्रमाणपत्रों की चुनौती वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

Allahabad High Court
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Published : Jul 11, 2023, 10:48 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि यूपी नगर पालिका अधिनियम 1916 किसी भी नगर पालिका को किसी दुकान के किराए की बकाया राशि को भू-राजस्व के बकाए के रूप में वसूलने का अधिकार नहीं देता है. यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय एवं न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने मंजीत सिंह व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दी.

याचिका में बरेली की बहेड़ी नगर पालिका परिषद के कार्यकारी अधिकारी ने कलेक्टर को भेजे गए वसूली प्रमाणपत्रों को चुनौती दी थी. ये वसूली प्रमाण पत्र याचियों से बकाया किराया की वसूली के लिए जारी किए गए थे. याचिका में कहा गया था कि नगर पालिका उन्हें आवंटित दुकान का बकाया किराया, केवल अधिनियम 1916 की धारा 292 के तहत वसूल सकती है. इसमें कहा गया कि भूमि पर किराया बकाया नहीं है और याचियों द्वारा देय किराया टैक्स नहीं है. इसलिए किसी भी बकाया को धारा 173-ए या धारा 291 के तहत भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल नहीं किया जा सकता है.

इसके साथ ही अधिनियम 1916 के अध्याय-छह के तहत धारा 167 की आवश्यकता को पूरा करने वाले बिल को पहले लेना नगरपालिका पर निर्भर था. याचियों के उक्त बिल को पूरा करने में विफल रहने पर मांग का नोटिस जारी किया जाना था. यदि याची मांग नोटिस के अनुसार भुगतान करने में विफल रहे, तो बकाया राशि केवल अधिनियम 1916 की धारा 169 के तहत वारंट जारी कर वसूली जा सकती है. वारंट को केवल बकाए दार की चल संपत्ति की बिक्री अधिनियम 1916 की धारा 170, 171 और 172 के तहत निर्धारित तरीके से निष्पादित की जा सकती है.

सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि अधिनियम 1916 की धारा 292 के अनुसार नगर पालिका द्वारा दुकान आवंटित किए जाने के बाद उस पर कब्जा करने वाले व्यक्ति से दुकान के किराए का कोई भी बकाया केवल निर्धारित तरीके से ही वसूला जा सकता है. अध्याय-छह में किराया कोई टैक्स नहीं है. इसलिए इसे अधिनियम की धारा 173-ए के तहत भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल नहीं किया जा सकता है.

खंडपीठ ने कहा कि अनुसूची 4 के अवलोकन से स्पष्ट है कि बकाया के भुगतान के लिए डिफॉल्टर को 15 दिन का समय दिया जाना है. यदि डिफॉल्टर मांग नोटिस को पूरा करने में विफल रहता है, तो अध्यक्ष या कार्यकारी अधिकारी की ओर से जारी वारंट के तहत बकाया की वसूली को केवल बकाएदार की चल संपत्ति की बिक्री अधिनियम 1916 की धारा 170, 171 और 172 के तहत निर्धारित तरीके से निष्पादित की जा सकती है. लेकिन, अधिनियम 1916 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो नगर पालिका को किसी दुकान के किराये के बकाया को भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूलने का अधिकार देता है.

ये भी पढ़ेंः हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना का मामले में प्रभागीय वन अधिकारी पर तय होगा आरोप

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि यूपी नगर पालिका अधिनियम 1916 किसी भी नगर पालिका को किसी दुकान के किराए की बकाया राशि को भू-राजस्व के बकाए के रूप में वसूलने का अधिकार नहीं देता है. यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय एवं न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने मंजीत सिंह व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दी.

याचिका में बरेली की बहेड़ी नगर पालिका परिषद के कार्यकारी अधिकारी ने कलेक्टर को भेजे गए वसूली प्रमाणपत्रों को चुनौती दी थी. ये वसूली प्रमाण पत्र याचियों से बकाया किराया की वसूली के लिए जारी किए गए थे. याचिका में कहा गया था कि नगर पालिका उन्हें आवंटित दुकान का बकाया किराया, केवल अधिनियम 1916 की धारा 292 के तहत वसूल सकती है. इसमें कहा गया कि भूमि पर किराया बकाया नहीं है और याचियों द्वारा देय किराया टैक्स नहीं है. इसलिए किसी भी बकाया को धारा 173-ए या धारा 291 के तहत भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल नहीं किया जा सकता है.

इसके साथ ही अधिनियम 1916 के अध्याय-छह के तहत धारा 167 की आवश्यकता को पूरा करने वाले बिल को पहले लेना नगरपालिका पर निर्भर था. याचियों के उक्त बिल को पूरा करने में विफल रहने पर मांग का नोटिस जारी किया जाना था. यदि याची मांग नोटिस के अनुसार भुगतान करने में विफल रहे, तो बकाया राशि केवल अधिनियम 1916 की धारा 169 के तहत वारंट जारी कर वसूली जा सकती है. वारंट को केवल बकाए दार की चल संपत्ति की बिक्री अधिनियम 1916 की धारा 170, 171 और 172 के तहत निर्धारित तरीके से निष्पादित की जा सकती है.

सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि अधिनियम 1916 की धारा 292 के अनुसार नगर पालिका द्वारा दुकान आवंटित किए जाने के बाद उस पर कब्जा करने वाले व्यक्ति से दुकान के किराए का कोई भी बकाया केवल निर्धारित तरीके से ही वसूला जा सकता है. अध्याय-छह में किराया कोई टैक्स नहीं है. इसलिए इसे अधिनियम की धारा 173-ए के तहत भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल नहीं किया जा सकता है.

खंडपीठ ने कहा कि अनुसूची 4 के अवलोकन से स्पष्ट है कि बकाया के भुगतान के लिए डिफॉल्टर को 15 दिन का समय दिया जाना है. यदि डिफॉल्टर मांग नोटिस को पूरा करने में विफल रहता है, तो अध्यक्ष या कार्यकारी अधिकारी की ओर से जारी वारंट के तहत बकाया की वसूली को केवल बकाएदार की चल संपत्ति की बिक्री अधिनियम 1916 की धारा 170, 171 और 172 के तहत निर्धारित तरीके से निष्पादित की जा सकती है. लेकिन, अधिनियम 1916 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो नगर पालिका को किसी दुकान के किराये के बकाया को भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूलने का अधिकार देता है.

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