प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका की सुनवाई करते हुए में कहा कि दुष्कर्म पीड़ित महिला को बच्चे को जन्म देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. ऐसा करना उस महिला की गरिमा पूर्ण जीवन जीने के अधिकार से वंचित करने के समान होगा. कोर्ट ने कहा, दुष्कर्म पीड़िता को इस बात का पूरा अधिकार है कि वह बच्चे को जन्म दे अथवा न दे. न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने दिया है.
दुष्कर्म पीड़िता की ओर से हाईकोर्ट में अर्जी देकर कहा गया था कि 12 वर्ष की उम्र में उसके साथ दुष्कर्म किया गया और उसे 25 सप्ताह का गर्भ है. जिसे समाप्त करने की अनुमति दी जाए. याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अलीगढ़ के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग के 5 चकित्सकों की टीम से पीड़िता का मेडिकल टेस्ट कराने का निर्देश दिया है. साथ ही जल्द ही रिपोर्ट को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.
दाखिल याचिका के अनुसार, दुष्कर्म पीड़िता मूकबधिर है. पीड़िता के पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति काफी समय से उसका यौन शोषण कर रहा था. शिकायत के बाद आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ तथा पीड़िता की मेडिकल जांच कराने पर उसे 25 सप्ताह का गर्भ होने की जानकारी मिली. मेडिकल बोर्ड की राय में 24 सप्ताह से अधिक का गर्भ होने पर गर्भपात के लिए अदालत की अनुमति लेना जरूरी है. जिस पर पीड़िता ने अपनी मां के माध्यम से याचिका दाखिल की.
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