मुजफ्फरनगर: जिले की सदर तहसील से करीब 15 बंधुआ मजदूरों को पुलिस ने मुक्त कराया. इसमें औरतें और बच्चे भी शामिल हैं. उन्हें सदर ब्लॉक के बझेड़ी गांव से मुक्त कराया गया है. सिकरेडा एवं शाहपुर ब्लॉक के गांवों के इन भट्ठा मजदूरों ने बताया कि उनकी हालत यहां दयनीय बनी हुई थी. मजदूर दानिश ने बताया कि इन्हें पिछले 6 महीने से काम का भुगतान नहीं हुआ है. जब इन्होंने पैसे की मांग की तो इन्हें डराया और धमकाया गया.
इन मजदूरों ने किसी तरह नई दिल्ली में मानव अधिकार संघठनों से संपर्क किया. दिल्ली से नेशनल कैम्पेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बोंडेड लेबर के कार्यकर्ताओं ने जिले में काम कर रही ऐड संस्था के पदाधिकारियों और प्रशासन से संपर्क किया. इसके बाद इन मजदूरों को मुक्त करने का बीड़ा उठाया. टीम ने ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क से संपर्क किया और एक टीम बनाकर इस अभियान के लिए दिल्ली से रवाना किया.
जिलाधिकारी सदर ने बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया
उपजिलाधिकारी दीपक कुमार ने दिल्ली से आई मानाधिकारवादियों की टीम को लेकर बझेड़ी गांव के ईंट भट्ठे पर रेस्क्यू अभियान को अंजाम दिया. जिला प्रशासन के सहयोग और साझा प्रयास से इस अभियान को सफलता मिली. ईंट-भट्ठे पर मजदूरों की हालत काफी दयनीय थी. उनके लिए शौचालय आदि की व्यवस्था भी नहीं थी. ईंट-पत्थर में बारिश के बीच मौके पर ही सभी के समक्ष लेबर ऑफिसर शाहिद अली ने सभी मजदूरों के बयान दर्ज किए.
मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं बंधुआ मुक्ति मोर्चा के सचिव निर्मल गोराना ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना 2016 के तहत पुनर्वासित करना चाहिए. पुलिस अधिकारी ने कहा कि भट्ठा मालिक को हर मजदूर का इन एवं आउट पलायन पंजीकरण अपने रजिस्टर में करना चाहिए.
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रेस्क्यू अभियान टीम का हिस्सा रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता कमर इंतेखाब ने कहा कि भट्ठा मजदूरों की हालत वर्तमान में बहुत दयनीय है. अधिकतर मजदूर भूमिहीन एवं अत्यंत गरीब हैं, जो बंधुआ मजदूरी के जाल में फंस जाते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अशिक्षित दलित एवं मुस्लिम परिवार अधिक शोषित है. ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के वकील विनोद कुमार ने रेस्क्यू अभियान में बताया कि बंधुआ मजदूरों को तीन-तीन लाख रुपये प्रति मजदूर आवास एवं खेती के लिए भूमि आवंटन से लेकर मजदूरों के शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं तक पुनर्वास के तहत प्रदान की जानी चाहिए, ताकि पीड़ितों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके.