मेरठ : भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है. उन्होंने नगीना लोकसभा सीट को अपने लिए चुना है. क्या नगीना में लोकप्रिय हैं या और कोई वजह है? क्या बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता का फायदा यहां रावण को मिल सकता है. क्या बीजेपी अपनी पिछली हार का बदला नहीं लेगी, क्या बसपा अपनी जीती हुई सीट को यूं ही छोड़ सकती है? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब और इस लोकसभा सीट का समीकरण.
बीएसपी ने दर्ज की थी जीत : लोकसभा चुनाव देश में इस साल होने हैं. तमाम दल अपने-अपने स्तर से अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए जतन करते दिखाई दे रहे हैं. बीजेपी अपनी पावर बढ़ाने के लिए कार्य कर रही है तो वहीं विपक्ष की बाकी पार्टियां भी अपनी पावर बढ़ाने को प्रयासरत हैं. बात अगर पश्चिमी यूपी की करें तो यूं तो इस सर्दी के सीजन में पारा लगातार गिर रहा है, लेकिन ऐसे में चंद्रशेखर ने खुद को पश्चिमी यूपी की नगीना लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया है. भीम आर्मी चीफ और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद का नगीना से चुनाव लड़ने के निर्णय को लेकर कहना है कि पार्टी के लोग ये चाहते हैं. बता दें कि पिछले चुनाव में नगीना से बीएसपी ने जीत दर्ज की थी, तब बीजेपी के प्रत्याशी को पटखनी देकर सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी ने यहां जीत दर्ज की थी. यानी जिस सीट को बीएसपी ने बीजेपी से छीना अब उस सीट पर चन्द्रशेखर की निगाहें हैं.
मीरा कुमार ने दर्ज की थी जीत : इस बारे में ईटीवी भारत से वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं कि 'इसके पीछे सीधा सा कारण है कि चंद्रशेखर युवा चेहरे हैं. अभी तक यह मान कर चलिए कि वह दलितों की ही राजनीति भी कर रहे हैं. वेस्ट यूपी में कुछ ही सीट ऐसी हैं जहां सबसे बड़ा वोट बैंक है. नगीना रिजर्व लोकसभा सीट है, कभी नगीना भी जब बिजनौर का हिस्सा हुआ करती थी तब वहां से लोकसभा की अध्यक्ष रहीं मीरा कुमार ने चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी. वर्तमान में बसपा का कब्जा इस सीट पर है. यहां बीएसपी के गिरीश कुमार यहां से एमपी हैं. इससे पहले बीजेपी ने यहां जीत दर्ज की थी. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं कि 'यूं कहिए की नगीना अपने आप में दलितों का गढ़ है. अब कोई भी दलितों की राजनीति करने वाला शख्स ये चाहेगा कि वह अपने गढ़ से चुनाव लड़े ताकि उसे जितने में आसानी हो और आगे बढ़ने में आसानी हो. सादाब रिजवी मानते हैं कि चंद्रशेखर ने इसीलिए इस क्षेत्र को चुना है, क्योंकि वह वेस्टर्न यूपी की राजनीति में सक्रिय रहते और नजदीकी जिले सहारनपुर के ही रहने वाले हैं. चंद्रशेखर यहां मजबूत स्थिति में भी रहने वाले हैं. दलितों में खासकर युवाओं में चंद्रशेखर का क्रेज भी माना जाता है. वह कहते हैं कि आज की तारीख में बहुजन समाज पार्टी का दावा यहां ज्यादा मजबूत है, क्योंकि बीएसपी का ही प्रत्याशी यहां से जीतकर पिछली बार लोकसभा गया था. पहले भी जब बीजेपी जीती तो बहुजन समाज पार्टी से ही टक्कर रही.'
वोट प्रतिशत में भी आई गिरावट : वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं 'पिछले कुछ समय से राजनीति में जो बदलाव की स्थिति देखी जा रही है. खासकर 2013 के बाद जब से चंद्रशेखर भीम आर्मी के बाद उभरे हैं. दूसरी तरफ वेस्ट यूपी में ही नहीं, पश्चिमी यूपी में भी बीएसपी का ग्राफ गिरा है. भले ही फिर वे चाहे लोकसभा चुनाव हो, विधानसभा चुनाव हो या फिर निकाय चुनाव हो, उसके वोट प्रतिशत में भी गिरावट आई है. सीटें भी घटी हैं. चंद्रशेखर जनता की नजर में उभरते हुए चेहरे हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि सियासी तौर पर वह अपने आप को वहां ज्यादा मजबूती से पेश कर पाएंगे. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं कि 'ये भी माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में अगर मायावती कमजोर होंगी तो सियासी तौर पर जो दलित वोट है वह चंद्रशेखर या उनके दल की तरफ डायवर्ट हो सकता है. बीजेपी के लिए मुश्किल यहां यह है कि 2019 का जो चुनाव है उसमें बीजेपी को बसपा ने पटखनी दी है. ऐसे में इस लोकसभा क्षेत्र नगीना में जो विधानसभा आती है वहां सपा-रालोद का भी जनाधार ठीक ठाक है. ऐसे में अगर गठबंधन बना रहा और सपा, रालोद, कांग्रेस एक साथ गठबंधन में रहे और चंद्रशेखर को इनका साथ मिल जाता है तो बीजेपी के लिए ऐसे में आसान नहीं है कि वे अपनी 2014 वाली सीट वापस ले पाएं. ऐसे में अगर बीएसपी की तरफ से कुछ और प्लानिंग की गई तो अलग बात है, नहीं तो इस सीट पर चंद्रशेखर ने जो चुनाव लड़ने की बात कही है उसके बाद यहां उनके लिए सम्भावनाएं बन रही हैं कि वे यहां मजबूती से अपनी दावेदारी पेश करें.'
2008 में बनाया गया था लोकसभा क्षेत्र : वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं 'नगीना लोकसभा सीट जब से अस्तित्व में आई है तभी से यहां हर बार नए चेहरे को जनता ने लोकसभा भेजा है. 2009 में नगीना लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी, वैसे यह बिजनौर जिले की एक तहसील है. कभी ये सीट बिजनौर लोकसभा सीट का ही हिस्सा हुआ करती थी, लेकिन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिश पर इसे बिजनौर से अलग करके अलग लोकसभा क्षेत्र बनाया गया था. वर्तमान में नगीना लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटों का क्षेत्रफल है, जिनमें नजीबाबाद, नगीना, धामपुर, नहटौर और नूरपुर शामिल है. गौर करने वाली बात यह भी होगी कि क्या बीएसपी अपनी जीती हुई इस सीट को यूं ही छोड़ने के लिए तैयार होगी, क्या बीजेपी हार का बदला लेने के लिए मजबूत प्रयास नहीं करेगी. इन विषयों पर गौर करने के बाद माना जा सकता है कि यहां जो कुछ भी आगामी चुनावों में होने जा रहा है वह बेहद ही दिलचस्प होने वाला है. फिलहाल यह भी कहा जाता है कि नगीना एक ऐसी लोकसभा है जहां जनता ने किसी पार्टी को दूसरा मौका नहीं दिया. बीजेपी, सपा के पास ये सीट रह चुकी है बसपा का वर्तमान में कब्जा है और अगर ऐसे में अब इस वर्ष मुकाबला भी होना है. सर्दी के इस सीजन में भीम आर्मी मुखिया ने सर्दी में यहां की सियासत को गर्मा दिया है.'