लखनऊ : एक बार फिर से यूनिफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता ) पर चर्चाओं का बाजार गर्म हाे गया है. मुसलमानों की सबसे बड़ी संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने रविवार को इस मसले काे लेकर अहम मीटिंग की. कई घंटों तक नदवा कालेज में चली इस मीटिंग के बाद इस मामले पर सियासी पार्टियों और दूसरे धर्मों के लाेगाें से बातचीत करने का निर्णय लिया गया. बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने स्पष्ट किया कि पहले बातचीत से सुलझाने का प्रयास किया जाएगा. बात नहीं बनी ताे दूसरे रास्ते भी अपनाए जाएंगे.
बैठक में महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह ने कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड केवल मुसलमानों का मुद्दा नहीं है. इस पर हम देश के विभिन्न अल्पसंख्यक वर्ग के लाेगाें से बातचीत करेंगे. महासचिव ने बताया कि बैठक में बहुत से बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा हुई. यूनिफार्म सिविल कोड के अलावा देश केे विभिन्न अदालतों में चल रहे मुस्लिम पर्सनल लाॅ से संबंधित मुकदमाें पर भी चर्चा हुई. महासचिव ने कहा कि ऐसा महसूस होता है कि देश में नफरत का जहर घोला जा रहा है. अगर भाईचारा खत्म हो गया तो देश का बड़ा नुकसान होगा. बैठक के जरिए हुकूमत, मजहबी रहनुमाओं, दानिश्वरों, कानूनदानों, सियासी रहनुमाओं से अपील की जाती है कि नफरत की इस आग को बुझाने में मदद करें.
उसूलों को कायम रखना हुकूमत हुकूमत की जिम्मेदारी : बोर्ड की बैठक में कहा गया कि कानून इंसानी समाज को सभ्य बनाता है. जालिमों को कटघरे में खड़ा करता है, मजलूमों को इंसाफ दिलाता है. इसलिए यह जरूरी है कि कानून को अपने हाथ में न लें. बदकिस्मती से देश में कानून पर पूरी तरह से अमल किए बगैर मकानों को गिराया जा रहा है. संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करने वालों को गिरफ्तार किया जाता है. जुल्म साबित हुए बिना जेल में डाल दिया जाता है. देश के संविधान की बुनियाद बराबरी, इंसाफ और आजादी पर है. इन उसूलों को कायम रखना हुकूमत की भी जिम्मेदारी और न्यायालय की भी. अदालतों से यह अपील की जाती है कि वह कमजोर नागरिकों और अल्पसंख्यकों पर होने वाले अन्याय का जायजा लें.
यूनिफॉर्म सिविल कोड अलोकतांत्रिक : मीटिंग में कहा गया कि देश के संविधान में हर शहरी को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी दी गई है. इसमें पर्सनल लाॅ शामिल है. हुकूमत से अपील है कि इस मसले काे छाेड़ दिया जाए. इससे देश को कोई लाभ नहीं होगा. देश की अन्य बड़ी समस्याओं पर ध्यान दें. इबादतगाहों से संबंधित 1991 का कानून खुद हुकूमत का बनाया हुआ कानून है. उसको कायम रखना सरकार का कर्तव्य है.
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