लखनऊ: यूपी की राजधानी लंबे समय से अजादारी का केंद्र रहा है. नवाबों के दौर से यहां शाही जुलूस और इमाम हुसैन की याद में रिवायती अंदाज में मोहर्रम मनाया जाता रहा है, लेकिन कोरोना के चलते इस वर्ष सैकड़ों वर्षो पुरानी परंपरा भी टूटी है. इतिहास में पहली बार ऐसा देखा जा रहा है, जब आशूरा (10 मोहर्रम) को ताजिए नहीं निकाले गए. कोरोना संक्रमण के खतरे के मद्देनजर हाईकोर्ट के आदेश और सरकार की गाइडलाइंस का पूर्ण रूप से पालन किया गया.
सड़कों पर भारी पुलिस बल तैनात
नवाब सादात अली खां के दौर में लखनऊ स्थित सबसे बड़ी कर्बला तालकटोरा कायम की गई. यह वही कर्बला है, जहां पर 10 मोहर्रम का जुलूस आकर सम्पन्न होता था और बड़ी तादाद में शहर भर से तजियेदार अपने घरों से ताजिया लाकर कर्बला तालकटोरा में दफन करते थे. वहीं इस बार कर्बला तालकटोरा पर रविवार 10 मोहर्रम को लॉकडाउन और हाईकोर्ट के आदेश के तहत भारी पुलिस बल तैनात रहा और कर्बला के मुख्य द्वार पर ताला जड़ा रहा. पुराने लखनऊ में चप्पे-चप्पे पर पुलिस और आरएएफ के साथ पीएसी बल तैनात रहा. वहीं आला अधिकारियों की निगरानी में सीसीटीवी और ड्रोन कैमरों से भी पूरे माहौल पर नजर बनाए रखी गई.
सड़कों पर सन्नाटा
कर्बला तालकटोरा के मुतवल्ली सय्यद फैजी ने बताया कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि 10 मोहर्रम यानी आशूरा के दिन कर्बला में ताजिये दफन नहीं किये जा सके. पुराने लखनऊ में 10 मोहर्रम के दिन हजारों की तादाद में लोग एकजुट होकर आशूरा का जुलूस निकालते और मातम सीनाजनी करते हुए कर्बला तालकटोरा में जुलूस को सम्पन्न करते हैं. वहीं कोविड 19 की महामारी के कारण इस वर्ष जुलूसों के साथ ताजिया निकालने की भी इजाजत नहीं होने के चलते सड़को पर सन्नाटा पसरा रहा.