लखनऊ : बेगम अख्तर का नाम आते ही मन में गजल, ठुमरी और दादरा का ख्याल आता है जिसे सुनकर लोग झूम उठते थे. गजल, ठुमरी और दादरा को बुलंदियों पर ले जाने वालीं मल्लिका ए तरन्नुम बेगम अख्तर (Singer Begum Akhtar) के दिल में हमेशा ही लखनऊ धड़कता रहा. उनकी आवाज का जादू ऐसा था कि कोई एक बार सुन ले तो उनका दीवाना हो जाए. उनकी शख्सियत बेमिसाल थी और लखनऊ को अपने इस हुनरमंद शख्सियत पर नाज था.
सात अक्टूबर 1914 को फैजाबाद में जन्मीं बेगम अख्तर 1938 में लखनऊ आईं और यहीं की हो कर रह गईं. उनका लखनऊ आना आइडियल फिल्म कंपनी के काम से हुआ था. फिर उनकी मुलाकात लखनऊ में बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से हुई. ये मुलाकात निकाह में बदल गई और अख्तरी बाई बेगम अख्तर हो गईं. इसके बाद उन्हें गाना छोड़ना भी पड़ा. वो करीब पांच साल तक नहीं गा सकीं और बीमार भी रहने लगीं. उन्होंने लखनऊ आकाशवाणी में गाने का निर्णय लिया और रिकॉर्डिंग स्टूडियो लौटीं. संगीत का सिलसिला दोबारा शुरू हो गया, जो उनकी अंतिम सांस तक चलता रहा. बेगम ने 30 अक्टूबर 1974 को दुनिया छोड़ दी. उनकी वसीयत के अनुसार पुराने लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में उनकी मां के बगल में ही उनकी मजार है. उनकी जन्म और पुण्यतिथि पर कुछ लोग जुटते हैं और मोमबत्ती जला कर चले जाते हैं. बेगम अख्तर की मजार को संवारने का काम उनकी शिष्या स्व. शांति हीरानंद और सनतकदा संस्था के प्रयासों से संभव हो सका. केंद्र सरकार की ओर से भी इस काम के लिए मदद मिली. यहां पर बेगम अख्तर के साथ उनकी अम्मी की भी मजार है. दोनों को ही संवारा गया. बेगम अख्तर के प्रशंसक आज भी यहां आते हैं और सुकून पाते हैं.
इतिहासकार रवि भट्ट कहते हैं कि वो अपनी मर्जी की मालकिन थीं. राजा महाराजाओं को भी उनकी जिद के आगे झुकना पड़ता था. बेगम का जन्म जिस महीने में हुआ, उसी महीने में उनका इंतकाल भी हुआ. बेगम अख्तर ने ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन को अपनी गायिकी से समृद्ध किया. वो भातखंडे में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहीं. उनका लखनऊ से संबंध इतना प्रगाढ़ था कि वो मुंबई की चमक दमक छाेड़कर लखनऊ वापस आ गई थीं. वो अहमदाबाद में थीं, तब एक कार्यक्रम के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्होंने अंतिम सांस ली. बेगम अख्तर को उनके योगदान के लिए 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1968 में पद्मश्री और 1975 में पद्मभूषण मिला.
उनके नाम से लखनऊ की पहचान : पदमश्री गायिका मालिनी अवस्थी ने बताया कि 'बेगम अख्तर की आवाज हम लोगों के लिए प्रेरणा है. उन्होंने अपनी गायिकी को लखनऊ की रवायत से जोड़ा, इसलिए विश्व संगीत में लखनऊ उनके नाम से जाना जाता है. उनकी गायिकी अनमोल रत्न जैसी है, जिसे कोई भी भुला नहीं सकता. उन्होंने लखनऊ को जिया और नई पीढ़ी को गौरवान्वित होने का अवसर दिया. बेगम की ठुमरी को सुनने वाला उनका मुरीद हो जाता था.'
बंदिशों में रहना नहीं था पसंद : भातखंडे के संगीत शिक्षक डाॅ. कमलेश दुबे ने बताया कि 'बेगम अख्तर ने करीब एक साल भातखंडे में अपनी सेवाएं दीं, जो अपने आप में एक गौरव की बात है. बेगम को बंदिशों में रहना पसंद नहीं था इसलिए वो फ्री लांस आर्टिस्ट की तरह काम करने लगी. उनकी आवाज ने पूरे विश्व को दीवाना बना रखा था, इसलिए वो आज भी लोगों के दिलों में राज कर रही हैं.'