लखनऊ: प्रदेश की योगी सरकार कानून व्यवस्था को बेहतर करने के लिए भले ही तमाम दावे करती हो, लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद भी राजधानी लखनऊ में हत्याओं का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा. सितंबर महीने में राजधानी लखनऊ में 13 गोलीकांड की घटनाएं सामने आईं. ऐसे में कहा जा सकता है कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के अधिकारी हत्याओं पर लगाम लगाने में नाकामयाब हैं.
राजधानी लखनऊ में पिछले दिनों हुई आपराधिक घटनाओं पर गौर करें तो हत्या के कारणों में जमीन विवाद भी एक मुख्य वजह रही है. उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों राजधानी लखनऊ के चिनहट थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक मंदिर में रहने वाले पुजारी की भू माफियाओं ने दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी. इसके बाद इस मामले ने खूब तूल पकड़ा और यह तब किया गया, जब पीड़ित लगातार जिला प्रशासन के अधिकारियों से जमीन के निस्तारण व सुरक्षा उपलब्ध कराने की मांग कर रहा था.
वहीं पिछले दिनों राजधानी लखनऊ के हजरतगंज के पास दिनदहाड़े चचेरे भाइयों ने एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी. यह हत्या भी जमीनी विवाद के चलते की गई थी. राजधानी लखनऊ के हुसैनगंज में सुबह रेलवे के कर्मचारी शाहनवाज पर बदमाशों ने गोलियां बरसाई थीं. इस घटना में शाहनवाज के पेट में गोली लगी थी.
पुलिस के पास हैं सीमित अधिकार
पुलिस के पास जमीन विवाद में हस्तक्षेप के सीमित अधिकार हैं. जमीन विवाद के निस्तारण की जिम्मेदारी जिला प्रशासन के अधिकारियों की होती है. ऐसे में कई बार जमीन से जुड़े हुए मसलों को समय से निस्तारित नहीं किया जाता है और लंबे समय तक यह चलते रहते हैं. ऐसे में संबंधित व्यक्ति दूसरा रास्ता तलाश करते हुए अपराध की घटनाओं को अंजाम देता है. नायब तहसीलदार कोर्ट से लेकर डीएमबी कोर्ट तक जमीन के विवाद सुने जाते हैं, लेकिन कई बार जिला प्रशासन के निचले अधिकारियों का मनमानी रवैया और काम के प्रति कमजोर इच्छाशक्ति के चलते जमीन के विवाद में खूब खेल होते हैं. इससे समय पर विवाद का निस्तारण नहीं हो पाता है.
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वरिष्ठ पत्रकार रत्न मणि लाल का कहना है कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन में तैनात निचले स्तर के अधिकारी कई बार अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते जमीन विवादों को लंबा खींचते हैं. इसके चलते सही समय पर जमीनों का विवाद समाप्त नहीं हो पाता है. ऐसे में कुछ अधिकारियों को इस ओर ध्यान देते हुए सक्रियता के साथ जमीनों के विवादों का तत्काल निस्तारण करने की व्यवस्था लागू करनी चाहिए, लेकिन यह हो नहीं पाता है. ऐसे में जमीन से जुड़े हुए विवाद आपराधिक गतिविधियों में परिवर्तित होते हैं.