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बालगृह के बच्चों की जिंदगी में खुशी आती भी है नहीं, कैसे होती है परवरिश..पढ़ें रिपोर्ट

अक्सर रोड पर मिलने वाले शिशु किसी मां का अनचाहा बच्चा होते हैं. ऐसे बच्चे बालगृह में लाए जाते हैं. यूपी के बालगृहों में ऐसे करीब 12 हजार बच्चे पल रहे हैं. बालगृह में लाने के बाद इन बच्चों की परवरिश कैसे होती है. क्या ये बच्चे अपनी जिंदगी में सुखी होते हैं. लड़कियों का भविष्य कैसा होता है ? ऐसे ही सवालों का जवाब तलाशती ईटीवी भारत की रिपोर्ट, जरूर पढ़ें

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Published : Feb 24, 2023, 5:41 PM IST

Updated : Feb 24, 2023, 10:34 PM IST

बाल संरक्षण आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल.

लखनऊ : रिश्ते नाजायज होते हैं, रिश्तों से आने वाली संतान नाजायज नहीं होती. मगर समाज ऐसे कलंक बच्चे के साथ जोड़ देता है. शायद इसी कारण कभी सड़क किनारे तभी कभी कूड़े में अनचाहे बच्चे के मिलने की खबर आती है. अगर सही समय पर इन बच्चों की जानकारी पुलिस तक पहुंचती है तो बालगृह इन मासूमों का पहला ठिकाना बन जाता है. बालगृह में आने के बाद इन बच्चों की किस्मत कभी-कभी उन्हें गोद लेने वाले नए माता-पिता के घर तक पहुंचा देती है. जिनका कोई सहारा नहीं होता, वे बालगृह में पाले-पोसे जाते हैं. उनके खान-पान, पढ़ाई और हेल्थ की जिम्मेदारी शासन की है. उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल अक्सर राजकीय बालगृहों का निरीक्षण करती हैं और ऐसे बच्चों से मिलती हैं. उन्होंने बताया कि बहुत सारे बच्चे आज बाल गृह में ही रहकर पल-बढ़ रहे हैं. बहुत सारे बच्चों को लोग गोद भी ले जाते हैं. ऐसे बच्चे एक अच्छी जिंदगी जीते हैं.

बालगृह में पली बेटी का बसा घर : साल 2001 में एक नवजात बच्ची लखनऊ के बालगृह में उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले से लाई गई थी. हाल ही में अभी की उस बेटी की शादी हुई है. अनीता अग्रवाल ने बताया कि यह बच्ची सोनभद्र के सड़क किनारे कूड़े के ढेर में पड़ी मिली थी. तब किसी ने भी बच्ची की आवाज सुनी , उसने बालगृह को सूचना दी थी. यह बच्ची बाल गृह में ही पली-बढ़ी. उसने 12वीं तक की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास किया. उसकी शादी लखनऊ के लड़के ही से हुई. लड़का एलएलएम कर रहा था. उसकी जिंदगी आज काफी खुशहाल है. इसी तरह से बहुत सारी बच्चियों की जिंदगी सेटल हुई हैं.

बच्चे को पता नहीं चला कि वह दत्तक पुत्र है : साल 1998 में पुराने लखनऊ के सड़क किनारे कोई बच्चे को छोड़ गया था. बच्चा बालगृह में बहुत बुरी स्थिति में लाया गया था. डॉक्टरों की मशक्कत के बाद बच्चे की जान बचाई गई. कुछ ही दिनों में एक दंपत्ति ने उस बच्चे को गोद लिया. बालगृह के सदस्य अक्सर उससे मिलने जाया करते थे. बच्चा पला बढ़ा. अनीता अग्रवाल ने बताया कि एजुकेशन कंप्लीट करने के बाद वह बच्चा बेहतर मुकाम पर है. उसके घरवाले उसके लिए रिश्ता ढूंढ रहे हैं. उसे गोद लेने वाले पैरेंटस ने उसे इतना प्यार दिया कि आज भी बच्चे को पता नहीं है कि वह उनका दत्तक पुत्र है.


मंदिर में मिला था, अब एक घर का है दुलारा : साल 2014 में लखनऊ के अलीगंज में मौजूद एक मंदिर की दहलीज पर बच्चे को कोई छोड़ गया था. उस बच्चे को बाल गृह में लाया गया. अब बच्चा नौ साल का है. बच्चा जब छह महीने का ही था, उसी समय पर एक दंपत्ति ने उसे गोद ले लिया था. बच्चा इस समय लखनऊ के ही एक निजी स्कूल की चौथी कक्षा में पढ़ाई कर रहा है. उन्होंने कहा कि आज से ही उस बच्चे का भविष्य हम देख पा रहे हैं.

जानें कैसे बच्चों को दिया जाता है गोद : उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल ने बताया कि राजधानी लखनऊ में नवजात से लेकर 10 साल के बच्चों का अलग बालगृह है. 11 से 18 साल के बच्चे का अलग बालगृह हैं. यहां आने वाले बच्चों को प्रक्रिया के तहत किसी दंपति को गोद दिया जाता है. गोद देते समय दंपत्ति की सारी जानकारी ली जाती है. उनका पूरा वेरिफिकेशन होता है. यह जांच की जाती है कि गोद लेने वाले दंपत्ति बच्चे को एक खुशहाल जिंदगी दे पाएंगे या नहीं.

अनीता अग्रवाल ने बताया कि आमतौर पर बच्चे छोटे ही बालगृह में आते हैं. ज्यादातर लोग छोटे बच्चों को ही गोद ले लेते हैं. ऐसे में बच्चे को पता भी नहीं चलता है कि वह दत्तक पुत्र हैं. बच्चा बचपन से ही जिन माता पिता के घर में पला बढ़ा, वह उनके परिवार में घुलमिल जाता है. ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं, जिन्हें यह पता ही नहीं है कि उन्हें उनके माता-पिता ने बालगृह से गोद लिया है. गोद लेने वाले भी बच्चे से यह सीक्रेट अक्सर छिपाए ही रखते हैं. मौजूदा समय में बहुत सारे बच्चे अपने गोद लेने वाले पैरेंटस के साथ विदेश में खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं. बहुत सारे बच्चे तो आज इतने बड़े हो गए हैं कि उनके खुद के भी बच्चे हैं और एक सफल जीवन जी रहे हैं. बता दें अभी भी यूपी के बालगृहों में करीब 12 हजार बच्चे आश्रय पा रहे हैं. उम्मीद है कि इन बच्चों को भी ऐसा परिवार मिलेगा, जहां उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि उनकी जिंदगी की शुरुआत बालगृह से हुई थी.

पढ़ें : Newborn abandoned case : नवजात को फेंकने का खुलासा- शादी से दो दिन पहले युवती ने दिया था बच्चे को जन्म

बाल संरक्षण आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल.

लखनऊ : रिश्ते नाजायज होते हैं, रिश्तों से आने वाली संतान नाजायज नहीं होती. मगर समाज ऐसे कलंक बच्चे के साथ जोड़ देता है. शायद इसी कारण कभी सड़क किनारे तभी कभी कूड़े में अनचाहे बच्चे के मिलने की खबर आती है. अगर सही समय पर इन बच्चों की जानकारी पुलिस तक पहुंचती है तो बालगृह इन मासूमों का पहला ठिकाना बन जाता है. बालगृह में आने के बाद इन बच्चों की किस्मत कभी-कभी उन्हें गोद लेने वाले नए माता-पिता के घर तक पहुंचा देती है. जिनका कोई सहारा नहीं होता, वे बालगृह में पाले-पोसे जाते हैं. उनके खान-पान, पढ़ाई और हेल्थ की जिम्मेदारी शासन की है. उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल अक्सर राजकीय बालगृहों का निरीक्षण करती हैं और ऐसे बच्चों से मिलती हैं. उन्होंने बताया कि बहुत सारे बच्चे आज बाल गृह में ही रहकर पल-बढ़ रहे हैं. बहुत सारे बच्चों को लोग गोद भी ले जाते हैं. ऐसे बच्चे एक अच्छी जिंदगी जीते हैं.

बालगृह में पली बेटी का बसा घर : साल 2001 में एक नवजात बच्ची लखनऊ के बालगृह में उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले से लाई गई थी. हाल ही में अभी की उस बेटी की शादी हुई है. अनीता अग्रवाल ने बताया कि यह बच्ची सोनभद्र के सड़क किनारे कूड़े के ढेर में पड़ी मिली थी. तब किसी ने भी बच्ची की आवाज सुनी , उसने बालगृह को सूचना दी थी. यह बच्ची बाल गृह में ही पली-बढ़ी. उसने 12वीं तक की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास किया. उसकी शादी लखनऊ के लड़के ही से हुई. लड़का एलएलएम कर रहा था. उसकी जिंदगी आज काफी खुशहाल है. इसी तरह से बहुत सारी बच्चियों की जिंदगी सेटल हुई हैं.

बच्चे को पता नहीं चला कि वह दत्तक पुत्र है : साल 1998 में पुराने लखनऊ के सड़क किनारे कोई बच्चे को छोड़ गया था. बच्चा बालगृह में बहुत बुरी स्थिति में लाया गया था. डॉक्टरों की मशक्कत के बाद बच्चे की जान बचाई गई. कुछ ही दिनों में एक दंपत्ति ने उस बच्चे को गोद लिया. बालगृह के सदस्य अक्सर उससे मिलने जाया करते थे. बच्चा पला बढ़ा. अनीता अग्रवाल ने बताया कि एजुकेशन कंप्लीट करने के बाद वह बच्चा बेहतर मुकाम पर है. उसके घरवाले उसके लिए रिश्ता ढूंढ रहे हैं. उसे गोद लेने वाले पैरेंटस ने उसे इतना प्यार दिया कि आज भी बच्चे को पता नहीं है कि वह उनका दत्तक पुत्र है.


मंदिर में मिला था, अब एक घर का है दुलारा : साल 2014 में लखनऊ के अलीगंज में मौजूद एक मंदिर की दहलीज पर बच्चे को कोई छोड़ गया था. उस बच्चे को बाल गृह में लाया गया. अब बच्चा नौ साल का है. बच्चा जब छह महीने का ही था, उसी समय पर एक दंपत्ति ने उसे गोद ले लिया था. बच्चा इस समय लखनऊ के ही एक निजी स्कूल की चौथी कक्षा में पढ़ाई कर रहा है. उन्होंने कहा कि आज से ही उस बच्चे का भविष्य हम देख पा रहे हैं.

जानें कैसे बच्चों को दिया जाता है गोद : उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल ने बताया कि राजधानी लखनऊ में नवजात से लेकर 10 साल के बच्चों का अलग बालगृह है. 11 से 18 साल के बच्चे का अलग बालगृह हैं. यहां आने वाले बच्चों को प्रक्रिया के तहत किसी दंपति को गोद दिया जाता है. गोद देते समय दंपत्ति की सारी जानकारी ली जाती है. उनका पूरा वेरिफिकेशन होता है. यह जांच की जाती है कि गोद लेने वाले दंपत्ति बच्चे को एक खुशहाल जिंदगी दे पाएंगे या नहीं.

अनीता अग्रवाल ने बताया कि आमतौर पर बच्चे छोटे ही बालगृह में आते हैं. ज्यादातर लोग छोटे बच्चों को ही गोद ले लेते हैं. ऐसे में बच्चे को पता भी नहीं चलता है कि वह दत्तक पुत्र हैं. बच्चा बचपन से ही जिन माता पिता के घर में पला बढ़ा, वह उनके परिवार में घुलमिल जाता है. ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं, जिन्हें यह पता ही नहीं है कि उन्हें उनके माता-पिता ने बालगृह से गोद लिया है. गोद लेने वाले भी बच्चे से यह सीक्रेट अक्सर छिपाए ही रखते हैं. मौजूदा समय में बहुत सारे बच्चे अपने गोद लेने वाले पैरेंटस के साथ विदेश में खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं. बहुत सारे बच्चे तो आज इतने बड़े हो गए हैं कि उनके खुद के भी बच्चे हैं और एक सफल जीवन जी रहे हैं. बता दें अभी भी यूपी के बालगृहों में करीब 12 हजार बच्चे आश्रय पा रहे हैं. उम्मीद है कि इन बच्चों को भी ऐसा परिवार मिलेगा, जहां उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि उनकी जिंदगी की शुरुआत बालगृह से हुई थी.

पढ़ें : Newborn abandoned case : नवजात को फेंकने का खुलासा- शादी से दो दिन पहले युवती ने दिया था बच्चे को जन्म

Last Updated : Feb 24, 2023, 10:34 PM IST
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