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MLA महेंद्र भाटी हत्याकांड: 29 साल पहले गोलियों से भूना था, उम्रकैदी DP यादव की याचिका पर 24 अगस्त को सुनवाई

महेंद्र भाटी हत्याकांड मामले पर आरोपी लक्कड़ पाल व परनीत भाटी की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई पूरे 3 घंटे तक चली. इस दौरान कोर्ट ने डीपी यादव की याचिका पर सुनवाई के लिए 24 अगस्त की तारीख नियत की है.

MLA महेंद्र भाटी हत्याकांड
MLA महेंद्र भाटी हत्याकांड
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Published : Aug 10, 2021, 10:48 PM IST

नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने यूपी के विधायक रहे महेंद्र भाटी हत्याकांड पर मंगलवार को पाला उर्फ लक्कड़ पाल व परनीत भाटी की याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई पूरे 3 घंटे तक चली. अब 17 अगस्त को सीबीआई की तरफ से सुनवाई होनी बाकी है. पाला और परनीत भाटी ने मामले में खुद को निर्दोष बताया है. कोर्ट ने डीपी यादव की याचिका पर सुनवाई के लिए 24 अगस्त की तारीख नियत की है.

बता दें कि विधायक महेंद्र भाटी हत्याकांड में यूपी के बाहुबली नेता व पूर्व सांसद डीपी यादव सहित तीन अन्य आरोपी उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. चारों आरोपियों ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती दी है.

इससे पहले खंडपीठ ने डीपी यादव को मेडिकल चेकअप के लिए दी शॉर्ट टर्म बेल की अवधि दो महीने और बढ़ा दी थी. कोर्ट ने उन्हें 20 अप्रैल 2021 को दो महीने की अंतरिम जमानत दी थी, जिसकी अवधि 20 जून को खत्म हो गई. उसके बाद डीपी यादव की तरफ से शॉर्ट टर्म बेल की अवधि बढ़ाने हेतु प्रार्थना पत्र कोर्ट में पेश किया गया. अब खंडपीठ इस मामले में अंतिम सुनवाई कर रही है. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हो रही है.

ये भी पढ़ेंः जज क्वार्टर घोटालाः HC का निचली अदालत को आदेश, 6 माह में अंदर करें निस्तारित

ये है पूरा मामलाः 13 सितंबर 1992 को गाजियाबाद के तत्कालीन विधायक महेंद्र भाटी की हत्या यूपी के बाहुबली नेता पूर्व सांसद डीपी यादव परनीत भाटी, करन यादव व पाला उर्फ लक्कड़ पाल दादरी रेलवे क्रॉसिंग पर गोली मारकर कर दी थी. 15 फरवरी 2015 को देहरादून की सीबीआई कोर्ट ने चारों हत्यारों को आजीवन कारावास की सजा सुनवाई थी. इस आदेश को चारों अभियुक्तों द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से विधायक की हत्या के मामले को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को हस्तांतरित किया था. जबकि, सीबीआई की कोर्ट ने विधायक की हत्या के आरोप में सभी आरोपियों को 10 मार्च 2015 को आजीवन कारावास की सुनाई थी. जिसके बाद से सभी आरोपी जेल में बंद थे.

ये था पूरा मामला

13 सितंबर, 1992 को गाजियाबाद में तत्कालीन विधायक भाटी अपने समर्थकों के साथ बंद रेलवे फाटक के खुलने का इंतजार कर रहे थे. इस दौरान एक वाहन में सवार हथियारबंद बदमाशों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. इसमें भाटी व उनके साथी उदय प्रकाश की मौत हो गई थी. कुछ लोग घायल हुए थे. जांच के दौरान इस हत्याकांड में डीपी यादव और उसके साथियों के नाम सामने आए. पुलिस ने हत्या के दौरान इस्तेमाल की गई गाड़ी भी बरामद की थी.

महेंद्र सिंह भाटी गाजियाबाद के दादरी से विधायक थे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस केस को साल 2000 में सीबीआई को सौंप दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट को आशंका थी कि डीपी यादव यूपी का बाहुबली और बड़ा नेता है. ऐसे में यूपी में उसके खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई नहीं हो पाएगी. डीपी यादव ने जिन महेंद्र सिंह भाटी की हत्या की, वह उसके राजनीतिक गुरु भी थे.

डीपी यादव कभी था आतंक का दूसरा नाम

बाहुबली व धनबली के रूप में कुख्यात डीपी यादव कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आतंक का दूसरा नाम था. जिला गाजियाबाद में नोएडा सेक्टर-18 के पास एक गांव शरफाबाद में धर्मपाल यादव नाम का एक आम आदमी था. ये शख्स जगदीश नगर में डेयरी चलाता था. रोजाना साइकिल से दूध दिल्ली ले जाता था.

अति महत्वाकांक्षी धर्मपाल यादव 1970 के दशक में शराब माफिया किंग बाबू किशन लाल के संपर्क में आ गया. यही शख्स धर्मपाल यादव से धीरे-धीरे डीपी यादव के रूप में कुख्यात होता चला गया. शराब माफिया किशन लाल, डीपी यादव को एक दबंग गुंडे की तरह इस्तेमाल करता था. डीपी शराब की तस्करी में अहम भूमिका निभाता था. डीपी यादव कुछ समय बाद ही किशन लाल का पार्टनर बन गया.

इन दोनों का गिरोह जोधपुर से कच्ची शराब लाता था और पैकिंग के बाद अपना लेबल लगा कर उस शराब को आसपास के राज्यों में बेचता था. जगदीश पहलवान, कालू मेंटल, परमानंद यादव, श्याम सिंह, प्रकाश पहलवान, शूटर चुन्ना पंडित, सत्यवीर यादव, मुकेश पंडित और स्वराज यादव वगैरह डीपी के गिरोह के खास गुर्गे थे.

जहरीली शराब से हरियाणा में ली थी 350 लोगों की जान

1990 के आसपास डीपी की कच्ची शराब पीने से हरियाणा में साढ़े तीन सौ लोग मर गए. इस मामले में जांच के बाद दोषी मानते हुये हरियाणा पुलिस ने डीपी यादव के विरुद्ध चार्जशीट भी दाखिल की थी. पैसा, पहुंच और दबंगई के बल पर धीरे-धीरे डीपी यादव अपराध की दुनिया का स्वयं-भू बादशाह हो गया. दो दर्जन से अधिक आपराधिक मुकदमों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध होने लगा, तो 1991 में इस पर एनएसए के तहत भी कार्रवाई हुई.

इसके बावजूद इसने 1992 में अपने राजनैतिक गुरु दादरी क्षेत्र के विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या करा दी. इस मामले में डीपी यादव के विरुद्ध सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया. इस हत्या के बाद गैंगवार शुरू हुई. डीपी के गुर्गों ने कई लोगों को मारा. डीपी के पारिवारिक सदस्यों के साथ उसके कई खास लोगों की जान गई.

डीपी यादव का बेटा भी हत्यारा

नीतीश कटारा 17 फरवरी, 2002 को गाजियाबाद के डायमंड हॉल में अपनी दोस्त की शादी में शामिल होने गए थे. वहीं से नीतीश का डीपी यादव के बेटे विकास और विशाल ने अपहरण किया और सुखदेव पहलवान के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी. पुलिस के मुताबिक, नीतीश कटारा की विकास की बहन से दोस्ती थी और यह दोस्ती विकास और विशाल को पसंद नहीं थी. इसी कारण नीतीश की हत्या की गई.

हाईकोर्ट ने सुनाई थी 30 साल की सजा

हाईकोर्ट ने विकास और विशाल यादव को 30-30 साल कैद की सजा सुनाई थी. जबकि सुखदेव पहलवान को 25 साल कैद की सजा दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि हत्या मामले में विकास और विशाल को उम्रकैद की सजा दी जाती है और इनके द्वारा 25 साल तक जेल काटने से पहले सजा में छूट पर विचार न किया जाए. वहीं सुबूत नष्ट करने के मामले में पांच साल कैद की सजा सुनाई गई थी. दोनों सजा अलग-अलग चलाने का आदेश दिया गया था.

नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने यूपी के विधायक रहे महेंद्र भाटी हत्याकांड पर मंगलवार को पाला उर्फ लक्कड़ पाल व परनीत भाटी की याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई पूरे 3 घंटे तक चली. अब 17 अगस्त को सीबीआई की तरफ से सुनवाई होनी बाकी है. पाला और परनीत भाटी ने मामले में खुद को निर्दोष बताया है. कोर्ट ने डीपी यादव की याचिका पर सुनवाई के लिए 24 अगस्त की तारीख नियत की है.

बता दें कि विधायक महेंद्र भाटी हत्याकांड में यूपी के बाहुबली नेता व पूर्व सांसद डीपी यादव सहित तीन अन्य आरोपी उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. चारों आरोपियों ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती दी है.

इससे पहले खंडपीठ ने डीपी यादव को मेडिकल चेकअप के लिए दी शॉर्ट टर्म बेल की अवधि दो महीने और बढ़ा दी थी. कोर्ट ने उन्हें 20 अप्रैल 2021 को दो महीने की अंतरिम जमानत दी थी, जिसकी अवधि 20 जून को खत्म हो गई. उसके बाद डीपी यादव की तरफ से शॉर्ट टर्म बेल की अवधि बढ़ाने हेतु प्रार्थना पत्र कोर्ट में पेश किया गया. अब खंडपीठ इस मामले में अंतिम सुनवाई कर रही है. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हो रही है.

ये भी पढ़ेंः जज क्वार्टर घोटालाः HC का निचली अदालत को आदेश, 6 माह में अंदर करें निस्तारित

ये है पूरा मामलाः 13 सितंबर 1992 को गाजियाबाद के तत्कालीन विधायक महेंद्र भाटी की हत्या यूपी के बाहुबली नेता पूर्व सांसद डीपी यादव परनीत भाटी, करन यादव व पाला उर्फ लक्कड़ पाल दादरी रेलवे क्रॉसिंग पर गोली मारकर कर दी थी. 15 फरवरी 2015 को देहरादून की सीबीआई कोर्ट ने चारों हत्यारों को आजीवन कारावास की सजा सुनवाई थी. इस आदेश को चारों अभियुक्तों द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से विधायक की हत्या के मामले को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को हस्तांतरित किया था. जबकि, सीबीआई की कोर्ट ने विधायक की हत्या के आरोप में सभी आरोपियों को 10 मार्च 2015 को आजीवन कारावास की सुनाई थी. जिसके बाद से सभी आरोपी जेल में बंद थे.

ये था पूरा मामला

13 सितंबर, 1992 को गाजियाबाद में तत्कालीन विधायक भाटी अपने समर्थकों के साथ बंद रेलवे फाटक के खुलने का इंतजार कर रहे थे. इस दौरान एक वाहन में सवार हथियारबंद बदमाशों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. इसमें भाटी व उनके साथी उदय प्रकाश की मौत हो गई थी. कुछ लोग घायल हुए थे. जांच के दौरान इस हत्याकांड में डीपी यादव और उसके साथियों के नाम सामने आए. पुलिस ने हत्या के दौरान इस्तेमाल की गई गाड़ी भी बरामद की थी.

महेंद्र सिंह भाटी गाजियाबाद के दादरी से विधायक थे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस केस को साल 2000 में सीबीआई को सौंप दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट को आशंका थी कि डीपी यादव यूपी का बाहुबली और बड़ा नेता है. ऐसे में यूपी में उसके खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई नहीं हो पाएगी. डीपी यादव ने जिन महेंद्र सिंह भाटी की हत्या की, वह उसके राजनीतिक गुरु भी थे.

डीपी यादव कभी था आतंक का दूसरा नाम

बाहुबली व धनबली के रूप में कुख्यात डीपी यादव कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आतंक का दूसरा नाम था. जिला गाजियाबाद में नोएडा सेक्टर-18 के पास एक गांव शरफाबाद में धर्मपाल यादव नाम का एक आम आदमी था. ये शख्स जगदीश नगर में डेयरी चलाता था. रोजाना साइकिल से दूध दिल्ली ले जाता था.

अति महत्वाकांक्षी धर्मपाल यादव 1970 के दशक में शराब माफिया किंग बाबू किशन लाल के संपर्क में आ गया. यही शख्स धर्मपाल यादव से धीरे-धीरे डीपी यादव के रूप में कुख्यात होता चला गया. शराब माफिया किशन लाल, डीपी यादव को एक दबंग गुंडे की तरह इस्तेमाल करता था. डीपी शराब की तस्करी में अहम भूमिका निभाता था. डीपी यादव कुछ समय बाद ही किशन लाल का पार्टनर बन गया.

इन दोनों का गिरोह जोधपुर से कच्ची शराब लाता था और पैकिंग के बाद अपना लेबल लगा कर उस शराब को आसपास के राज्यों में बेचता था. जगदीश पहलवान, कालू मेंटल, परमानंद यादव, श्याम सिंह, प्रकाश पहलवान, शूटर चुन्ना पंडित, सत्यवीर यादव, मुकेश पंडित और स्वराज यादव वगैरह डीपी के गिरोह के खास गुर्गे थे.

जहरीली शराब से हरियाणा में ली थी 350 लोगों की जान

1990 के आसपास डीपी की कच्ची शराब पीने से हरियाणा में साढ़े तीन सौ लोग मर गए. इस मामले में जांच के बाद दोषी मानते हुये हरियाणा पुलिस ने डीपी यादव के विरुद्ध चार्जशीट भी दाखिल की थी. पैसा, पहुंच और दबंगई के बल पर धीरे-धीरे डीपी यादव अपराध की दुनिया का स्वयं-भू बादशाह हो गया. दो दर्जन से अधिक आपराधिक मुकदमों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध होने लगा, तो 1991 में इस पर एनएसए के तहत भी कार्रवाई हुई.

इसके बावजूद इसने 1992 में अपने राजनैतिक गुरु दादरी क्षेत्र के विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या करा दी. इस मामले में डीपी यादव के विरुद्ध सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया. इस हत्या के बाद गैंगवार शुरू हुई. डीपी के गुर्गों ने कई लोगों को मारा. डीपी के पारिवारिक सदस्यों के साथ उसके कई खास लोगों की जान गई.

डीपी यादव का बेटा भी हत्यारा

नीतीश कटारा 17 फरवरी, 2002 को गाजियाबाद के डायमंड हॉल में अपनी दोस्त की शादी में शामिल होने गए थे. वहीं से नीतीश का डीपी यादव के बेटे विकास और विशाल ने अपहरण किया और सुखदेव पहलवान के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी. पुलिस के मुताबिक, नीतीश कटारा की विकास की बहन से दोस्ती थी और यह दोस्ती विकास और विशाल को पसंद नहीं थी. इसी कारण नीतीश की हत्या की गई.

हाईकोर्ट ने सुनाई थी 30 साल की सजा

हाईकोर्ट ने विकास और विशाल यादव को 30-30 साल कैद की सजा सुनाई थी. जबकि सुखदेव पहलवान को 25 साल कैद की सजा दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि हत्या मामले में विकास और विशाल को उम्रकैद की सजा दी जाती है और इनके द्वारा 25 साल तक जेल काटने से पहले सजा में छूट पर विचार न किया जाए. वहीं सुबूत नष्ट करने के मामले में पांच साल कैद की सजा सुनाई गई थी. दोनों सजा अलग-अलग चलाने का आदेश दिया गया था.

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