लखनऊ: विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक 2020 का प्रस्ताव पर केंद्र सरकार को उपभोक्ता परिषद ने बहस की चुनौती दे डाली है. अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि सरकार का ये कृत्य उपभोक्ता विरोधी कार्रवाई को दर्शाता है. उनका कहना है कि सरकार खुद मान रही है कि केंद्र सरकार को 350 से अधिक आपत्तियां और सुझाव प्राप्त हुए हैं. वास्तव में सरकार की नीयत साफ है तो सरकार को जो 350 आपत्तियां और सुझाव प्राप्त हुए हैं उनका खुलासा किया जाए. सरकार उसको पब्लिक डोमेन में डाले, जिससे देश प्रदेश के करोड़ों उपभोक्ताओं को यह पता चल सके कि देश के बिजली जानकारों का निजीकरण पर मंतव्य क्या है. सरकार उसके आधार पर संसद में बहस कराए और बिल में संशोधन करे.
सरकार के पास निजीकरण का विकल्प
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि सरकार कहती है कि बिजली क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कायम करने के लिए उपभोक्ताओ को विकल्प देना जरूरी है. ऐसे में निजीकरण का ही विकल्प क्यों. सरकार को अगर विकल्प देने का मन ही है तो एक ही लाइसेंसी क्षेत्र में कई सरकारी कंपनी बनाकर विकल्प क्यों नहीं दिए जाने की बात हो रही. केवल निजीकरण के लिए विधेयक में संशोधन से यह सिद्ध हो रहा है कि सरकार बिजली क्षेत्र का निजीकरण करना चाहती है. उपभोक्ता परिषद केंद्र व राज्य सरकार से इस मुद्दे पर खुली बहस के लिए तैयार है कि निजीकरण उपभोक्ता हित्त में नहीं है. सरकार देश में किसी भी ऊर्जा विशेषज्ञ को इस बहस में शामिल कर सकती है. ऊर्जा क्षेत्र को सार्वजानिक क्षेत्र में सुधारा जा सकता है. इसकी पूरी रूपरेखा और मॉडल उपभोक्ता परिषद के पास तैयार है. सरकार चाहे तो उपभोक्ता परिषद उसे पूरा मॉडल सौप सकता है.
बिजली संगठन कर रहे विरोध
इस बार के केंद्र सरकार के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उपभोक्ताओं को अपनी मनपसंद बिजली कंपनी चुनने का ऑफर दिया है. ऐसे में तभी से यह बहस छिड़ गई है कि सरकार प्राइवेट कंपनियों को ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश दिलाकर निजीकरण के रास्ते पर अग्रसर हो रही है. बिजली से जुड़े संगठन सरकार की इस कार्रवाई का लगातार विरोध कर रहे हैं.
विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक पर सरकार को मिलीं आपत्तियां
बिजली उपभोक्ताओं के एक संगठन ने सरकार से विद्युत (संशोधन) विधेयक पर प्राप्त 350 से अधिक आपत्तियों और सुझावों को सार्वजनिक करने की मांग की है. उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कहा कि सरकार ने स्वीकार किया है कि उसे विद्युत (संशोधन) विधेयक पर 350 आपत्तियां और सुझाव मिले हैं.
लखनऊ: विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक 2020 का प्रस्ताव पर केंद्र सरकार को उपभोक्ता परिषद ने बहस की चुनौती दे डाली है. अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि सरकार का ये कृत्य उपभोक्ता विरोधी कार्रवाई को दर्शाता है. उनका कहना है कि सरकार खुद मान रही है कि केंद्र सरकार को 350 से अधिक आपत्तियां और सुझाव प्राप्त हुए हैं. वास्तव में सरकार की नीयत साफ है तो सरकार को जो 350 आपत्तियां और सुझाव प्राप्त हुए हैं उनका खुलासा किया जाए. सरकार उसको पब्लिक डोमेन में डाले, जिससे देश प्रदेश के करोड़ों उपभोक्ताओं को यह पता चल सके कि देश के बिजली जानकारों का निजीकरण पर मंतव्य क्या है. सरकार उसके आधार पर संसद में बहस कराए और बिल में संशोधन करे.
सरकार के पास निजीकरण का विकल्प
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि सरकार कहती है कि बिजली क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कायम करने के लिए उपभोक्ताओ को विकल्प देना जरूरी है. ऐसे में निजीकरण का ही विकल्प क्यों. सरकार को अगर विकल्प देने का मन ही है तो एक ही लाइसेंसी क्षेत्र में कई सरकारी कंपनी बनाकर विकल्प क्यों नहीं दिए जाने की बात हो रही. केवल निजीकरण के लिए विधेयक में संशोधन से यह सिद्ध हो रहा है कि सरकार बिजली क्षेत्र का निजीकरण करना चाहती है. उपभोक्ता परिषद केंद्र व राज्य सरकार से इस मुद्दे पर खुली बहस के लिए तैयार है कि निजीकरण उपभोक्ता हित्त में नहीं है. सरकार देश में किसी भी ऊर्जा विशेषज्ञ को इस बहस में शामिल कर सकती है. ऊर्जा क्षेत्र को सार्वजानिक क्षेत्र में सुधारा जा सकता है. इसकी पूरी रूपरेखा और मॉडल उपभोक्ता परिषद के पास तैयार है. सरकार चाहे तो उपभोक्ता परिषद उसे पूरा मॉडल सौप सकता है.
बिजली संगठन कर रहे विरोध
इस बार के केंद्र सरकार के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उपभोक्ताओं को अपनी मनपसंद बिजली कंपनी चुनने का ऑफर दिया है. ऐसे में तभी से यह बहस छिड़ गई है कि सरकार प्राइवेट कंपनियों को ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश दिलाकर निजीकरण के रास्ते पर अग्रसर हो रही है. बिजली से जुड़े संगठन सरकार की इस कार्रवाई का लगातार विरोध कर रहे हैं.