लखनऊ : रिवैंप डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) जिसके तहत उत्तर प्रदेश में चार क्लस्टर में निकाले गए स्मार्ट प्रीपेड मीटर का विवाद चल ही रहा है. इसी बीच भारत सरकार की तरफ से जारी स्टैंडर्ड बिडिंग गाइडलाइन के तहत निकाले गए लॉस रिडक्शन व आधुनिकीकरण स्कीम के हजारों करोड़ के टेंडर मध्यांचल व पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम में पार्ट-वन पार्ट-2 खुलने के बाद भी निरस्त कर दिए हैं. टेंडर को लेकर लगातार विरोध हो रहा था.
आरोप है कि केंद्र सरकार के दबाव में यह सभी टेंडर जारी किए गए थे. पावर कारपोरेशन के बनाए गए एस्टीमेट से टेंडर की न्यूनतम दरें पांच से लेकर 38 प्रतिशत तक अधिक आई थीं. जिसके चलते बिजली कंपनियों के हाथ पांव फूल गए. मध्यांचल व पश्चिमांचल में निरस्त किए गए टेंडर की लागत 4000 करोड़ से 5000 करोड रुपए के बीच है. पावर कारपोरेशन प्रबंधन के निर्देश पर दो बिजली कंपनियों ने टेंडर निरस्त कर दिए हैं, देश के जिन निजी घरानों ने टेंडर प्रक्रिया में भाग लिया जो पावर सेक्टर में बिल्कुल नई हैं. प्रमुख रूप से मोंटीकार्लो जैक्सन, लूमिनो पेस पावर यूनिवर्सल, एलएंडटी और केईआई बजाज कैपिटल प्रमुख हैं. इसमें ज्यादातर नई कंपनियों ने उत्तर प्रदेश के पावर सेक्टर में अभी काम भी नहीं किया है.
विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने एक बार फिर पूर्वांचल और दक्षिणांचल के अंतर्गत निकाले गए आरडीएसएस स्कीम के टेंडर तुरंत निरस्त करने की मांग उठाई है. अवधेश वर्मा का आरोप है कि केवल निजी घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई स्टैंडर्ड बिडिंग गाइडलाइन उपभोक्ताओं के हित में नहीं है. केंद्र सरकार के दबाव में बनाई गई स्टैंडर्ड बिडिंग गाइडलाइन पूरी तरीके से निजी घरानों को लाभ पहुंचाने वाली है, उसी का नतीजा है कि आरडीएसएस के अंतर्गत जो भी टेंडर खुले हैं उनमें दरें 38 प्रतिशत तक अधिक दिख रही हैं. ऐसे में इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराया जाना महत्वपूर्ण है. उपभोक्ता परिषद पहले ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर पर सीबीआई जांच कराने की मांग कर चुका है.
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