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कांग्रेस कोठी को सूना कर चला गया यह दिग्गज

लखीमपुर खीरी जिले में कांग्रेस की रीढ़ रहे पंडित तेज नारायण त्रिवेदी ने 93 साल की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली. जिसके बाद जिले की 'कांग्रेस कोठी' के नाम से मशहूर कोठी सूनी हो गई. इस दौरान जिले के कई नेता उनके अंतिम दर्शन के लिए कांग्रेस कोठी पहुंचे.

कांग्रेस नेता पंडित तेज नारायण त्रिवेदी का हुआ निधन
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Published : Mar 27, 2019, 3:28 PM IST

लखीमपुर खीरी : कांग्रेस नेता पंडित तेज नारायण त्रिवेदी का 93 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन की खबर सुनते ही तमाम पार्टियों के नेता अंतिम दर्शन करने उनके घर 'कांग्रेस कोठी' पहुंचे. जहां सभी ने उनको नम आखों से विदाई दी. पंडित जी 6 बार विधायक, एक बार एमएलसी और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद रह चुके थे.

बीए, एलएलबी की शिक्षा प्राप्त कर पंडित तेज नारायण ने 1948 में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. इनका परिवार मूल रूप से कानपुर का रहने वाला था, लेकिन पुश्तों से वह खीरी में आकर बस गया था.1958 में पंडित जी जब यूपी की विधानपरिषद में कांग्रेस के टिकट पर एमएलसी बनकर पहुंचे, तब से रोडवेज बस अड्डे वाली सड़क पर पंडित जी की कोठी 'कांग्रेस कोठी' के नाम से मशहूर हो गई.

1962 में कांग्रेस से विधायक बनकर यूपी की विधानसभा में पहुंचे पंडित जी ने लगातार 6 बार विधानसभा चुनावों में अपनी जीत दर्ज की. 1980 में कांग्रेस से मनमुटाव के बाद पंडित जी ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी. वहीं बाद में1989 में कांग्रेस ने फिर पंडित जी को मना लिया और वह जिला परिषद के अध्यक्ष बन गए इस दौरान 1991 तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे.

कांग्रेस नेता पंडित तेज नारायण त्रिवेदी का हुआ निधन

पंडित जी के निधन के बाद आज भाजपा के भी कई नेता उनके अंतिम दर्शन करने उनकी कोठी पर पहुंचे. पूर्व विधायक होने के नाते उन्हे गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया. कांग्रेस के पूर्व सांसद जफर अली नकवी ने कहा कि पंडित जी की तरह नेक इंसान मिलना अब बहुत मुश्किल है. कांग्रेस को उनके जाने से बहुत नुकसान हुआ है और यह कोठी अब उदास हो गई है.

लखीमपुर खीरी : कांग्रेस नेता पंडित तेज नारायण त्रिवेदी का 93 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन की खबर सुनते ही तमाम पार्टियों के नेता अंतिम दर्शन करने उनके घर 'कांग्रेस कोठी' पहुंचे. जहां सभी ने उनको नम आखों से विदाई दी. पंडित जी 6 बार विधायक, एक बार एमएलसी और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद रह चुके थे.

बीए, एलएलबी की शिक्षा प्राप्त कर पंडित तेज नारायण ने 1948 में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. इनका परिवार मूल रूप से कानपुर का रहने वाला था, लेकिन पुश्तों से वह खीरी में आकर बस गया था.1958 में पंडित जी जब यूपी की विधानपरिषद में कांग्रेस के टिकट पर एमएलसी बनकर पहुंचे, तब से रोडवेज बस अड्डे वाली सड़क पर पंडित जी की कोठी 'कांग्रेस कोठी' के नाम से मशहूर हो गई.

1962 में कांग्रेस से विधायक बनकर यूपी की विधानसभा में पहुंचे पंडित जी ने लगातार 6 बार विधानसभा चुनावों में अपनी जीत दर्ज की. 1980 में कांग्रेस से मनमुटाव के बाद पंडित जी ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी. वहीं बाद में1989 में कांग्रेस ने फिर पंडित जी को मना लिया और वह जिला परिषद के अध्यक्ष बन गए इस दौरान 1991 तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे.

कांग्रेस नेता पंडित तेज नारायण त्रिवेदी का हुआ निधन

पंडित जी के निधन के बाद आज भाजपा के भी कई नेता उनके अंतिम दर्शन करने उनकी कोठी पर पहुंचे. पूर्व विधायक होने के नाते उन्हे गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया. कांग्रेस के पूर्व सांसद जफर अली नकवी ने कहा कि पंडित जी की तरह नेक इंसान मिलना अब बहुत मुश्किल है. कांग्रेस को उनके जाने से बहुत नुकसान हुआ है और यह कोठी अब उदास हो गई है.

Intro:लखीमपुर- खीरी जिले में एक कोठी 'कांग्रेस कोठी' के नाम से मशहूर थी पर आज उस कोठी का मसीहा हमेशा हमेशा के लिए सब कुछ छोड़ कर चला गया। जी हां हम बात कर रहे हैं पंडित तेजनरायण त्रिवेदी की। जो खीरी जिले में कांग्रेस की रीढ़ रहे। और उनकी कोठी हमेशा 'काँग्रेस कोठी' के नाम से जानी गई। 93 बरस की उम्र में आज वयोवृद्ध काँग्रेसी नेता और पूर्व विधायक,एमएलसी रहे पण्डित जी का निधन हो गया है। तो सब गमजदा हैं। काँग्रेसी भी भाजपाई भी, हिंदू-मुस्लिम,सिख-ईसाई भी।
पंडित तेज नारायण त्रिवेदी जिले के वयोवृद्ध कांग्रेसी लीडर थे। बीए एलएलबी की शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने 1948 में अपना राजनैतिक सफर शुरू किया था। मूल रूप से पंडित तेज नारायण त्रिवेदी का परिवार कानपुर का रहने वाला था। पर पुश्तों से वो खीरी में आकर बस गया। राजनीति की सीढ़ियां पंडित तेज नरायन त्रिवेदी ने सबसे पहले वह डिस्टिक बोर्ड के मेंबर के रूप में चढ़नी शुरू की। काँग्रेस के टिकट पर वह डिस्टिक बोर्ड यानी कि जिला पंचायत के मेंबर बने। इसके बाद पंडित जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।


Body:1958 में पंडित तेजनरायन त्रिवेदी पहली बार यूपी की विधानपरिषद में काँग्रेस के टिकट पर एमएलसी बनकर पहुंचे। तब भी रोडवेज बस अड्डे वाली सड़क पर पंडित जी की कोठी 'काँग्रेस कोठी' के नाम से मशहूर हो गई। इसके बाद तो कोठी का भाग्य कहें या पंडित जी की अपनी मेहनत और उनका व्यवहार,
1962 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से वह विधायक बनकर यूपी की विधानसभा में पहुंच गए। अगले चुनाव 1969 में हुए लेकिन पंडित जी का डंका एक बार फिर बजा। इसी कोठी से चुनाव लड़कर पंडित जी फिर यूपी की विधानसभा पहुँचे। 1974 का चुनाव हुआ लेकिन पंडित जी ने हैट्रिक मार दी। कांग्रेसी का दौर था और पंडित तेजनरायन त्रिवेदी के सितारे बुलंद थे। एक के बाद एक चुनाव हुए पर श्री त्रिवेदी और उनकी इस कोठी ने यश पताका फहराए रखी। 1980 में चुनाव हुआ,पंडित जी एक बार फिर चौथी बार जीत गए। पर इस बार वह कांग्रेस से नहीं स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़े। कांग्रेस से कुछ खटपट हुई उनका टिकट दूसरी जगह से दिया जाने नहीं लगा। पंडित जी अड़े रहे और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए और जीत दर्ज की।
पंडित तेज नारायण त्रिवेदी कमलापति त्रिपाठी के शिष्य रहे कमलापति त्रिपाठी ने उनको राजनीति का ककहरा सिखाया था। इसके बाद तो चाहे इन्दिरा गाँधी हों या कोई काँग्रेस का बड़े से बड़ा लीडर या मुख्यमंत्री हो जो पंडित जी की कोठी पर न आया हो और उसने यहां बैठकर चाय न पी हो।
खीरी जिले में पंडित तेजनरायन त्रिवेदी की कोठी काँग्रेसी कोठी के रूप में जानी जाने लगी थी। कुछ दिन काँग्रेस से मनमुटाव के बाद 1989 में कांग्रेस ने फिर पंडित जी को मना लिया। और वह जिला परिषद के अध्यक्ष बन गए। 1991 तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष रहे। इसके बाद एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर वह चुनाव लड़े और श्रीनगर विधानसभा से छठी बार विधायक बनकर जीत का परचम लहराया। श्री त्रिवेदी ने 1996 में काँग्रेस से लोकसभा भी लड़ी। पर तब तक काँग्रेस वेल्टीलेयर पर जा चुकी थी। सो वो हार गए थे,पर पण्डित जी ने जिन्दगी में कभी हार नहीं मानी। अपने उसूलों के पक्के रहे।
93 साल की उम्र में पंडित तेज नारायण त्रिवेदी का आज निधन हो गया है। हर आंख नम है हिंदू हो या मुसलमान सभी गमजदा है। उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने आए मुस्सन मियां कहते हैं कि 1968 में पहली बार पंडित बंशीधर मिश्र के हाथों उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली थी। तब से पंडित जी का साथ हुआ। श्रीनगर से जब पंडित जी चुनाव लड़े तो उनसे इतनी करीबी हो गई कि फिर कभी इस कोठी और पंडित जी को भूल ही ना पाए। हम एक दूसरे के इतने करीब रहे कि जो भी इलेक्शन हुआ पंडित जी ने हमारा साथ नहीं छोड़ा और हमने उनका। पण्डित जी हमेशा हर आदमी को नेक सलाह देते थे। उतने ही नेक इंसान भी थे।
पण्डित जी ने वो दौर भी देखा था और ये दौर भी देख रहे थे। उस दौर में सिर्फ चिट्ठी लिख देने भर से सरकारी नौकरी लग जाती थी।। न जाने कितने ही विद्यार्थियों को इस काँग्रेस कोठी में जगह मिली। वो पढ़लिख सरकारी नौकरी पाए। न जाने कितने मरीजों को जिंदगी दी। इन्दिरा गाँधी हों या काँग्रेस के नारायण दत्त तिवारी या वीरबहादुर सिंह सब इस कोठी पर जरूर आए।
पण्डित जी के बेटे आनन्द मोहन त्रिवेदी याद करते हुए कहते हैं इंदिरा जी आईं थीं मुझे कहीं बैठने की जगह नहीं मिली। फोटो खिंचने जा रहा था। तो इंदिरा जी ने मुझे अपनी गोद में बिठा लिया था।


Conclusion:छह बार के विधायक और एक बार एमएलसी और जिला पंचायत अध्यक्ष समेत तमाम मुद्दों पर रहे पंडित तेज नारायण त्रिवेदी को अपने ओहदे और रसूख का जरा भी घमंड नहीं था। वह लोगों से आज भी वैसे ही मिलते थे जैसे पहले । इसीलिए हर आदमी उनका कायल था। चाहे वह कांग्रेस का हो चाहे भाजपा का या फिर किसी अन्य दल का।
आज भाजपा के भी कई लीडरान उनके अंतिम दर्शन को उनकी कोठी पर पहुंचे। पूर्व विधायक होने के नाते गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया। कांग्रेस के पूर्व सांसद जफर अली नकवी भी आए। अपने वरिष्ठ काँग्रेसी अभिभावक को खोने से गमजदा होकर बोले। कि पंडित जी की तरह नेक इंसान मिलना अब बहुत कठिन कांग्रेस को उनके जाने से बहुत नुकसान हुआ है। और यह कोठी अब उदास हो गई है। पर उनकी अगली पीढ़ी इसे आगे बढ़ाएगी।
बाइट-मुस्सन मियाँ(पण्डित जी के सहयोगी)
बाइट-जफर अली नकवी(पूर्व सांसद,पूर्व मंत्री यूपी)
पीटीसी-प्रशान्त पाण्डेय
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प्रशान्त पाण्डेय
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