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सियासत, संस्कृति और साहित्य का संगम है झांसी, बेहद दिलचस्प है इसके नाम और पहचान की कहानी

दो लोकसभा क्षेत्रों में फैले और चार विधानसभा सीटों को अपने में समाए झांसी जिला राहुल गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक और सपा से लेकर बसपा तक, सभी के लिए बुन्देलखण्ड को साधने का एक प्रमुख रास्ता बनता रहा है. इसका कैसे पड़ा यह झांसी नाम और कैसे बनी इसकी खास पहचान, यह पूरी कहानी बेहद दिलचस्प है और रोमांचक भी. इस रिपोर्ट में जानिए ये पूरी कहानी.

झांसी की कहानी.
झांसी की कहानी.
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Published : Sep 11, 2021, 11:03 PM IST

Updated : Sep 12, 2021, 5:03 PM IST

झांसी: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित झांसी उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जनपद है. कभी ओरछा राज्य के अधीन रहा झांसी इतिहास के एक कालखंड में देश की आजादी की पहली लड़ाई के सबसे महत्वपूर्ण और चर्चित स्थल के रूप में जाना गया. रानी लक्ष्मीबाई की वीरता, मैथिलीशरण गुप्त का सहित्य, मेजर ध्यानचंद का खेल सहित साहित्य, संस्कृति व शौर्य की अनगिनत कहानियों से भरपूर झांसी जनपद राजनीतिक रूप से भी हमेशा महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु रहा है. दो लोकसभा क्षेत्रों में फैले और चार विधानसभा सीटों को अपने में समाए झांसी जिला राहुल गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक और सपा से लेकर बसपा तक, सभी के लिए बुन्देलखण्ड को साधने का एक प्रमुख रास्ता बनता रहा है. इसका कैसे पड़ा यह झांसी नाम और कैसे बनी इसकी खास पहचान, यह पूरी कहानी बेहद दिलचस्प है और रोमांचक भी.


क्या है झांसी नाम पड़ने की कहानी
झांसी को किसी समय में बलवंत नगर नाम से भी जाना जाता था. इसका झाँसी नाम कब और कैसे पड़ा, इसके पीछे अब तक कोई स्पष्ट और प्रामाणिक कहानी लोगों के सामने नहीं आ सकी है. नामकरण को लेकर जो सबसे अधिक प्रचलित कहानी है, वह कहानी हमें बताई बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मुन्ना तिवारी ने. वे बताते हैं कि झांसी किसी समय में ओरछा नरेश के अधीन रही है. उनकी देखरेख में यह पल्लवित और पुष्पित हुआ. एक बार उनकी महारानी को दूर से दिखाया गया कि यहां एक किला आपके लिए बन रहा है. दूर से देखने पर वह बिल्कुल झांई सी (अस्पष्ट) दिखी. जिसके बाद झांई सी से होते-होते आज यह झांसी रूप में हमारे सामने है.

झांसी की कहानी.

साहित्य, कला और संस्कृति का संगम
झांसी साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध जनपद रहा है. प्रसिद्ध उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा का जन्म झांसी के मऊरानीपुर में हुआ था. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त झांसी के चिरगांव में जन्मे थे. प्रसिद्ध लोक कवि ईसुरी का जन्म यहीं के मेढकी गांव में हुआ था. प्रसिद्ध गीतकार इंदीवर यहां के बरुआसागर के रहने वाले थे. साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी भी काफी समय झांसी में रहे और साहित्य साधना की. समकालीन लेखन में मैत्रेयी पुष्पा एक ऐसा नाम है, जिनका शुरुआती जीवन झांसी जनपद में बीता. साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कई नाम है जो कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में झांसी का परचम प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर बुलंद किये हुए हैं. देश के कई प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों की शुरुआत भी झांसी जिले से ही मानी जाती है. खेल जगत की बात करें तो मेजर ध्यानचंद की कर्मस्थली ने हॉकी के कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए. अशोक ध्यानचंद, अब्दुल अजीज, जमशेर खान, सुबोध खांडेकर, तुषार खांडेकर जैसे खिलाड़ियों ने खेल जगत में झांसी का परचम बुलंद किया. अभी हाल के दिनों में अंडर ट्वेंटी विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में लांग जम्प में सिल्वर मेडल हासिल करने वाली शैली सिंह भी झांसी के पारीछा गांव की रहने वाली है.

मैथिलीशरण गुप्त का रहा है झांसी से नाता.
मैथिलीशरण गुप्त का रहा है झांसी से नाता.



ऐतिहासिक रूप से झांसी का महत्व
इतिहासकार डॉ चित्रगुप्त बताते हैं कि ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने झांसी का किला बनवाया था. इससे पहले भी झांसी एक व्यापारिक मार्ग के रूप में प्रसिद्ध था. यहां गुसाईं संतों के तमाम छोटे-बड़े अखाड़े थे जो सैनिक रेजिमेंट की तरह काम करते थे. ओरछा नरेश ने किले के संरक्षण के लिए यहां गुसाईं सन्यासियों को रखा. नागा सन्यासियों का सहयोग ओरछा के राजा को सैनिकों के रूप में मिलता रहा. अठाहरवीं सदी में यहां मराठों का शासन शुरू हुआ. मराठों के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी ने झांसी को हस्तगत कर लिया. रानी लक्ष्मीबाई के साथ झांसी के सैकड़ों वीरों और वीरांगनाओं ने 1857 की क्रांति में अपनी शहादत दी. महात्मा गांधी का आन्दोलन हो या चंद्रशेखर आजाद की आवाज हो, यहां के क्रांतिकारी महात्मा गांधी की आवाज पर सत्याग्रह करने के लिए सड़क पर निकल आते थे तो चंद्रशेखर आजाद की आवाज पर पिस्तौल लेकर अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो जाते थे.

रानी लक्ष्मीबाई.
रानी लक्ष्मीबाई.



सियासत में प्रासंगिक रहा झांसी
झांसी जनपद हमेशा से ही सियासी गतिविधियों का केंद्र रहा है. इस सीट से सुशीला नैयर और उमा भारती जैसे दिग्गज चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे तो कभी नारायण दत्त तिवारी को यहां हार का भी सामना करना पड़ा था. नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, मायावती और अखिलेश यादव लगातार झांसी के सियासी आयोजनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय सिंह कहते हैं कि पूर्व के समय की बात करें तो सुशीला नैयर ने झांसी से लोकसभा चुनाव लड़ा. झांसी के समथर स्टेट के राजा रणजीत सिंह जूदेव प्रदेश सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे. ओम प्रकाश रिछारिया एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे. भाजपा के चार बार के विधायक रहे डॉ रवींद्र शुक्ल दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं. डॉ चंद्रपाल सिंह यादव एक बड़े नेता के रूप में उभरे. वे पूर्व में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं और वर्तमान में कृभको के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. कांग्रेस के नेता प्रदीप जैन आदित्य भारत सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी की दिग्गज नेता उमा भारती ने झांसी से 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था और भारत सरकार में मंत्री बनी थीं. मौजूदा सरकार में सूक्ष्म व लघु उद्योग राज्यमंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा जिस जालौन संसदीय सीट से लोकसभा के सदस्य हैं, उसका एक विधानसभा सीट गरौठा झांसी जिले का हिस्सा है. झांसी के वर्तमान सांसद अनुराग शर्मा हैं और वे प्रतिष्ठित उद्योग समूह वैद्यनाथ के मालिक हैं. झांसी जिले में वर्तमान में चार विधानसभा सीटे हैं.

मेजर ध्यानचंद.
मेजर ध्यानचंद.



आजीविका और शिक्षा के साधन
कृषि प्रधान जिला होने के बावजूद झांसी जिले में खेती एक बड़ी चुनौती है. जल संकट का सामना करते हुए किसान कड़ी मेहनत से दलहन और तिलहन की बेहतर पैदावार करते हैं. कभी यह क्षेत्र दलहन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था लेकिन कालांतर में इसके उत्पादन में कमी आई है. बरुआसागर क्षेत्र हल्दी के उत्पादन के लिए अपनी अलग पहचान रखता है. बेतवा इस जनपद की मुख्य नदी है और सिंचाई के साधन बेहतर कर यहां कृषि की सम्भावनाओ को बेहतर किया जा सकता है. रानीपुर का टेरीकाट उद्योग किसी समय में काफी प्रसिद्ध था लेकिन इस समय यह अंतिम सांसे ले रहा है. पारीछा थर्मल पावर प्लांट, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, रेलवे का डिवीजन कार्यालय और भारतीय सेना के विभिन्न रेजिमेंट्स की इस जिले में मौजूदगी इसके महत्व को बढ़ाती है. जिले में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय और रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख संस्थान हैं. इनके अलावा महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज, बुन्देलखण्ड इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी व आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज भी शिक्षा के बड़े केंद्र हैं. झांसी जिला पर्यटन का भी एक बड़ा केंद्र है. रानी लक्ष्मीबाई का किला, रानी का महल व बरुआसागर किले को देखने देश-विदेश से सैलानी आते हैं.

झांसी का किला.
झांसी का किला.

झांसी: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित झांसी उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जनपद है. कभी ओरछा राज्य के अधीन रहा झांसी इतिहास के एक कालखंड में देश की आजादी की पहली लड़ाई के सबसे महत्वपूर्ण और चर्चित स्थल के रूप में जाना गया. रानी लक्ष्मीबाई की वीरता, मैथिलीशरण गुप्त का सहित्य, मेजर ध्यानचंद का खेल सहित साहित्य, संस्कृति व शौर्य की अनगिनत कहानियों से भरपूर झांसी जनपद राजनीतिक रूप से भी हमेशा महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु रहा है. दो लोकसभा क्षेत्रों में फैले और चार विधानसभा सीटों को अपने में समाए झांसी जिला राहुल गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक और सपा से लेकर बसपा तक, सभी के लिए बुन्देलखण्ड को साधने का एक प्रमुख रास्ता बनता रहा है. इसका कैसे पड़ा यह झांसी नाम और कैसे बनी इसकी खास पहचान, यह पूरी कहानी बेहद दिलचस्प है और रोमांचक भी.


क्या है झांसी नाम पड़ने की कहानी
झांसी को किसी समय में बलवंत नगर नाम से भी जाना जाता था. इसका झाँसी नाम कब और कैसे पड़ा, इसके पीछे अब तक कोई स्पष्ट और प्रामाणिक कहानी लोगों के सामने नहीं आ सकी है. नामकरण को लेकर जो सबसे अधिक प्रचलित कहानी है, वह कहानी हमें बताई बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मुन्ना तिवारी ने. वे बताते हैं कि झांसी किसी समय में ओरछा नरेश के अधीन रही है. उनकी देखरेख में यह पल्लवित और पुष्पित हुआ. एक बार उनकी महारानी को दूर से दिखाया गया कि यहां एक किला आपके लिए बन रहा है. दूर से देखने पर वह बिल्कुल झांई सी (अस्पष्ट) दिखी. जिसके बाद झांई सी से होते-होते आज यह झांसी रूप में हमारे सामने है.

झांसी की कहानी.

साहित्य, कला और संस्कृति का संगम
झांसी साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध जनपद रहा है. प्रसिद्ध उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा का जन्म झांसी के मऊरानीपुर में हुआ था. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त झांसी के चिरगांव में जन्मे थे. प्रसिद्ध लोक कवि ईसुरी का जन्म यहीं के मेढकी गांव में हुआ था. प्रसिद्ध गीतकार इंदीवर यहां के बरुआसागर के रहने वाले थे. साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी भी काफी समय झांसी में रहे और साहित्य साधना की. समकालीन लेखन में मैत्रेयी पुष्पा एक ऐसा नाम है, जिनका शुरुआती जीवन झांसी जनपद में बीता. साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कई नाम है जो कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में झांसी का परचम प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर बुलंद किये हुए हैं. देश के कई प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों की शुरुआत भी झांसी जिले से ही मानी जाती है. खेल जगत की बात करें तो मेजर ध्यानचंद की कर्मस्थली ने हॉकी के कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए. अशोक ध्यानचंद, अब्दुल अजीज, जमशेर खान, सुबोध खांडेकर, तुषार खांडेकर जैसे खिलाड़ियों ने खेल जगत में झांसी का परचम बुलंद किया. अभी हाल के दिनों में अंडर ट्वेंटी विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में लांग जम्प में सिल्वर मेडल हासिल करने वाली शैली सिंह भी झांसी के पारीछा गांव की रहने वाली है.

मैथिलीशरण गुप्त का रहा है झांसी से नाता.
मैथिलीशरण गुप्त का रहा है झांसी से नाता.



ऐतिहासिक रूप से झांसी का महत्व
इतिहासकार डॉ चित्रगुप्त बताते हैं कि ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने झांसी का किला बनवाया था. इससे पहले भी झांसी एक व्यापारिक मार्ग के रूप में प्रसिद्ध था. यहां गुसाईं संतों के तमाम छोटे-बड़े अखाड़े थे जो सैनिक रेजिमेंट की तरह काम करते थे. ओरछा नरेश ने किले के संरक्षण के लिए यहां गुसाईं सन्यासियों को रखा. नागा सन्यासियों का सहयोग ओरछा के राजा को सैनिकों के रूप में मिलता रहा. अठाहरवीं सदी में यहां मराठों का शासन शुरू हुआ. मराठों के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी ने झांसी को हस्तगत कर लिया. रानी लक्ष्मीबाई के साथ झांसी के सैकड़ों वीरों और वीरांगनाओं ने 1857 की क्रांति में अपनी शहादत दी. महात्मा गांधी का आन्दोलन हो या चंद्रशेखर आजाद की आवाज हो, यहां के क्रांतिकारी महात्मा गांधी की आवाज पर सत्याग्रह करने के लिए सड़क पर निकल आते थे तो चंद्रशेखर आजाद की आवाज पर पिस्तौल लेकर अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो जाते थे.

रानी लक्ष्मीबाई.
रानी लक्ष्मीबाई.



सियासत में प्रासंगिक रहा झांसी
झांसी जनपद हमेशा से ही सियासी गतिविधियों का केंद्र रहा है. इस सीट से सुशीला नैयर और उमा भारती जैसे दिग्गज चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे तो कभी नारायण दत्त तिवारी को यहां हार का भी सामना करना पड़ा था. नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, मायावती और अखिलेश यादव लगातार झांसी के सियासी आयोजनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय सिंह कहते हैं कि पूर्व के समय की बात करें तो सुशीला नैयर ने झांसी से लोकसभा चुनाव लड़ा. झांसी के समथर स्टेट के राजा रणजीत सिंह जूदेव प्रदेश सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे. ओम प्रकाश रिछारिया एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे. भाजपा के चार बार के विधायक रहे डॉ रवींद्र शुक्ल दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं. डॉ चंद्रपाल सिंह यादव एक बड़े नेता के रूप में उभरे. वे पूर्व में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं और वर्तमान में कृभको के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. कांग्रेस के नेता प्रदीप जैन आदित्य भारत सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी की दिग्गज नेता उमा भारती ने झांसी से 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था और भारत सरकार में मंत्री बनी थीं. मौजूदा सरकार में सूक्ष्म व लघु उद्योग राज्यमंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा जिस जालौन संसदीय सीट से लोकसभा के सदस्य हैं, उसका एक विधानसभा सीट गरौठा झांसी जिले का हिस्सा है. झांसी के वर्तमान सांसद अनुराग शर्मा हैं और वे प्रतिष्ठित उद्योग समूह वैद्यनाथ के मालिक हैं. झांसी जिले में वर्तमान में चार विधानसभा सीटे हैं.

मेजर ध्यानचंद.
मेजर ध्यानचंद.



आजीविका और शिक्षा के साधन
कृषि प्रधान जिला होने के बावजूद झांसी जिले में खेती एक बड़ी चुनौती है. जल संकट का सामना करते हुए किसान कड़ी मेहनत से दलहन और तिलहन की बेहतर पैदावार करते हैं. कभी यह क्षेत्र दलहन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था लेकिन कालांतर में इसके उत्पादन में कमी आई है. बरुआसागर क्षेत्र हल्दी के उत्पादन के लिए अपनी अलग पहचान रखता है. बेतवा इस जनपद की मुख्य नदी है और सिंचाई के साधन बेहतर कर यहां कृषि की सम्भावनाओ को बेहतर किया जा सकता है. रानीपुर का टेरीकाट उद्योग किसी समय में काफी प्रसिद्ध था लेकिन इस समय यह अंतिम सांसे ले रहा है. पारीछा थर्मल पावर प्लांट, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, रेलवे का डिवीजन कार्यालय और भारतीय सेना के विभिन्न रेजिमेंट्स की इस जिले में मौजूदगी इसके महत्व को बढ़ाती है. जिले में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय और रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख संस्थान हैं. इनके अलावा महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज, बुन्देलखण्ड इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी व आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज भी शिक्षा के बड़े केंद्र हैं. झांसी जिला पर्यटन का भी एक बड़ा केंद्र है. रानी लक्ष्मीबाई का किला, रानी का महल व बरुआसागर किले को देखने देश-विदेश से सैलानी आते हैं.

झांसी का किला.
झांसी का किला.
Last Updated : Sep 12, 2021, 5:03 PM IST
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