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गोरखपुरः गन्ने की फसल पर संकट, 13 सौ हेक्टयर फसल सूखने के कगार पर

यूपी के गोरखपुर जिले में गन्ने की पैदावार काना रोग (रेड-राट) की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई है. करीब 13703 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की फसल सूखने के कगार पर पहुंच गई है. इसमें 21 सौ हेक्टेयर फसल काना रोग की चपेट में आ गई है.

सूखने की कगार पर गन्ने की फसल
सूखने की कगार पर गन्ने की फसल
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Published : Sep 22, 2020, 7:11 PM IST

गोरखपुरः मंडल में गन्ने की पैदावार काना रोग (रेड-राट) की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई है. करीब 13703 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की फसल सूखने के कगार पर पहुंच गई है. इसमें 21 सौ हेक्टेयर फसल काना रोग की चपेट में आ गई है. गन्ना विभाग ने किसानों को राहत देने के लिए सेवरही और शाहजहांपुर के वैज्ञानिकों से संपर्क किया है, जिससे सूख रही गन्ने की फसल को बचाया जा सके और किसानों के मुरझाए चेहरे पर खुशी लाई जा सके. गोरखपुर क्षेत्र में इस बार 120911.13 हेक्टेयर में गन्ने की फसल बोई गई है. इसमें 13703 हेक्टेयर फसल कोलेटो ट्राइकम हल्केटम नामक फफूंद द्वारा बर्बाद होने की कगार पर है.

गन्ना किसान अधिक उत्पादन और परता की चाह में अपने खेत में गन्ने की जिस प्रजाति को बोते हैं, उसे 0238 कहते हैं, लेकिन खेतों में जलभराव के चलते इस प्रजाति में रेड-राट रोग लग जाता है. लगातार अधिक वर्षा होने के कारण अधिकांश खेतों में पानी लगा हुआ है, जो इस रोग को फैलाने में सहायक हो रहा है. गन्ने की पैदावार के लिए अधिकतम 1000 मिलीमीटर पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन मौजूदा समय में खेतों में इसकी उपलब्धता 1200-1400 मिलीमीटर हुई है, जो इसके नुकसान का कारण बन रही है.

गन्ना उपायुक्त उषा पाल कहती हैं कि फसल के नुकसान को कम करने के लिए वैज्ञानिकों से संपर्क साधा गया है. मुख्यालय को इसकी रिपोर्ट भेजी जा चुकी है. फिलहाल फील्ड स्टाफ ब्लीचिंग पाउडर आदि के जरिए फसल को बचाने में जुटे हैं, लेकिन असली रोकथाम वैज्ञानिकों की विजिट और उनके सलाह के बाद ही संभव हो पाएगा. फिलहाल गन्ना विभाग ने किसानों को जो सावधानियां बरतने के लिए सलाह दी है, उसमें रेड-राट से प्रभावित फसल को काटकर नष्ट कर दिया जाए और शेष फसल पर कारबेडियम, थियोफैनेटमिथाइल का प्रयोग प्रत्येक माह के अंतराल पर करें. प्रभावित क्षेत्रों में केवल शरदकालीन गन्ने की बुवाई करें. गोरखपुर मंडल के जिलेवार आंकड़ों पर गौर करें तो गोरखपुर समेत महाराजगंज, कुशीनगर और देवरिया में गन्ने की फसल रेड-राट के अलावा उकठा रोग, पोक्का बोइंग और जलभराव की वजह से बर्बाद हुई है. इसको बचाने के लिए इस क्षेत्र में शाहजहांपुर और सेवरही के वैज्ञानिकों की सलाह अहम हो गई है.

गोरखपुरः मंडल में गन्ने की पैदावार काना रोग (रेड-राट) की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई है. करीब 13703 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की फसल सूखने के कगार पर पहुंच गई है. इसमें 21 सौ हेक्टेयर फसल काना रोग की चपेट में आ गई है. गन्ना विभाग ने किसानों को राहत देने के लिए सेवरही और शाहजहांपुर के वैज्ञानिकों से संपर्क किया है, जिससे सूख रही गन्ने की फसल को बचाया जा सके और किसानों के मुरझाए चेहरे पर खुशी लाई जा सके. गोरखपुर क्षेत्र में इस बार 120911.13 हेक्टेयर में गन्ने की फसल बोई गई है. इसमें 13703 हेक्टेयर फसल कोलेटो ट्राइकम हल्केटम नामक फफूंद द्वारा बर्बाद होने की कगार पर है.

गन्ना किसान अधिक उत्पादन और परता की चाह में अपने खेत में गन्ने की जिस प्रजाति को बोते हैं, उसे 0238 कहते हैं, लेकिन खेतों में जलभराव के चलते इस प्रजाति में रेड-राट रोग लग जाता है. लगातार अधिक वर्षा होने के कारण अधिकांश खेतों में पानी लगा हुआ है, जो इस रोग को फैलाने में सहायक हो रहा है. गन्ने की पैदावार के लिए अधिकतम 1000 मिलीमीटर पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन मौजूदा समय में खेतों में इसकी उपलब्धता 1200-1400 मिलीमीटर हुई है, जो इसके नुकसान का कारण बन रही है.

गन्ना उपायुक्त उषा पाल कहती हैं कि फसल के नुकसान को कम करने के लिए वैज्ञानिकों से संपर्क साधा गया है. मुख्यालय को इसकी रिपोर्ट भेजी जा चुकी है. फिलहाल फील्ड स्टाफ ब्लीचिंग पाउडर आदि के जरिए फसल को बचाने में जुटे हैं, लेकिन असली रोकथाम वैज्ञानिकों की विजिट और उनके सलाह के बाद ही संभव हो पाएगा. फिलहाल गन्ना विभाग ने किसानों को जो सावधानियां बरतने के लिए सलाह दी है, उसमें रेड-राट से प्रभावित फसल को काटकर नष्ट कर दिया जाए और शेष फसल पर कारबेडियम, थियोफैनेटमिथाइल का प्रयोग प्रत्येक माह के अंतराल पर करें. प्रभावित क्षेत्रों में केवल शरदकालीन गन्ने की बुवाई करें. गोरखपुर मंडल के जिलेवार आंकड़ों पर गौर करें तो गोरखपुर समेत महाराजगंज, कुशीनगर और देवरिया में गन्ने की फसल रेड-राट के अलावा उकठा रोग, पोक्का बोइंग और जलभराव की वजह से बर्बाद हुई है. इसको बचाने के लिए इस क्षेत्र में शाहजहांपुर और सेवरही के वैज्ञानिकों की सलाह अहम हो गई है.

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