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सपाइयों के लिए नहीं दिख रही राह आसान, 2019 में बदला गोरखपुर सीट का समीकरण

लोकसभा चुनाव 2019 में गोरखपुर संसदीय सीट पर मतदान के करीब आते-आते कई तरह के मुद्दे हवाई हो चले हैं. जाति का मुद्दा कहीं टिकता नजर नहीं आ रहा तो विकास का मुद्दा इस संसदीय सीट पर मौजूदा लोकसभा चुनाव में काफी प्रभावी दिखाई दे रहा है.

जातिवाद पर भारी पड़ रहा विकास का मुद्दा.
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Published : May 16, 2019, 8:04 AM IST

गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अजेय रही इस सीट को बीजेपी किसी भी सूरत में जीतना चाहती है तो गठबंधन की उम्मीद जातीय समीकरण है. जिसके लिए वह अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर वर्ग के लोगों को अपने से जोड़कर भारी मतदान की अपील कर रहे हैं. जनता और प्रबुद्ध वर्ग के बीच से निकल कर आ रही आवाज यही बता रही है कि इस बार के चुनाव में न जाति का मुद्दा हावी होगा ना धर्म का, क्योंकि गोरखपुर विकास के रास्ते पर चल पड़ा है और विकास ही सबसे बड़ा मुद्दा है.

2019 में बदला गोरखपुर सीट का समीकरण
  • गोरखपुर संसदीय सीट 2018 के लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के खाते में चली गई थी.
  • जिसके बाद सपाइयों को लगने लगा कि वह इस सीट को अब हर हाल में जीत लेंगे लेकिन, उस समय की गणित कुछ अलग थी.
  • सपा को बसपा का बाहरी समर्थन था तो भारतीय जनता पार्टी और उसके कार्यकर्ता इस गुमान में थे कि यह तो योगी जी की परंपरागत सीट है जिसे वह जीत ही लेंगे पर बीजेपी हार गई.
  • वहीं मौजूदा चुनाव में हालात बदले हुए हैं. गठबंधन का प्रत्याशी निषाद बिरादरी का है जिस की सर्वाधिक संख्या करीब चार लाख वोट इस सीट पर है.
  • पिछड़े और दलित भी भारी संख्या में हैं जिससे उसे जीत की पूरी उम्मीद है. भाजपा ने उपचुनाव हारने के बाद कई तरह की समीक्षा भी की है
  • यही वजह है कि राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञों कि अपनी गणित है. जिसमें वह चुनाव में जाति के फैक्टर को नकारते तो नहीं है पर यह जरूर कहते हैं कि विकास के आगे यह सारे फैक्टर टूट जाएंगे.

देश की नजर जहां वाराणसी के चुनाव परिणाम पर टिकी है तो उत्तर प्रदेश की नजर गोरखपुर की सीट पर है. वाराणसी की सीट पर पीएम मोदी के जीत का अंतर बड़ा मायने रखेगा तो गोरखपुर की सीट भाजपा के खाते में चली जाए यह भी एक बड़ा मायने रखेगा. क्योंकि पिछले 5 लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने इसे बीजेपी की स्थाई सीट बना दिया था. फिलहाल मतदान करीब है जिसमें भारी मतदान का होना भी परिणाम में उलटफेर करने के लिए काफी निर्णायक होगा.

गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अजेय रही इस सीट को बीजेपी किसी भी सूरत में जीतना चाहती है तो गठबंधन की उम्मीद जातीय समीकरण है. जिसके लिए वह अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर वर्ग के लोगों को अपने से जोड़कर भारी मतदान की अपील कर रहे हैं. जनता और प्रबुद्ध वर्ग के बीच से निकल कर आ रही आवाज यही बता रही है कि इस बार के चुनाव में न जाति का मुद्दा हावी होगा ना धर्म का, क्योंकि गोरखपुर विकास के रास्ते पर चल पड़ा है और विकास ही सबसे बड़ा मुद्दा है.

2019 में बदला गोरखपुर सीट का समीकरण
  • गोरखपुर संसदीय सीट 2018 के लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के खाते में चली गई थी.
  • जिसके बाद सपाइयों को लगने लगा कि वह इस सीट को अब हर हाल में जीत लेंगे लेकिन, उस समय की गणित कुछ अलग थी.
  • सपा को बसपा का बाहरी समर्थन था तो भारतीय जनता पार्टी और उसके कार्यकर्ता इस गुमान में थे कि यह तो योगी जी की परंपरागत सीट है जिसे वह जीत ही लेंगे पर बीजेपी हार गई.
  • वहीं मौजूदा चुनाव में हालात बदले हुए हैं. गठबंधन का प्रत्याशी निषाद बिरादरी का है जिस की सर्वाधिक संख्या करीब चार लाख वोट इस सीट पर है.
  • पिछड़े और दलित भी भारी संख्या में हैं जिससे उसे जीत की पूरी उम्मीद है. भाजपा ने उपचुनाव हारने के बाद कई तरह की समीक्षा भी की है
  • यही वजह है कि राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञों कि अपनी गणित है. जिसमें वह चुनाव में जाति के फैक्टर को नकारते तो नहीं है पर यह जरूर कहते हैं कि विकास के आगे यह सारे फैक्टर टूट जाएंगे.

देश की नजर जहां वाराणसी के चुनाव परिणाम पर टिकी है तो उत्तर प्रदेश की नजर गोरखपुर की सीट पर है. वाराणसी की सीट पर पीएम मोदी के जीत का अंतर बड़ा मायने रखेगा तो गोरखपुर की सीट भाजपा के खाते में चली जाए यह भी एक बड़ा मायने रखेगा. क्योंकि पिछले 5 लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने इसे बीजेपी की स्थाई सीट बना दिया था. फिलहाल मतदान करीब है जिसमें भारी मतदान का होना भी परिणाम में उलटफेर करने के लिए काफी निर्णायक होगा.

Intro:गोरखपुर। लोकसभा चुनाव 2019 में गोरखपुर संसदीय सीट पर मतदान के करीब आते-आते कई तरह के मुद्दे हवाई हो चले हैं। जाति का मुद्दा कहीं टिकता नजर नहीं आ रहा तो विकास का मुद्दा इस संसदीय सीट पर मौजूदा लोकसभा चुनाव में काफी प्रभावी दिखाई दे रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अजेय रही इस सीट को बीजेपी किसी भी सूरत में जीतना चाहती है तो गठबंधन की उम्मीद जातीय समीकरण है, जिसके लिए वह अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर वर्ग के लोगों को अपने से जोड़कर भारी मतदान की अपील कर रहे हैं तो जनता और प्रबुद्ध वर्ग के बीच से निकल कर आ रही आवाज यही बता रही है कि इस बार के चुनाव में न जाति का मुद्दा हावी होगा ना धर्म का, क्योंकि गोरखपुर विकास के रास्ते पर चल पड़ा है और विकास भी सबसे बड़ा मुद्दा है।

नोट--कम्पलीट पैकेज स्टोरी है..वॉइस ओवर अटैच है।


Body:दरअसल गोरखपुर संसदीय सीट 2018 के लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के खाते में क्या चली गई सपाइयों को लगने लगा कि वह इस सीट को अब हर हाल में जीत लेंगे लेकिन, उस समय की गणित कुछ अजीब थी। सपा को बसपा का बाहरी समर्थन था तो भारतीय जनता पार्टी और उसके कार्यकर्ता इस गुमान में थे कि यह तो योगी जी की परंपरागत सीट है जिसे वह जीत ही लेंगे पर बीजेपी हार गई। लेकिन मौजूदा चुनाव में हालात बदले हुए हैं। गठबंधन का प्रत्याशी निषाद बिरादरी का है जिस की सर्वाधिक संख्या करीब चार लाख वोट इस सीट पर है। पिछड़े और दलित भी भारी संख्या में हैं जिससे उसे जीत की पूरी उम्मीद है। जबकि भाजपा ने उपचुनाव हारने के बाद कई तरह की समीक्षा की और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री रहते गोरखपुर के अंदर विकास की आधी ला दी। टू लेन की सड़क को फोरलेन बनाना हो, गोरखपुर का खाद कारखाना हो या फिर एम्स का निर्माण, यह प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो आज चालू हालत में हैं या उसके करीब, जिसका लाभ हर वर्ग के लोग महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञों कि अपनी गणित है जिसमें वह चुनाव में जाति के फैक्टर को नकारते तो नहीं है पर यह जरूर कहते हैं कि विकास के आगे यह सारे फैक्टर टूट जाएंगे। और हर वर्ग का वोट विकास के नाम पर जाएगा।

बाइट--डॉ राजेश सिंह, प्रोफेसर राजनीति विज्ञान
बाइट--डॉ गोपाल प्रसाद, प्रोफेसर एंड हेड, राजनीति विज्ञान विभाग, डीडीयू


Conclusion:देश की नजर जहां वाराणसी के चुनाव परिणाम पर टिकी होगी तो उत्तर प्रदेश की नजर गोरखपुर की सीट पर होगी। वाराणसी की सीट पर पीएम मोदी के जीत का अंतर बड़ा मायने रखेगा तो गोरखपुर की सीट भाजपा के खाते में चली जाए यह भी एक बड़ा मायने रखेगा। क्योंकि पिछले 5 लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने इसे बीजेपी की स्थाई सीट बना दिया था। इस सीट के जीत के साथ भाजपा और योगी दोनों का मान बढ़ेगा और विकास वास्तव में जीत जाएगा लेकिन, भाजपा हारी तो विकास हारेगा, जाति का मुद्दा प्रभावी होगा और सारे विश्लेषकों की कयास बाजी भी धरी की धरी रह जाएगी। लोकतंत्र की परिभाषा लोग अपने -अपने तरीके से करने लगेंगे। फिलहाल मतदान करीब है जिसमें भारी मतदान का होना भी परिणाम में उलटफेर करने के लिए काफी निर्णायक होगा।

क्लोजिंग पीटीसी....
मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
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