गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अजेय रही इस सीट को बीजेपी किसी भी सूरत में जीतना चाहती है तो गठबंधन की उम्मीद जातीय समीकरण है. जिसके लिए वह अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर वर्ग के लोगों को अपने से जोड़कर भारी मतदान की अपील कर रहे हैं. जनता और प्रबुद्ध वर्ग के बीच से निकल कर आ रही आवाज यही बता रही है कि इस बार के चुनाव में न जाति का मुद्दा हावी होगा ना धर्म का, क्योंकि गोरखपुर विकास के रास्ते पर चल पड़ा है और विकास ही सबसे बड़ा मुद्दा है.
- गोरखपुर संसदीय सीट 2018 के लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के खाते में चली गई थी.
- जिसके बाद सपाइयों को लगने लगा कि वह इस सीट को अब हर हाल में जीत लेंगे लेकिन, उस समय की गणित कुछ अलग थी.
- सपा को बसपा का बाहरी समर्थन था तो भारतीय जनता पार्टी और उसके कार्यकर्ता इस गुमान में थे कि यह तो योगी जी की परंपरागत सीट है जिसे वह जीत ही लेंगे पर बीजेपी हार गई.
- वहीं मौजूदा चुनाव में हालात बदले हुए हैं. गठबंधन का प्रत्याशी निषाद बिरादरी का है जिस की सर्वाधिक संख्या करीब चार लाख वोट इस सीट पर है.
- पिछड़े और दलित भी भारी संख्या में हैं जिससे उसे जीत की पूरी उम्मीद है. भाजपा ने उपचुनाव हारने के बाद कई तरह की समीक्षा भी की है
- यही वजह है कि राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञों कि अपनी गणित है. जिसमें वह चुनाव में जाति के फैक्टर को नकारते तो नहीं है पर यह जरूर कहते हैं कि विकास के आगे यह सारे फैक्टर टूट जाएंगे.
देश की नजर जहां वाराणसी के चुनाव परिणाम पर टिकी है तो उत्तर प्रदेश की नजर गोरखपुर की सीट पर है. वाराणसी की सीट पर पीएम मोदी के जीत का अंतर बड़ा मायने रखेगा तो गोरखपुर की सीट भाजपा के खाते में चली जाए यह भी एक बड़ा मायने रखेगा. क्योंकि पिछले 5 लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने इसे बीजेपी की स्थाई सीट बना दिया था. फिलहाल मतदान करीब है जिसमें भारी मतदान का होना भी परिणाम में उलटफेर करने के लिए काफी निर्णायक होगा.