बरेलीः देश की राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बीच स्थित है जिला बरेली. बरेली को नाथनगरी भी कहा जाता है. बरेली के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक महत्व के स्थलों में अलखनाथ मंदिर को गिना जाता है. बता दें कि अलखनाथ मंदिर नागाओं का प्राचीन मंदिर है, जिसे आनंद अखाड़ा संचालित करता है. अलखनाथ मंदिर नागा साधुओं की भक्तिस्थली है. आइए आज आपको इस प्राचीन मंदिर की तमाम विशेषताओं से परिचित करवाते हैं...
एक हजार वर्ष पुराना है इतिहास
बताया जाता है कि धर्म की रक्षा के लिए इस मंदिर का निर्माण करीब एक हजार वर्ष पहले किया गया था. सैंकड़ों वर्ष पूर्व पुराने मंदिर का अपना एक पौराणिक व वैदिक इतिहास है. महंत कालू गिरी महाराज ने बताया कि श्री तपोनिधि पंचायती आनंद अखाड़े की तरफ से बाबा अलाखिया को बरेली भेजा गया था.
भगवान शिव की भक्ति में तल्लीन रहते हैं साधु-महात्मा
यहां प्रदेशभर से भी नागा साधुओं के बारे में करीब से जानने वाले लोग आते हैं और धार्मिक अनुष्ठान व पूजा-पाठ भी यहां करते हैं. कालू महाराज कहते हैं कि अब तक अलग-अलग समय पर अलखनाथ मंदिर में कई महंत हुए हैं. उन महंतों ने हमेशा देश और समाज के हित के लिए काम किया है.
मुस्लिमों के प्रवेश पर है रोक
अलखनाथ के दरबार में मुस्लिमों के आने पर प्रतिबंध है. जिसके लिए एक विशाल बोर्ड भी मंदिर के मुख्य द्वार पर लगाया गया है.
जलाभिषेक करने से होती ही मुराद पूरी
ईटीवी भारत ने अलखनाथ मंदिर के महंत कालू गिरी महाराज से बात की. उन्होंने बताया की सदियों से इस धर्म स्थल पर भक्तों की अटूट आस्था है. वो बताते हैं कि यहां आकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करने, ध्यान लगाने से भक्तों का कल्याण हो जाता है. उनकी तमाम बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. उन्होंने बताया कि यहां का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पुराना है. यहां दूर-दूर से लोग पूजा करने आते हैं. साधु-महात्मा तो यहां हर समय आते ही हैं. उन्होंने बताया कि भगवान शिव समेत सभी देवी देवताओं का विधिविधान से हर दिन पूजन होता है.
भगवान सूर्य की भी होती है विशेष पूजा
मंदिर में भगवान सूर्य भी विराजमान हैं. उन्होंने बताया कि महाकुंभ लगने वाला है, ऐसे में नागा साधु और अन्य सभी साधु महात्मा बड़ी संख्या में हरिद्वार का रुख करेंगे. उन्होंने बताया कि भगवान सूर्य और उनके पूरे दरबार के साथ मन्दिर से सैंकड़ों साधुओं को हरिद्वार कुम्भ मेले में शाही स्नान के लिए जाना है. आजकल तैयारियां जारी हैं. इस परिसर में सैंकड़ों वर्ष पुराना वृक्ष भी है, जिसकी जटाएं इसकी प्राचीनता का प्रमाण हैं.