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लखीमपुर खीरी हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 8 नवंबर को होगी

लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में पिछली सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्व ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट में एक स्टेट्स रिपोर्ट फाइल की गई है, जिसपर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी.

लखीमपुर खीरी हिंसा पर आज सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई
लखीमपुर खीरी हिंसा पर आज सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई
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Published : Oct 26, 2021, 9:20 AM IST

Updated : Oct 26, 2021, 11:55 AM IST

नई दिल्ली : लखीमपुर खीरी हिंसा मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को घटना के गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि गवाहों के बयान जल्द से जल्द दर्ज किए जाएं. लखीमपुर हिंसा मामले में अगली सुनवाई आठ नवंबर को होगी.

लखीमपुर खीरी हिंसा मामला में सुनवाई के दौरान गवाहों की संख्या को लेकर पेच अड़ता नजर आया. अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल किया कि घटनास्थल पर मौजूद रहने वाले लोगों की संख्या जब हजारों में थी, फिर चश्मदीद गवाह केवल 23 क्यों.

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 68 गवाहों में से 30 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं. 23 लोगों ने घटना के चश्मदीद होने का दावा किया है.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने वकील से सवाल किया कि घटनास्थल पर रैली के दौरान सैकड़ों किसान मौजूद थे. फिर चश्मदीद गवाह केवल 23 क्यों. अदालत ने प्रदेश सरकार से कहा कि यदि घटनास्थल में मौजूद लोगों से अधिक विश्वसनीय चश्मदीद गवाह हैं, तो फिर इससे बेहतर प्राथमिक सूचना होनी चाहिए.

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने तर्क दिया कि घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने कार और कार के अंदर बैठे लोगों को देखा है.

अदालत ने कहा कि घटनास्थल पर चार हजार से पांच हजार लोगों की भीड़ थी, जिनमें सभी स्थानीय थे तथा घटना के बाद भी वहां अधिकांश आंदोलन कर रहे थे. यही बात बतायी भी गई है. ऐसे में घटनास्थल पर मौजूद रहे स्थानीय लोगों की पहचान करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि गवानों की पहचान जरूरी है. इस पर वकील हरीश साल्वे ने अदालत को बताया कि मामले में गवाहों के दर्ज बयानों को राज्य सरकार सीलबंद लिफाफे में दाखिल करेगी.

बता दें, हफ्ते भर पहले सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जांच को लेकर यूपी पुलिस को कड़ी फटकार लगाई गई थी.

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस बात पर असंतोष जताया था कि पुलिस ने आरोपियों को रिमांड पर रखने पर जोर नहीं दिया. उन्हें आसानी से न्यायिक हिरासत में जाने दिया. कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के सामने गवाहों के बयान दर्ज न होने के लिए भी एसआईटी को फटकार लगाई थी.

पढ़ें: लखीमपुर हिंसा मामला: अब 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

पिछली सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्व ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट में एक स्टेट्स रिपोर्ट फाइल की गई है, जिसपर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी गवाहों के बयान 164 में क्यों दर्ज नहीं हुए सिर्फ 4 के ही क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को लखीमपुर खीरी घटना के बाकी चश्मदीदों के बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज करने को कहा.

बता दें, प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ मामले पर सुनवाई कर रही है. इसी पीठ ने आठ लोगों की 'बर्बर' हत्या के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई पर आठ अक्टूबर को असंतोष व्यक्त किया था. मामले में अभी तक केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा सहित 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

शीर्ष अदालत ने आठ अक्टूबर को लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के आरोपियों को गिरफ्तार ना करने के कदम पर सवाल उठाए थे और साक्ष्यों को संरक्षित रखने का निर्देश दिया था.

नई दिल्ली : लखीमपुर खीरी हिंसा मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को घटना के गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि गवाहों के बयान जल्द से जल्द दर्ज किए जाएं. लखीमपुर हिंसा मामले में अगली सुनवाई आठ नवंबर को होगी.

लखीमपुर खीरी हिंसा मामला में सुनवाई के दौरान गवाहों की संख्या को लेकर पेच अड़ता नजर आया. अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल किया कि घटनास्थल पर मौजूद रहने वाले लोगों की संख्या जब हजारों में थी, फिर चश्मदीद गवाह केवल 23 क्यों.

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 68 गवाहों में से 30 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं. 23 लोगों ने घटना के चश्मदीद होने का दावा किया है.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने वकील से सवाल किया कि घटनास्थल पर रैली के दौरान सैकड़ों किसान मौजूद थे. फिर चश्मदीद गवाह केवल 23 क्यों. अदालत ने प्रदेश सरकार से कहा कि यदि घटनास्थल में मौजूद लोगों से अधिक विश्वसनीय चश्मदीद गवाह हैं, तो फिर इससे बेहतर प्राथमिक सूचना होनी चाहिए.

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने तर्क दिया कि घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने कार और कार के अंदर बैठे लोगों को देखा है.

अदालत ने कहा कि घटनास्थल पर चार हजार से पांच हजार लोगों की भीड़ थी, जिनमें सभी स्थानीय थे तथा घटना के बाद भी वहां अधिकांश आंदोलन कर रहे थे. यही बात बतायी भी गई है. ऐसे में घटनास्थल पर मौजूद रहे स्थानीय लोगों की पहचान करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि गवानों की पहचान जरूरी है. इस पर वकील हरीश साल्वे ने अदालत को बताया कि मामले में गवाहों के दर्ज बयानों को राज्य सरकार सीलबंद लिफाफे में दाखिल करेगी.

बता दें, हफ्ते भर पहले सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जांच को लेकर यूपी पुलिस को कड़ी फटकार लगाई गई थी.

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस बात पर असंतोष जताया था कि पुलिस ने आरोपियों को रिमांड पर रखने पर जोर नहीं दिया. उन्हें आसानी से न्यायिक हिरासत में जाने दिया. कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के सामने गवाहों के बयान दर्ज न होने के लिए भी एसआईटी को फटकार लगाई थी.

पढ़ें: लखीमपुर हिंसा मामला: अब 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

पिछली सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्व ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट में एक स्टेट्स रिपोर्ट फाइल की गई है, जिसपर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी गवाहों के बयान 164 में क्यों दर्ज नहीं हुए सिर्फ 4 के ही क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को लखीमपुर खीरी घटना के बाकी चश्मदीदों के बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज करने को कहा.

बता दें, प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ मामले पर सुनवाई कर रही है. इसी पीठ ने आठ लोगों की 'बर्बर' हत्या के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई पर आठ अक्टूबर को असंतोष व्यक्त किया था. मामले में अभी तक केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा सहित 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

शीर्ष अदालत ने आठ अक्टूबर को लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के आरोपियों को गिरफ्तार ना करने के कदम पर सवाल उठाए थे और साक्ष्यों को संरक्षित रखने का निर्देश दिया था.

Last Updated : Oct 26, 2021, 11:55 AM IST
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