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केंद्र, राज्यों को ईडब्ल्यूएस बच्चों के लिए प्रभावी योजना बनानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

कोविड महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा नहीं मिलने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और वंचित समूहों (डीजी) के बच्चों की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) को वास्तविकता बनाने के लिए केंद्र और राज्यों को यथार्थवादी और स्थायी योजना बनानी होगी.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 8, 2021, 9:37 PM IST

नई दिल्ली : कोविड महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा नहीं मिलने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और वंचित समूहों (डीजी) के बच्चों की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) को वास्तविकता बनाने के लिए केंद्र और राज्यों को यथार्थवादी और स्थायी योजना बनानी होगी.

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार से एक योजना बनाने को भी कहा, जिसे आरटीई अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अदालत के समक्ष रखा जाएगा.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ‘एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स’ द्वारा दाखिल एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के पिछले साल के 18 सितंबर के आदेश को चुनौती दी गई है. दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में गरीब छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं के वास्ते निजी और सरकारी स्कूलों को गैजेट और इंटरनेट उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था.

पीठ ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 21ए को एक वास्तविकता बनना है और अगर ऐसा है तो वंचित वर्ग के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा तक पर्याप्त पहुंच की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता है.'

उसने कहा कि आजकल स्कूल ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं, किसी को ऑनलाइन होमवर्क मिलता है और बच्चों को होमवर्क वापस अपलोड करना पड़ता है, लेकिन अगर वे ऐसा करने में असमर्थ हैं, तो यह पूरी तरह से असमानता होगी.

पीठ ने कहा, 'हमें दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले की सराहना करनी चाहिए. बच्चों के बीच असमानता के बारे में सोचकर भी दिल दहल जाता है. एक गरीब परिवार को अपने बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए लैपटॉप या टैब कहां से मिलेगा?'

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'मुझे पता है कि हमारे कर्मचारियों को अपने बच्चों को पढ़ने के लिए अपने मोबाइल फोन देने पड़ते हैं. इन परिवारों में मां घरेलू सहायिका का काम करती है या पिता चालक हैं, ये चीजें हम अपने आस-पास देखते हैं, वे ऑनलाइन कक्षाओं के लिए लैपटॉप या कंप्यूटर कैसे खरीदेंगे.'

पढ़ें- हाइब्रिड माध्यम काम नहीं कर पा रहा, अदालतों को शारीरिक उपस्थिति के साथ काम करना होगा : SC

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि इन समस्याओं के कारण स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि हुई है और बच्चों को बाल श्रम, बाल विवाह या तस्करी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, 'अगर हमें इन खतरों से बचना है, तो राज्य को एक योजना बनानी होगी और धन जुटाना होगा. इन बच्चों की देखभाल करना सरकार की जिम्मेदारी है.'

पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'इसलिए, हम निर्देश देते हैं कि वर्तमान मामले में एनसीटी दिल्ली सरकार के लिए यह आवश्यक होगा कि वह एक योजना लेकर आए जिसे अदालत के सामने रखा जाएगा.'इसमें कहा गया है, 'हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य दोनों इस मामले से तत्काल आधार पर निकट समन्वय से निपटेंगे ताकि एक यथार्थवादी और स्थायी समाधान खोजा जा सके.'

नई दिल्ली : कोविड महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा नहीं मिलने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और वंचित समूहों (डीजी) के बच्चों की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) को वास्तविकता बनाने के लिए केंद्र और राज्यों को यथार्थवादी और स्थायी योजना बनानी होगी.

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार से एक योजना बनाने को भी कहा, जिसे आरटीई अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अदालत के समक्ष रखा जाएगा.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ‘एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स’ द्वारा दाखिल एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के पिछले साल के 18 सितंबर के आदेश को चुनौती दी गई है. दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में गरीब छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं के वास्ते निजी और सरकारी स्कूलों को गैजेट और इंटरनेट उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था.

पीठ ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 21ए को एक वास्तविकता बनना है और अगर ऐसा है तो वंचित वर्ग के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा तक पर्याप्त पहुंच की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता है.'

उसने कहा कि आजकल स्कूल ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं, किसी को ऑनलाइन होमवर्क मिलता है और बच्चों को होमवर्क वापस अपलोड करना पड़ता है, लेकिन अगर वे ऐसा करने में असमर्थ हैं, तो यह पूरी तरह से असमानता होगी.

पीठ ने कहा, 'हमें दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले की सराहना करनी चाहिए. बच्चों के बीच असमानता के बारे में सोचकर भी दिल दहल जाता है. एक गरीब परिवार को अपने बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए लैपटॉप या टैब कहां से मिलेगा?'

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'मुझे पता है कि हमारे कर्मचारियों को अपने बच्चों को पढ़ने के लिए अपने मोबाइल फोन देने पड़ते हैं. इन परिवारों में मां घरेलू सहायिका का काम करती है या पिता चालक हैं, ये चीजें हम अपने आस-पास देखते हैं, वे ऑनलाइन कक्षाओं के लिए लैपटॉप या कंप्यूटर कैसे खरीदेंगे.'

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न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि इन समस्याओं के कारण स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि हुई है और बच्चों को बाल श्रम, बाल विवाह या तस्करी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, 'अगर हमें इन खतरों से बचना है, तो राज्य को एक योजना बनानी होगी और धन जुटाना होगा. इन बच्चों की देखभाल करना सरकार की जिम्मेदारी है.'

पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'इसलिए, हम निर्देश देते हैं कि वर्तमान मामले में एनसीटी दिल्ली सरकार के लिए यह आवश्यक होगा कि वह एक योजना लेकर आए जिसे अदालत के सामने रखा जाएगा.'इसमें कहा गया है, 'हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य दोनों इस मामले से तत्काल आधार पर निकट समन्वय से निपटेंगे ताकि एक यथार्थवादी और स्थायी समाधान खोजा जा सके.'

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