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अपील दायर करने में सरकारी अधिकारियों की देरी पर नाराज सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलें दायर करने में सरकारी अधिकारियों की देरी पर नाराजगी जताई है. कोर्ट का कहना है कि न्यायिक वक्त बर्बाद करने को लेकर खामियाजा भरना चाहिए. पीठ ने 662 दिनों की देरी के बाद एमपी द्वारा दायर की गई अपील के आदेश में कहा कि जब तक कानून है तब तक अपील निर्धारित अवधि के अनुसार दायर की जाएगी.

Supreme court on delay in appeal
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 18, 2020, 8:23 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने उसके समक्ष अपीलें दायर करने में सरकारी अधिकारियों द्वारा 'अत्यधिक विलंब' करने पर नाखुशी प्रकट की और कहा कि उन्हें 'न्यायिक वक्त बर्बाद करने को लेकर खामियाजा भरना चाहिए' तथा ऐसी कीमत जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली जानी चाहिए.

न्यायमूर्ति एस के कौल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ऐसी जगह नहीं हो सकती है कि अधिकारी कानून में निर्धारित समय सीमा की अनदेखी कर जब जी चाहे, आ जाएं.

न्यायमूर्ति कौल और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा हमने मुद्दा उठाया है कि यदि सरकारी मशीनरी समय से अपील/याचिका दायर करने में इतनी नाकाबिल और असमर्थ है, तो समाधान यह हो सकता है कि विधानमंडल से अनुरोध किया जाए कि अक्षमता के चलते सरकारी अधिकारियों के लिए अपील/याचिका दायर करने की अवधि बढ़ाई जाए.

पीठ ने 663 दिनों की देरी के बाद मध्य प्रदेश द्वारा दायर की गई अपील पर अपने आदेश में कहा जब तक कानून है तब तक अपील/याचिका निर्धारित अवधि के अनुसार दायर करनी होगी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि देरी के लिए क्षमा आवेदन में कहा गया है कि दस्तावेजों की अनुपलब्धता एवं उनके इंतजाम की प्रक्रिया के चलते देर हुई और यह भी कि 'नौकरशाही प्रक्रिया कार्य में कुछ देर होती है.'

पढ़ें - जानवरों की हत्या से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

पीठ ने कहा हम विस्तृत आदेश लिखने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि ऐसा जान पड़ता है कि सरकार और सरकारी अधिकारियों को दिए गए हमारे परामर्श का कोई फर्क नहीं पड़ा यानि उच्चतम न्यायालय कोई ऐसी जगह नहीं हो सकती है, जहां अधिकारी कानून में निर्धारित समय सीमा की अनदेखी कर जब जी चाहे, आ जाएं.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने उसके समक्ष अपीलें दायर करने में सरकारी अधिकारियों द्वारा 'अत्यधिक विलंब' करने पर नाखुशी प्रकट की और कहा कि उन्हें 'न्यायिक वक्त बर्बाद करने को लेकर खामियाजा भरना चाहिए' तथा ऐसी कीमत जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली जानी चाहिए.

न्यायमूर्ति एस के कौल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ऐसी जगह नहीं हो सकती है कि अधिकारी कानून में निर्धारित समय सीमा की अनदेखी कर जब जी चाहे, आ जाएं.

न्यायमूर्ति कौल और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा हमने मुद्दा उठाया है कि यदि सरकारी मशीनरी समय से अपील/याचिका दायर करने में इतनी नाकाबिल और असमर्थ है, तो समाधान यह हो सकता है कि विधानमंडल से अनुरोध किया जाए कि अक्षमता के चलते सरकारी अधिकारियों के लिए अपील/याचिका दायर करने की अवधि बढ़ाई जाए.

पीठ ने 663 दिनों की देरी के बाद मध्य प्रदेश द्वारा दायर की गई अपील पर अपने आदेश में कहा जब तक कानून है तब तक अपील/याचिका निर्धारित अवधि के अनुसार दायर करनी होगी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि देरी के लिए क्षमा आवेदन में कहा गया है कि दस्तावेजों की अनुपलब्धता एवं उनके इंतजाम की प्रक्रिया के चलते देर हुई और यह भी कि 'नौकरशाही प्रक्रिया कार्य में कुछ देर होती है.'

पढ़ें - जानवरों की हत्या से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

पीठ ने कहा हम विस्तृत आदेश लिखने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि ऐसा जान पड़ता है कि सरकार और सरकारी अधिकारियों को दिए गए हमारे परामर्श का कोई फर्क नहीं पड़ा यानि उच्चतम न्यायालय कोई ऐसी जगह नहीं हो सकती है, जहां अधिकारी कानून में निर्धारित समय सीमा की अनदेखी कर जब जी चाहे, आ जाएं.

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