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'लिंग पूर्वाग्रह मुक्त समाज' पर वेबिनार, एक हजार से अधिक छात्रों ने कराया पंजीयन

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Published : Feb 9, 2021, 4:43 PM IST

जयपुर के महारानी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग द्वारा तीन दिवसीय राष्ट्रीय 'लिंग पूर्वाग्रह मुक्त समाज' का शुभारंभ किया गया. इस वेबिनार में भारत के 21 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों के साथ 11 विदेशी संस्थानों, 182 कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से 1231 छात्रों व संकाय सदस्यों के पंजीकरण प्राप्त हुए है.

लिंग पूर्वाग्रह मुक्त समाज, gender bias free society
'लिंग पूर्वाग्रह मुक्त समाज' पर वेबिनार का हुआ आयोजन

जयपुर. महारानी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग द्वारा तीन दिवसीय राष्ट्रीय 'लिंग पूर्वाग्रह मुक्त समाज' का शुभारंभ किया गया. इस वेबिनार में भारत के 21 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों के साथ 11 विदेशी संस्थानों, 182 कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से 1231 छात्रों व संकाय सदस्यों के पंजीकरण प्राप्त हुए है.

वेबिनार में मनोविज्ञान विभाग के स्थानीय प्रमुख प्रेरणा पुरी ने जानकारी देते हुए कहा कि, लैंगिक पूर्वाग्रह ग्रस्त समाज मानव जीवन के लिए एक अभिशाप है. समाज को इस अभिशाप से मुक्त करने के लिए हमें महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन लाना होगा. इस मौके पर उन्होंने लिंग भेद के पर्यावरण मूल, जेंडर एंड्रोजिनी और आधुनिक नारीवाद के विभिन्न सत्रों में आयोजित होने वाले विषय के बारे में अवगत कराया.

पढ़ेंः गहलोत कैबिनेट की बैठक आज, बनेगी विधानसभा सत्र पर रणनीति

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में रूवा की पूर्व अध्यक्ष प्रो. बिना अग्रवाल ने अपने भाषण में बताया कि, लिंग पूर्वाग्रह वैदिक काल से वर्तमान समय में कैसे आया, इसकी ऐतिहासिक यात्रा में वेद, पुराण, रामायण, महाभारत का उदाहरण देते हुए इसकी उतपत्ति को दर्शाया. ऐतिहासिक समय में भी स्त्री के ऊपर काफी प्रतिबंध लगाए गए थे. महिलाओं को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कोई अधिकार नहीं दिया गया था. पुराणिक समय में भी मर्दों पर कोई प्रतिबंध नहीं थे और लोगों का यह भी मानना था की पत्नी, पुत्री और दास का कोई अस्तित्व नहीं है.

वेबिनार के अन्य मुख्य वक्ता दीपक कश्यप ने लिंग शब्द के वर्तमान को बताते हुए कहा कि, वर्तमान समाज में यदि कोई दूसरों को प्रोत्साहित करता है, रो पुल्लिंग शब्द का उपयोग किया जाता है और यदि हम किसी को हतोत्साहित करना चाहते है तो आमतौर पर स्त्रीलिंग शब्द का उपयोग किया जाता है. आज हम एक पुरुष प्रधान समाज में रह रहे है. इस वेबिनार की संयोजक डॉ उमा मित्तल और सह संयोजक ज्योति रही. इस मौके पर फेस पेंटिंग प्रतियोगिता भी आयोजित की गई.

जयपुर. महारानी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग द्वारा तीन दिवसीय राष्ट्रीय 'लिंग पूर्वाग्रह मुक्त समाज' का शुभारंभ किया गया. इस वेबिनार में भारत के 21 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों के साथ 11 विदेशी संस्थानों, 182 कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से 1231 छात्रों व संकाय सदस्यों के पंजीकरण प्राप्त हुए है.

वेबिनार में मनोविज्ञान विभाग के स्थानीय प्रमुख प्रेरणा पुरी ने जानकारी देते हुए कहा कि, लैंगिक पूर्वाग्रह ग्रस्त समाज मानव जीवन के लिए एक अभिशाप है. समाज को इस अभिशाप से मुक्त करने के लिए हमें महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन लाना होगा. इस मौके पर उन्होंने लिंग भेद के पर्यावरण मूल, जेंडर एंड्रोजिनी और आधुनिक नारीवाद के विभिन्न सत्रों में आयोजित होने वाले विषय के बारे में अवगत कराया.

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कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में रूवा की पूर्व अध्यक्ष प्रो. बिना अग्रवाल ने अपने भाषण में बताया कि, लिंग पूर्वाग्रह वैदिक काल से वर्तमान समय में कैसे आया, इसकी ऐतिहासिक यात्रा में वेद, पुराण, रामायण, महाभारत का उदाहरण देते हुए इसकी उतपत्ति को दर्शाया. ऐतिहासिक समय में भी स्त्री के ऊपर काफी प्रतिबंध लगाए गए थे. महिलाओं को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कोई अधिकार नहीं दिया गया था. पुराणिक समय में भी मर्दों पर कोई प्रतिबंध नहीं थे और लोगों का यह भी मानना था की पत्नी, पुत्री और दास का कोई अस्तित्व नहीं है.

वेबिनार के अन्य मुख्य वक्ता दीपक कश्यप ने लिंग शब्द के वर्तमान को बताते हुए कहा कि, वर्तमान समाज में यदि कोई दूसरों को प्रोत्साहित करता है, रो पुल्लिंग शब्द का उपयोग किया जाता है और यदि हम किसी को हतोत्साहित करना चाहते है तो आमतौर पर स्त्रीलिंग शब्द का उपयोग किया जाता है. आज हम एक पुरुष प्रधान समाज में रह रहे है. इस वेबिनार की संयोजक डॉ उमा मित्तल और सह संयोजक ज्योति रही. इस मौके पर फेस पेंटिंग प्रतियोगिता भी आयोजित की गई.

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