प्रतापगढ़. निर्जला एकादशी पर शहर के केशवराय मंदिर के बाहर मंगलवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो गई. ये श्रद्धालु महिलाएं कान्हाजी के दर्शन की गुहार लगाती नजर आई. वहीं मंदिर बंद होने से उन्हें निराश होकर वापस लौटना पड़ा.
बता दें कि साल भर के सभी एकादशियों से ज्यादा महत्व ज्येष्ठ मास के शुक्ल की एकादशी का है. इसे निर्जला, पांडव और भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. इस तिथि पर भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इस एक दिन के व्रत से सालभर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य फल मिलता है. ऐसे में भगवान से मिलने के लिए शहर के प्रमुख केशवराय मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ जमा हो गई.
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राजस्थान सरकार ने एक जून से पहले मंदिरों के कपाट खोलने की अनुमति दी थी. वहीं 31 मई की देर रात को फिर से मंदिर खोलने के आदेश पर रोक लगा दी गई. ऐसे में साल की सबसे बड़ी एकादशी पर भगवान के दर्शन नहीं होने से भक्तों को निराशा हाथ लगी है. ऐसे में भक्तों ने मंदिर के बाहर से शिखर दर्शन कर भगवान से जल्द इस कोरोना महामारी के खात्मे और मंदिरों के फिर से खुलने की प्रार्थना की. वहीं केशवराय मंदिर के बाहर महिलाएं ज्यादा नजर आई. जो बस एक बार कान्हा के दर्शन करवाने की गुहार लगा रही थी.
निर्जल रहकर भक्त करते हैं व्रत
एकादशी पर भगवान के दर्शन करना इस लिए महत्वपूर्ण माना जाता है कि इस एकादशी पर निर्जल रहकर यानी बिना पानी पिए व्रत किया जाता है. इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है. व्रत करने वाले भक्त पानी भी नहीं पीते हैं. सुबह-शाम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और अगले दिन द्वादशी तिथि पर पूजा-पाठ और ब्राह्मण को भोजन करवाने और मंदिरों के दर्शन के बाद ही खुद भोजन ग्रहण करते हैं.