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झालावाड़ में बसंत पंचमी का उत्सव मनाया गया, साहित्यकारों ने दी प्रस्तुतियां

बसंत पंचमी का उत्सव मंगलवार को राजकीय हरिशचन्द्र सार्वजनिक पुस्तकालय में मनाया गया. इस अवसर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के इतिहास विषय की विभागाध्यक्ष सज्जन पोसवाल मुख्य अतिथि रही.

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झालावाड़ में बसंत पंचमी का उत्सव मनाया
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Published : Feb 16, 2021, 11:01 PM IST

झालावाड़. बसंत पंचमी का उत्सव मंगलवार को राजकीय हरिशचन्द्र सार्वजनिक पुस्तकालय में मनाया गया. इस अवसर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के इतिहास विषय की विभागाध्यक्ष सज्जन पोसवाल मुख्य अतिथि रही तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता अतिरिक्त मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी अली मोहम्मद ने की.

इस मौके पर सज्जन पोसवाल ने संबोधित करते हुए कहा कि आभासी दुनिया से बाहर निकल कर प्रकृति के उल्लास को महसूस करें तभी बंसत का असली महत्व है. पुस्तके ज्ञान का प्रतीक है. ऐसे में मोबाइल की दुनिया से बाहर निकलकर पुस्तकालय रूपी सरस्वती के मंदिर में प्रवेश करें. उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने में साहित्यकारों को आगे आना चाहिए. समाज को विघटन से बचाना है तो पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना होग. इस दौरान उन्होंने जिले की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को सहजने की भी बात की.

यह भी पढ़ें- सीएम गहलोत ने अजमेर शरीफ दरगाह के लिए वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को दी चादर, कल करेंगे पेश

बंसत उत्सव में शिवचरण सैन ‘‘शिवा’’ और सुरेश निगम ने सरस्वती वंदना, कवि राकेश नैय्यर ने "हम भी अपना मुकाम रखते है" कविता प्रस्तुत की. चेतन शर्मा चैतन्य ने ‘मां हमको वर दे सब के मन में मां ज्ञान भर दे, चोटी पर जा बैठे तब तलहटी को भूल गए’. कवि प्रकाश सोनी ‘यौवन’ ने जब से सत्तासीन हुए सपने रंगीन हुए. कैलाश व्यास ने ‘लो आज फिर से बसन्त आया’. गोपाल कृष्ण दुबे ने सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता ‘जूही की कली’ की पंक्तियां प्रस्तुत की. इसके अतिरिक्त जगदीश झालावाड़ी, जगदीश नारायण सोनी, शैलेन्द्र गुनगुना सहित अन्य साहित्यकारों एवं कवियों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं.

झालावाड़. बसंत पंचमी का उत्सव मंगलवार को राजकीय हरिशचन्द्र सार्वजनिक पुस्तकालय में मनाया गया. इस अवसर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के इतिहास विषय की विभागाध्यक्ष सज्जन पोसवाल मुख्य अतिथि रही तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता अतिरिक्त मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी अली मोहम्मद ने की.

इस मौके पर सज्जन पोसवाल ने संबोधित करते हुए कहा कि आभासी दुनिया से बाहर निकल कर प्रकृति के उल्लास को महसूस करें तभी बंसत का असली महत्व है. पुस्तके ज्ञान का प्रतीक है. ऐसे में मोबाइल की दुनिया से बाहर निकलकर पुस्तकालय रूपी सरस्वती के मंदिर में प्रवेश करें. उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने में साहित्यकारों को आगे आना चाहिए. समाज को विघटन से बचाना है तो पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना होग. इस दौरान उन्होंने जिले की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को सहजने की भी बात की.

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बंसत उत्सव में शिवचरण सैन ‘‘शिवा’’ और सुरेश निगम ने सरस्वती वंदना, कवि राकेश नैय्यर ने "हम भी अपना मुकाम रखते है" कविता प्रस्तुत की. चेतन शर्मा चैतन्य ने ‘मां हमको वर दे सब के मन में मां ज्ञान भर दे, चोटी पर जा बैठे तब तलहटी को भूल गए’. कवि प्रकाश सोनी ‘यौवन’ ने जब से सत्तासीन हुए सपने रंगीन हुए. कैलाश व्यास ने ‘लो आज फिर से बसन्त आया’. गोपाल कृष्ण दुबे ने सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता ‘जूही की कली’ की पंक्तियां प्रस्तुत की. इसके अतिरिक्त जगदीश झालावाड़ी, जगदीश नारायण सोनी, शैलेन्द्र गुनगुना सहित अन्य साहित्यकारों एवं कवियों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं.

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