बाड़मेर. राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में एक परिवार ने घुड़सवारी को अपना जुनून बना दिया. जिसके बाद शौकिया उस शख्स ने अपने बेटों को घुड़सवारी के लिए इतना तैयार कर दिया कि आज उस के पांचों बेटे विदेश में घुड़सवारी की बदौलत लाखों रुपए महीना कमा रहे हैं.
सुनने में यह थोड़ा अजीबोगरीब लग रहा है कि रेगिस्तान में घुड़सवारी कैसे संभव है लेकिन राजस्थान के बाड़मेर जिले के रेडाणा के रण में छुगसिंह राठौड़ को बचपन से ही घुड़सवारी का शौक था. लिहाजा घर पर पांच-सात घोड़े हमेशा रखते थे. छुगसिंह राठौड़ ने यह सपना देखा कि उसके बेटे घुड़सवारी सीख कर परिवार का नाम रोशन करें. पिता के सपनों को पूरा करने की बेटों ने भी कसर नहीं छोड़ी और उन्होंने अपने पिता का सपना साकार कर दिखाया. छुगसिंह राठौड़ के पांचों बेटों में से अभी चार बेटे जापान, दुबई और दो बेटे न्यूजीलैंड में घुड़सवारी कर लाख रुपए कमा रहे हैं. वहीं एक बेटा अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा है. अब यह परिवार चाहता है कि घुड़सवारी रेगिस्तान के बाकी लोगों का भी रोजगार का साधन बने.
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मामा ने प्रतिभा पहचान ट्रेनिंग दिलाई
न्यूजीलैंड से अभी हाल ही में छुट्टी पर आए छुगसिंह के बेटे जसवंत सिंह बताते हैं कि पिताजी को हमेशा से ही घुड़सवारी का शौक था. लिहाजा, जब हम बचपन में घोड़ों को पानी पिलाने के लिए दूर-दूर तक ले जाते थे. धीरे-धीरे घोड़े घर पर होने के कारण हमने घुड़सवारी सीखी. मेरे मामाजी अंतर्राष्ट्रीय घुड़सवार हैं, एक बार दिल्ली से घर पर आए. उन्होंने हमारी घुड़सवारी देखी. जिसके बाद वो बड़े भाई को दिल्ली ले गए. जहां उन्होंने 3 साल की ट्रेनिंग 6 महीने में ही पूरी कर ली. उसके बाद जुझार सिंह को दुबई में घुड़सवारी के लिए सरकार ने न्योता भेज दिया और उसके बाद एक के बाद एक हम सब भाई घुड़सवारी की ट्रेनिंग करके विदेश जाते रहे.
गांव में शुरू की घुड़सवारी का स्कूल
वहीं छुगसिंह राठौड़ का कहना है कि मेरा यह सपना है कि पैसा तो हर कोई कमा लेता है लेकिन नाम कुछ ही लोग कमा पाते हैं. मैं चाहता हूं कि घुड़सवारी में मेरी बेटों ने पैसे तो कमा लिए लेकिन उसके साथ वह बाकी लोगों को रोजगार के लिए भी ट्रेनिंग दे. इसीलिए हमने अपने गांव में 14 घोड़ों के साथ घुड़सवारी का अंतरराष्ट्रीय स्कूल शुरू कर रखी है. जिसमें दर्जनों बाड़मेर सहित अन्य जगहों से लोग ट्रेनिंग लेने के लिए आते हैं. छुग सिंह कहते हैं कि मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि किसी भी तरीके से घुड़सवारी की कला को आगे बढ़ाया जाए.
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सभी भाइयों ने घुड़सवारी में ही बनाया करियर
छुगसिंह राठौड़ के बेटे जसवंत सिंह बताते हैं कि इंग्लैंड दुबई के बाद हाल ही में न्यूजीलैंड में घुड़सवारी से वो लाख रुपए कमा रहे हैं. उनकी तनख्वाह महीने की करीब डेढ़ लाख से भी ज्यादा है. मेरा भाई उपेंद्र सिंह भी न्यूजीलैंड में है. बड़े भाई साहब जुझार सिंह इस समय जापान में घुड़सवारी कर रहे हैं. वहीं तेज सिंह दुबई में घुड़सवारी कर रहा है तो मेरा छोटा भाई बालेंद्र सिंह दिल्ली में घुड़सवारी वाली की ट्रेनिंग लगभग पूरी कर चुका है. अब अमेरिका जाने की तैयारी में है.
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जसवंत सिंह कहते हैं कि सरकार अगर कुछ सहयोग करें तो हम अपने इलाके में राज्य से लेकर अंतरराष्ट्रीय घुड़सवारी प्रतियोगिताएं करवा कर टैलेंट को विदेशों में भेज सकते हैं. वर्तमान में मारवाड़ी और सिंधी घोड़े की नस्ल को लेकर बड़ा खतरा है क्योंकि अगर समय रहते सरकार ने इस नस्ल को नहीं बचाया तो आने वाले समय में यह नस्ल लुप्त हो जाएगी. इस नस्ल की यह खासियत है कि यह विदेशों में होने वाले घोड़ों से भी ज्यादा काबिलियत रखती है. लिहाजा, सरकार को इस और जरूर ध्यान देना चाहिए.
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