दौसा. आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग के लिए कई योजनाएं संचालित हैं. जिनके जरिए केंद्र और राज्य की सरकार उनके विकास का दावा करती है. लेकिन इसकी हकीकत कुछ और ही है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं मानसिक रुप से विक्षिप्त एक व्यक्ति की है. जिसको परिवार की आर्थिक तंगी के चलते इलाज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है.
मामला दौसा जिले के सिकराय तहसील के नाहर खोहरा गांव का है. जहां मानसिक रूप से विक्षिप्त एक व्यक्ति पिछले 8-10 सालों से जानवरों से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर है. नाहर खोरा गांव का कैलाश मीणा पिछले आठ-दस सालों से बेड़ियों से बंधा हुआ है जो कि बेड़ियों से बंधे जानवरों के साथ जानवरों से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर है. रस्सी के सहारे बंधे जानवरों को तो फिर भी इधर-उधर घुमाने के लिए ले जाया जाता है. लेकिन बेड़ियों से बंधे कैलाश को तो इसकी इजाजत भी नहीं है.
कैलाश की पत्नी का कहना है तकरीबन 17 साल पहले कैलाश की मानसिक स्थिति खराब हो गई थी. जिसके बाद उन्होंने जयपुर के मनोरोग अस्पताल में उनका इलाज भी करवाया गया. लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वे उसे लंबे समय तक इलाज नहीं करवा पाए. इलाज बंद होने बाद उसकी मानसिक स्थिति अधिक खराब हो गई. वह एक खूंखार मनोरोगी बन गया. जिसके चलते उन्हें अब उसे लोहे की बेड़ियों में बांधकर रखा जाता है. वह गंदी गंदी गालियां देता है. वह हमला कर अब तक कई लोगों को घायल भी कर चुका है. ऐसे हालात में कैलाश व उसकी पत्नी की मदद करने के लिए ना ही कोई प्रशासन ने हाथ बढ़ाया और ना किसी सरकार ने कैलाश की मदद की है.
वहीं पड़ोसियों का कहना है कि अगर कैलाश गलती से खुल भी जाता है तो आने जाने वाले लोगों पर जानलेवा हमला करके उन्हें घायल कर देता है. वह हर समय किस को भी देख कर उसके पत्थर मारता है. जिस कारण उसके घर की तरफ आने में भी लोगों को अब डर लगने लगा है. पिछले कई सालों से बच्चे वह महिलाएं कैलाश के घर की तरफ आने में भी डरती है.