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Bikaner Ki Rammat: डिजिटल युग में भी कम नहीं हुआ रम्मतों का क्रेज, बीकानेर ने बड़े मान से सहेज रखी है परम्परा

Bikaner Unique Holi, हजार हवेलियों का खरा शहर है बीकानेर. रसगुल्ले और भुजिया के साथ ही इसकी एक और खास पहचान है. वो है रम्मत. होली मनाने का अजब गजब स्टाइल! बरसों से खुशगवार परम्परा कायम है. क्या होती है रम्मत? क्यों आज की पीढ़ी भी इसमें रमी हुई है? आइए जानते हैं.

Bikaner Ki Rammat
रम्मत के खुमार में डूबा बीकानेर
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Published : Feb 15, 2023, 6:33 PM IST

डिजिटल युग में भी कम नहीं हुआ रम्मतों का क्रेज.

बीकानेर. फाल्गुनी मस्ती की बयार बहने लगी है. होली का रंग अभी से होलियारों के सिर चढ़कर बोल रहा है. कहीं चौक चौबारे पर चंग की थाप सुनाई देने लगी है तो कहीं ख्याल और होली के गीत कानों में गूंज रहे हैं. इस सबके बीच बीकानेर शहर के परकोटे में रम्मतों का खुमार भी छाने लगा है जिनका अपना एक अलग रोचक इतिहास है. खान पान के साथ रम्मतें भी तो यहां की सांस्कृतिक विरासत की कहानी कहती हैं. 500 साल से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है लेकिन इनका आकर्षण अब भी बरकरार है.

क्या है रम्मत?- रम्मत बीकानेरियत को समेटे है. राजस्थानी भाषा में खेलने को रमणा कहते हैं. रमणा का ही बिगड़ा रूप है रम्मत. माना जाता है कि इस लोक नाट्य शैली की उत्पत्ति होली के दौरान होने वाली काव्य प्रतियोगिताओं से ही हुई. अब इसका सीधा अर्थ नुक्कड़ नाटक के प्रदर्शन से जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि ये सिर्फ एक शहर नहीं बल्कि एक जीवन शैली है. अच्छे बुरे समय में जीया कैसे जाता है उनको खेल खेल में समझाती हैं रम्मतें. होली को महज एक दिन के खेल की तरह ट्रीट नहीं करते, औपचारिकता नहीं निभाते बल्कि कई दिनों पहले इसकी रंगत में सबको सराबोर कर देते हैं. तभी तो यहां एक कहावत बड़े मन से लोग सुनते और सुनाते हैं. जिसमें जीवन की फिलॉसफी भी छुपी है. जो कुछ यूं हैं- जीते जी खेलो फाग, मरया पच्छे होवे राख. इसका आशय है कि जिंदा हो तो फाग खेलो क्योंकि मरने के बाद आदमी राख बन जाता है. कुछ ऐसा ही खिलंदड़ अंदाज फाल्गुन की दस्तक के साथ ही शुरू हो जाता है.

बसंत पंचमी से आगाज- होलाष्टक यानी होली से 8 दिन पहले से रम्मतों का मंचन शुरू हो जाता है. उस दिन हजारों की संख्या में लोग दर्शक के रूप में रम्मतों में शिरकत करते हैं. लेकिन तैयारी 40 दिन पहले से ही की जाने लगती हैं. 40 दिन यानी बसंत पंचमी से रम्मतों का अभ्यास शुरू हो जाता है. पहले दिन से अंतिम दिन तक रम्मत के सभी पात्र हर रोज करीब 3 से 4 घंटे रात में अभ्यास करते हैं

Bikaner Ki Rammat
बच्चे हों, युवा हों या फिर बुजुर्ग सब बड़े अदब से बढ़ा रहे परम्परा

इलाकावार रम्मत के संदेश खास- वैसे तो बीकानेर में अलग-अलग 8 से 10 जगह रम्मत का आयोजन होता है. हर रम्मत का अपना एक अलग संदेश है. बीकानेर की आचार्य को चौक में होने वाली अमर सिंह राठौड़ की रम्मत ऐतिहासिक तथ्यों से रूबरू करवाती है. अमर सिंह राठौड़ का इतिहास में योगदान बताने के साथ ही श्रृंगार, वीर और हास्य रस का मिश्रित भाव इसमें दिखता है. रम्मत में अमरसिंह राठौड़ का किरदार करने वाले दीनदयाल आचार्य कहते हैं कि रम्मत हमारी परंपरा से जुड़ी है. जिसकी कई दिनों तक रिहर्सल करते हैं. ये आयोजन आपसी प्रेम सद्भाव को बढ़ाता है और मनमुटाव को खत्म करता है. वहीं एक और कलाकार बद्रीदास जोशी बताते हैं कि यह हमारे पुरखों की दी हुई जिम्मेदारी है जो हम भी आने वाली पीढ़ी को सौंपेंगे ताकि विरासत और इतिहास से वे दूर न हों.

पढ़ें- बसंत पंचमी पूजन के साथ फाल्गुनी मस्ती शुरू

डिजिटल युग में कम नहीं हुआ क्रेज- साहित्यकार हरिशंकर आचार्य कहते हैं रम्मतों का जिक्र करते हुए कहते हैं- इसमें हास्य, वीर और श्रृंगार रस की त्रिवेणी बहती है. रम्मतों में आधुनिकता के साथ बदलाव हुआ है. इनमें राजनीतिक हालातों, महंगाई और अन्य मुद्दों पर व्यंग्य के साथ उनका मंचन होता है तो वहीं कुछ रम्मत अपने ऐतिहासिक स्वरूप के साथ आज भी अपने मूल स्वरूप में हैं. मोबाइल युग में भी इन रम्मतों का एक महत्व है और संस्कृति के पोषण में इनका योगदान कमतर नहीं है.:

डिजिटल युग में भी कम नहीं हुआ रम्मतों का क्रेज.

बीकानेर. फाल्गुनी मस्ती की बयार बहने लगी है. होली का रंग अभी से होलियारों के सिर चढ़कर बोल रहा है. कहीं चौक चौबारे पर चंग की थाप सुनाई देने लगी है तो कहीं ख्याल और होली के गीत कानों में गूंज रहे हैं. इस सबके बीच बीकानेर शहर के परकोटे में रम्मतों का खुमार भी छाने लगा है जिनका अपना एक अलग रोचक इतिहास है. खान पान के साथ रम्मतें भी तो यहां की सांस्कृतिक विरासत की कहानी कहती हैं. 500 साल से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है लेकिन इनका आकर्षण अब भी बरकरार है.

क्या है रम्मत?- रम्मत बीकानेरियत को समेटे है. राजस्थानी भाषा में खेलने को रमणा कहते हैं. रमणा का ही बिगड़ा रूप है रम्मत. माना जाता है कि इस लोक नाट्य शैली की उत्पत्ति होली के दौरान होने वाली काव्य प्रतियोगिताओं से ही हुई. अब इसका सीधा अर्थ नुक्कड़ नाटक के प्रदर्शन से जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि ये सिर्फ एक शहर नहीं बल्कि एक जीवन शैली है. अच्छे बुरे समय में जीया कैसे जाता है उनको खेल खेल में समझाती हैं रम्मतें. होली को महज एक दिन के खेल की तरह ट्रीट नहीं करते, औपचारिकता नहीं निभाते बल्कि कई दिनों पहले इसकी रंगत में सबको सराबोर कर देते हैं. तभी तो यहां एक कहावत बड़े मन से लोग सुनते और सुनाते हैं. जिसमें जीवन की फिलॉसफी भी छुपी है. जो कुछ यूं हैं- जीते जी खेलो फाग, मरया पच्छे होवे राख. इसका आशय है कि जिंदा हो तो फाग खेलो क्योंकि मरने के बाद आदमी राख बन जाता है. कुछ ऐसा ही खिलंदड़ अंदाज फाल्गुन की दस्तक के साथ ही शुरू हो जाता है.

बसंत पंचमी से आगाज- होलाष्टक यानी होली से 8 दिन पहले से रम्मतों का मंचन शुरू हो जाता है. उस दिन हजारों की संख्या में लोग दर्शक के रूप में रम्मतों में शिरकत करते हैं. लेकिन तैयारी 40 दिन पहले से ही की जाने लगती हैं. 40 दिन यानी बसंत पंचमी से रम्मतों का अभ्यास शुरू हो जाता है. पहले दिन से अंतिम दिन तक रम्मत के सभी पात्र हर रोज करीब 3 से 4 घंटे रात में अभ्यास करते हैं

Bikaner Ki Rammat
बच्चे हों, युवा हों या फिर बुजुर्ग सब बड़े अदब से बढ़ा रहे परम्परा

इलाकावार रम्मत के संदेश खास- वैसे तो बीकानेर में अलग-अलग 8 से 10 जगह रम्मत का आयोजन होता है. हर रम्मत का अपना एक अलग संदेश है. बीकानेर की आचार्य को चौक में होने वाली अमर सिंह राठौड़ की रम्मत ऐतिहासिक तथ्यों से रूबरू करवाती है. अमर सिंह राठौड़ का इतिहास में योगदान बताने के साथ ही श्रृंगार, वीर और हास्य रस का मिश्रित भाव इसमें दिखता है. रम्मत में अमरसिंह राठौड़ का किरदार करने वाले दीनदयाल आचार्य कहते हैं कि रम्मत हमारी परंपरा से जुड़ी है. जिसकी कई दिनों तक रिहर्सल करते हैं. ये आयोजन आपसी प्रेम सद्भाव को बढ़ाता है और मनमुटाव को खत्म करता है. वहीं एक और कलाकार बद्रीदास जोशी बताते हैं कि यह हमारे पुरखों की दी हुई जिम्मेदारी है जो हम भी आने वाली पीढ़ी को सौंपेंगे ताकि विरासत और इतिहास से वे दूर न हों.

पढ़ें- बसंत पंचमी पूजन के साथ फाल्गुनी मस्ती शुरू

डिजिटल युग में कम नहीं हुआ क्रेज- साहित्यकार हरिशंकर आचार्य कहते हैं रम्मतों का जिक्र करते हुए कहते हैं- इसमें हास्य, वीर और श्रृंगार रस की त्रिवेणी बहती है. रम्मतों में आधुनिकता के साथ बदलाव हुआ है. इनमें राजनीतिक हालातों, महंगाई और अन्य मुद्दों पर व्यंग्य के साथ उनका मंचन होता है तो वहीं कुछ रम्मत अपने ऐतिहासिक स्वरूप के साथ आज भी अपने मूल स्वरूप में हैं. मोबाइल युग में भी इन रम्मतों का एक महत्व है और संस्कृति के पोषण में इनका योगदान कमतर नहीं है.:

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