बांसवाड़ा. अपने समृद्ध वन क्षेत्र के लिए पहचाने जाने वाले बांसवाड़ा जिले में वन्यजीवों की स्थिति चिंताजनक कही जा सकती है. वन्यजीवों की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. पिछले कुछ सालों में कई जंगली जीवों की संख्या में कमी आई है.
वन अधिकारियों का कहना है कि गणना में हर साल उतार-चढ़ाव आता रहता है, क्योंकि यह गणना मात्र 24 घंटे के भीतर की जाती है. ऐसे में कई वन्य जीव गणना करने वाले कर्मचारियों की नजर में नहीं आ पाते. हालांकि वन्यजीव गणना के दौरान विभाग का दावा है कि मांसाहारी में करीब 3 हजार वन्य जीव प्रजातियों का पता चला है. वहीं शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या करीब 6 हजार होना सामने आया है. इसके बावजूद 18 और 19 मई को व वन्यजीवों की गई गणना की रिपोर्ट बताती है हालात दुखद है.
सियार और गीदड़ 1684 तो जरख 218 पाए गए हैं. वहीं जंगली बिल्ली 319, लोमड़ी की संख्या 445 पाई गई. बिज्जू छोटा 17, बीज्जू बड़ा 25 और कब्र बिज्जू 20 पाए गए. सियागोश की संख्य 9 है. मांसाहारी वन्यजीव की कुल संख्या 2976 बताई गई है, लेकिन चिंताजनक यह है कि मरू लोमड़ी भेड़िया भालू बिल्ली आदि वन्य जीवो में एक भी नजर नहीं आया. अगर शाकाहारी वन्य जीवों पर नजर डालें तो चीतल सांभर चिंकारा सहित प्रमुख 10 प्रकार के वन्यजीव में से 6 प्रजातियां बिल्कुल विलुप्त हो चुकी है. पक्षियों में भी सारस और मोर के अलावा कोई भी वन्यजीव नहीं निकला. यहां तक कि जंगली मुर्गा और गिद्ध जैसे पक्षी भी एक प्रकार से खत्म हो चुके हैं. जबकि बांसवाड़ा का वन क्षेत्र प्रदेश के टॉप फॉरेस्ट एरियाज में माना जाता है.
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पैंथर संख्या गत वर्ष 41 पाई गई थी, लेकिन इस बार घटकर 39 रह गई है. इस संबंध में उप वन संरक्षक सुगनाराम जाट का कहना है कि वन्यजीव की गणना में घटना और बढ़ना संभव है. यह गणना केवल 24 घंटे के भीतर की जाती है. ऐसे में कई वन्य जीव गणना के दायरे में नहीं आ पाते. जहां तक पैंथर की संख्या में कमी आने की बात है, बच्चे होने पर इनकी संख्या बढ़ती है. कई बार एक्सीडेंट नेचुरल डेथ के अलावा इनके बीच आपस में संघर्ष होना भी आम बात है. ऐसे में पैंथर की मौत होती रहती है.