उदयपुर. कोरोना संक्रमण देश-दुनिया के लिए एक बड़ी महामारी बन गया है. कोरोना वायरस के चलते आम जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है. वहीं त्योहारी सीजन में बढ़ते संक्रमण ने एक बार फिर आम आदमी की परेशानी बढ़ा दी है. इसके साथ ही कोरोना ने शनिवार से शुरू होने जा रहे नवरात्र की चमक को भी फीका कर दिया है.
इस बार कोरोना के चलते न तो डांडिया का आयोजन हो रहा है और न ही पंडालों में दुर्गा पूजा सजाई जा रही है. इसका सीधा असर गरीब मूर्तिकारों पर पड़ा है. बात अगर उदयपुर की करें तो यहां पर पिछले कई सालों से मूर्ति बना रहे रामचंद्र और उनके परिजन बताते हैं कि इस साल उधारी लेकर नवरात्र के लिए मूर्तियां बनाई थीं. लेकिन अब तक एक भी मूर्ति नहीं बिक पाई है. ऐसे में परेशानी काफी बढ़ गई है.
रामचंद्र बताते हैं कि इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लोगों में बहुत ज्यादा डर है. लोग मूर्ति खरीदने से कतरा रहे हैं तो वहीं माता रानी के पंडाल और गरबा पंडाल भी इस बार नहीं लग रहा है. जिसके चलते ही मूर्तियां अब तक नहीं बिक पाई हैं. वहीं रामचंद्र की पत्नी बताती है कि पिछले लंबे समय से स्थिति बिगड़ गई है. बच्चों को दो वक्त की रोटी भी खिला पाना मुश्किल हो गया है. उधारी पर जीवन चल रहा है और अब इस उधारी से बचने के लिए फिर से उधारी लेनी पड़ रही है.
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वहीं मूर्तिकार संध्या बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद जिंदगी अब तक पटरी पर नहीं आ पाई है. पहले गणेश चतुर्थी पर उधारी लेकर काम किया था. तब भी स्थिति बिगड़ गई थी और अब जब थोड़ी उम्मीद नवरात्र से थी तब भी लोग मूर्तियां खरीदने से कतरा रहे हैं. इक्का-दुक्का मूर्ति भी नहीं बिक पा रही है. ऐसे में घर में खाने को राशन भी अब उधारी से लाना पड़ रहा है. सरकार द्वारा जो मदद की गई थी वह भी लॉकडाउन पीरियड में की गई थी. उसके बाद हालात बद से बदतर हो रहे हैं. ऐसे में अब हम लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना नामुमकिन सा होने लगा है.
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बता दें कि कोरोनावायरस संक्रमण के बाद उदयपुर में इस साल किसी भी तरह का गरबा आयोजन नहीं हो रहा तो साथ ही माता रानी के सजने वाले बड़े-बड़े पंडाल भी इस साल बढ़ते संक्रमण के चलते नहीं सच पाएंगे इसके चलते उदयपुर के मूर्तिकारों की मूर्ति ही नहीं पा रही और अब इसी समस्या के चलते इन लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना किसी चुनौती से कम नहीं बन गया है ऐसे में देखना होगा शासन प्रशासन के साथ ही आम जनता मजबूर मूर्ति कारों की कितनी मदद कर पाती है.