ETV Bharat / city

Special: स्वयं सहायता समूह पर लगा ब्रेक, 5 लाख महिलाओं का काम-धंधा प्रभावित

महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से छोटे-छोटे महिला स्वयं सहायता समूह के जरिए महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा रहा था. लेकिन गहलोत सरकार ने प्रदेश की 55 हजार स्वयं सहायता समूह से पोषाहार तैयार करने का काम छीन लिया है. सरकार अब यह काम नेफेड के जरिए आंगनबाड़ी मातृ बाल विकास समिति के माध्यम से करा रही है.

jaipur news, जयपुर समाचार
स्वयं सहायता समूह पर लगा ब्रेक
author img

By

Published : Sep 30, 2020, 6:36 PM IST

जयपुर. राजस्थान में महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से छोटे-छोटे महिला स्वयं सहायता समूह के जरिए महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा रहा था. महिलाएं आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार बनाकर उपलब्ध कराते. लेकिन कोरोना काल मे बहाने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का दावा करने वाली गहलोत सरकार ने प्रदेश की 55 हजार स्वयं सहायता समूह से पोषाहार तैयार करने का काम छीन लिया है. सरकार अब यह काम नेफेड के जरिए आंगनबाड़ी मातृ बाल विकास समिति के माध्यम से करा रही है. ऐसा होने से राज्य के करीब 5 लाख महिलाओं वह काम धंधे प्रभावित हैं.

स्वयं सहायता समूह पर लगा ब्रेक

दरअसल, स्वयं सहायता समूह में कम से कम 10 महिलाएं शामिल होती थी. एक समूह से दस घरों के चूल्हा जलता, महिलाएं आत्मनिर्भर होने लगी तो उन्होंने कई सपने भी आंखों में सजो लिए. लेकिन कोरोना के बहाने सरकार की ओर से बंद की गई इस योजना ने मानों महिलाओं के सपनों को तोड़ दिया.

jaipur news, जयपुर समाचार
स्वयं सहायता समूह की महिलाएं

भीलवाड़ा जिले में महिला स्वयं सहायता समूह चला रही सरला कंवर बताती हैं कि स्वयं सहायता समूह से एक महिला नहीं बल्कि 10 महिलाओं के घरों को लाभ मिल रहा था. कोरोना के दौरान समूह ने पोषाहार का काम बंद किया, लेकिन उसके बाद जब अनलॉक शुरू हुआ तब तक महिला एंव बाल विकास विभाग ने सभी समूह से पोषाहार बनाने का काम छीन लिया. सरला बताती हैं कि नई व्यवस्था परिवर्तन के बाद इन महिला सहायता समूह के जो पैसे बकाया है, वो भी नही दिए जा रहे. जबकि इन्होंने तंग हालात में उधारी से पोषाहार बनाने का काम कर रही थी.

सरला कंवर अकेली नहीं

प्रदेश में इसके तहत 5 लाख से अधिक महिलाएं है, जो पोषाहार तैयार करने के काम के जरिए आत्मनिर्भर बनने लगी थी. लेकिन अब इनसे जनक काम छीन लिया गया और ऐसे 55 हजार समूह में करीब 400 करोड़ रुपए बकाया भी रोक दिए गए. दरअसल, महिला एवं बाल विकास विभाग ने कोरोना काल के वक्त लगे लॉकडाउन दौरान राज्य सरकार संक्रमण को देखते हुए कि समूह की जगह नेफेड से चने की दाल राशन डीलरों के माध्यम से आंगनबाड़ी में लाभार्थियों तक पहुचाने की व्यवस्था की.

इस योजना के तहत प्रदेश के 40 लाख महिला और बच्चों तक सूखा राशन पहुंचाया. लेकिन विभाग ने इस व्यस्था को नियमित कर दिया, जिससे स्वयं सहायता समूह का काम छीन गया. अब बीजेपी भी इस मुद्दे के जरिए सरकार को निशाने पर ले रही है. बीजेपी एमएलए और प्रवक्ता रामलाल शर्मा ने कहा कि सरकार ने कोविड के बहाने लागों महिलाओं के काम को छीना है. साथ ही जो नई व्यवस्था लागू की है, उसमें भ्रष्टाचार की और अधिक आशंका बन जाती है, जिस उद्देश्य से यह समूह बनाए गए थे, उस उद्देश्य को सरकार भूल गई है.

कोरोना काल में लोगों के रोजगार को लेकर प्रदेश सरकार केंद्र सरकार को निशाने पर लेती रही है. लेकिन अब अपने ही फसलों से सरकार उल्टा विपक्ष के निशाने पर है, कोरोना एक प्राकृतिक त्रासदी के रूप में सामने आया, जिससे लोगों के व्यवसायी के साथ रोजगार पर संकट खड़ा किया. लेकिन प्रदेश की 5 लाख महिलाओं पर कोरोना संकट नहीं बल्कि सरकार की नीयत का संकट आया, जिसने उनके आत्मनिर्भर के सपने को चूर-चूर कर दिया.

क्या है महिला स्वयं सहायता समूह

प्रदेश में अलग-अलग तरह के महिला स्वयं सहायता समूह कार्यरत है. इनमें से कुछ केंद्र सरकार के साथ आजीविका मिशन के तहत तो कुछ राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ कार्यरत है. प्रदेश की 55 हजार महिला स्वयं सहायता समूह पिछले कई सालों से विभाग के साथ मिल कर आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषाहार तैयार करने का काम कर रहे थे. साल 2011 के सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के अनुसार आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार वितरण का काम सिर्फ स्वयं सहायता समूह से ही करवाना अनिवार्य है.

दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने पोषाहार में आवश्यक पोषक तत्व होने के निर्देश दिए थे. जैसे- कैलोरी, प्रोटीन, ऊर्जा आदि निर्धारित मात्रा में होने चाहिए. समूह का आरोप है कि अब जो वर्तमान में पहुंचा है, उसमें निर्धारित मात्रा में पोषक तत्व नहीं है. हालांकि, सरकार का अलग तरीकों का तर्क है. महिला एवं बाल विकास मंत्री ममता भूपेश पहले ही ईटीवी भारत से खास बात में यह कह चुकी हैं. तत्कालीन व्यवस्था की गई है और नेफेड के माध्यम से शुरू कर राशन पहुंचाया गया है. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जहां तक समूह का सवाल है तो प्रदेश में 4 लाख से अधिक समूह गठित है.

क्या होते है स्वयं सहायता समूह

दरअसल, प्रदेश में करीब 4 लाख से महिला स्वयं सहायता समूह है, जिसमें करीब 40 लाख से अधिक महिलाएं अलग-अलग तरह के काम कर रही है. कोई पोषाहार बनाने का तो कोई कसीदे करने का काम कर रहा है. इस एक समूह से 10 परिवारों को संबल मिलता है.

जयपुर. राजस्थान में महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से छोटे-छोटे महिला स्वयं सहायता समूह के जरिए महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा रहा था. महिलाएं आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार बनाकर उपलब्ध कराते. लेकिन कोरोना काल मे बहाने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का दावा करने वाली गहलोत सरकार ने प्रदेश की 55 हजार स्वयं सहायता समूह से पोषाहार तैयार करने का काम छीन लिया है. सरकार अब यह काम नेफेड के जरिए आंगनबाड़ी मातृ बाल विकास समिति के माध्यम से करा रही है. ऐसा होने से राज्य के करीब 5 लाख महिलाओं वह काम धंधे प्रभावित हैं.

स्वयं सहायता समूह पर लगा ब्रेक

दरअसल, स्वयं सहायता समूह में कम से कम 10 महिलाएं शामिल होती थी. एक समूह से दस घरों के चूल्हा जलता, महिलाएं आत्मनिर्भर होने लगी तो उन्होंने कई सपने भी आंखों में सजो लिए. लेकिन कोरोना के बहाने सरकार की ओर से बंद की गई इस योजना ने मानों महिलाओं के सपनों को तोड़ दिया.

jaipur news, जयपुर समाचार
स्वयं सहायता समूह की महिलाएं

भीलवाड़ा जिले में महिला स्वयं सहायता समूह चला रही सरला कंवर बताती हैं कि स्वयं सहायता समूह से एक महिला नहीं बल्कि 10 महिलाओं के घरों को लाभ मिल रहा था. कोरोना के दौरान समूह ने पोषाहार का काम बंद किया, लेकिन उसके बाद जब अनलॉक शुरू हुआ तब तक महिला एंव बाल विकास विभाग ने सभी समूह से पोषाहार बनाने का काम छीन लिया. सरला बताती हैं कि नई व्यवस्था परिवर्तन के बाद इन महिला सहायता समूह के जो पैसे बकाया है, वो भी नही दिए जा रहे. जबकि इन्होंने तंग हालात में उधारी से पोषाहार बनाने का काम कर रही थी.

सरला कंवर अकेली नहीं

प्रदेश में इसके तहत 5 लाख से अधिक महिलाएं है, जो पोषाहार तैयार करने के काम के जरिए आत्मनिर्भर बनने लगी थी. लेकिन अब इनसे जनक काम छीन लिया गया और ऐसे 55 हजार समूह में करीब 400 करोड़ रुपए बकाया भी रोक दिए गए. दरअसल, महिला एवं बाल विकास विभाग ने कोरोना काल के वक्त लगे लॉकडाउन दौरान राज्य सरकार संक्रमण को देखते हुए कि समूह की जगह नेफेड से चने की दाल राशन डीलरों के माध्यम से आंगनबाड़ी में लाभार्थियों तक पहुचाने की व्यवस्था की.

इस योजना के तहत प्रदेश के 40 लाख महिला और बच्चों तक सूखा राशन पहुंचाया. लेकिन विभाग ने इस व्यस्था को नियमित कर दिया, जिससे स्वयं सहायता समूह का काम छीन गया. अब बीजेपी भी इस मुद्दे के जरिए सरकार को निशाने पर ले रही है. बीजेपी एमएलए और प्रवक्ता रामलाल शर्मा ने कहा कि सरकार ने कोविड के बहाने लागों महिलाओं के काम को छीना है. साथ ही जो नई व्यवस्था लागू की है, उसमें भ्रष्टाचार की और अधिक आशंका बन जाती है, जिस उद्देश्य से यह समूह बनाए गए थे, उस उद्देश्य को सरकार भूल गई है.

कोरोना काल में लोगों के रोजगार को लेकर प्रदेश सरकार केंद्र सरकार को निशाने पर लेती रही है. लेकिन अब अपने ही फसलों से सरकार उल्टा विपक्ष के निशाने पर है, कोरोना एक प्राकृतिक त्रासदी के रूप में सामने आया, जिससे लोगों के व्यवसायी के साथ रोजगार पर संकट खड़ा किया. लेकिन प्रदेश की 5 लाख महिलाओं पर कोरोना संकट नहीं बल्कि सरकार की नीयत का संकट आया, जिसने उनके आत्मनिर्भर के सपने को चूर-चूर कर दिया.

क्या है महिला स्वयं सहायता समूह

प्रदेश में अलग-अलग तरह के महिला स्वयं सहायता समूह कार्यरत है. इनमें से कुछ केंद्र सरकार के साथ आजीविका मिशन के तहत तो कुछ राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ कार्यरत है. प्रदेश की 55 हजार महिला स्वयं सहायता समूह पिछले कई सालों से विभाग के साथ मिल कर आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषाहार तैयार करने का काम कर रहे थे. साल 2011 के सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के अनुसार आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार वितरण का काम सिर्फ स्वयं सहायता समूह से ही करवाना अनिवार्य है.

दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने पोषाहार में आवश्यक पोषक तत्व होने के निर्देश दिए थे. जैसे- कैलोरी, प्रोटीन, ऊर्जा आदि निर्धारित मात्रा में होने चाहिए. समूह का आरोप है कि अब जो वर्तमान में पहुंचा है, उसमें निर्धारित मात्रा में पोषक तत्व नहीं है. हालांकि, सरकार का अलग तरीकों का तर्क है. महिला एवं बाल विकास मंत्री ममता भूपेश पहले ही ईटीवी भारत से खास बात में यह कह चुकी हैं. तत्कालीन व्यवस्था की गई है और नेफेड के माध्यम से शुरू कर राशन पहुंचाया गया है. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जहां तक समूह का सवाल है तो प्रदेश में 4 लाख से अधिक समूह गठित है.

क्या होते है स्वयं सहायता समूह

दरअसल, प्रदेश में करीब 4 लाख से महिला स्वयं सहायता समूह है, जिसमें करीब 40 लाख से अधिक महिलाएं अलग-अलग तरह के काम कर रही है. कोई पोषाहार बनाने का तो कोई कसीदे करने का काम कर रहा है. इस एक समूह से 10 परिवारों को संबल मिलता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.