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गंगा मां की महिमा : जब मुस्लिम मूर्तिकार ने कहा था...अब यह मूर्ति नहीं, मेरी मां है

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Published : Jul 3, 2021, 6:32 PM IST

Updated : Jul 3, 2021, 7:17 PM IST

भरतपुर का गंगा महारानी मंदिर अपने स्थापत्य के लिए तो प्रसिद्ध है ही. साथ ही यह मंदिर भारत की गंगा-जमनी तहजीब का भी जीवंत दस्तावेज है. मंदिर में स्थापित गंगा मां की प्रतिमा का निर्माण एक मुस्लिम मूर्तिकार (Muslim sculptor) ने किया था.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
गंगा मां की महिमा

भरतपुर. रियासतकालीन भारत में हमारे देश की गंगा-जमनी तहजीब का स्तर क्या था, यह जानना है तो भरतपुर के गंगा महारानी मंदिर (Ganga Maharani Temple Bharatpur) की यात्रा कीजिए. इस्लाम में बुत परस्ती की मनाही है. लेकिन इस मंदिर में स्थापित गंगा मां की प्रतिमा को एक मुस्लिम मूर्तिकार ने गढ़ा था. मूर्तिकार प्रतिमा के नाक-कान छेदना भूल गया था. महाराजा बृजेंद्र सिंह ने जब कारीगर से इसकी शिकायत की तो मूर्तिकार ने यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि पहले यह मेरे लिए प्रतिमा थी, अब यह मेरी मां है.

भरतपुर का 176 साल पुराना ऐतिहासिक गंगा मंदिर अपनी पवित्रता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खास पहचान रखता है. खास बात यह भी है कि देवस्थान विभाग के अधीन इस मंदिर में गंगा महारानी का अभिषेक सिर्फ गंगाजल से ही होता है. ऐसे में देवस्थान विभाग मंदिर के लिए सालभर के गंगाजल का इंतजाम करता है.

भरतपुर का गंगा महारानी मंदिर : इतिहास यात्रा

मंदिर के लिए 160 किमी दूर सोरोंजी गंगातट (Ganges Beach) से गंगाजल लाया जाता है. उसे मंदिर के टैंक में स्टोर किया जाता है. उसी से गंगा मां का अभिषेक किया जाता है और प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है. यह परंपरा बीते 84 साल से लगातार जारी है.

पढ़ें- उदयपुर में 2 लाख का तोता बना आकर्षण का केंद्र, जानिए क्या है इसमें खास बात

गंगा मां के आशीर्वाद से मिली संतान

मंदिर के पुजारी चेतन शर्मा हमें इतिहास के झरोखे में ले गए. मंदिर के निर्माण को लेकर हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि भरतपुर रियासत के महाराजा बलवंत सिंह को कोई संतान नहीं थी. राजपुरोहित ने उन्हें सलाह दी कि वे गंगा मैया से प्रार्थना कर संतान प्राप्ति की कामना करें. महाराजा बलवंत सिंह हरिद्वार में हर की पौड़ी गए और संकल्प लिया कि अगर उन्हें संतान हुई तो वे अपनी रियासत में गंगा मां का आलीशान मंदिर बनवाएंगे. महाराज बलवंत को जसवंत सिंह के रूप में संतान मिली और भरतपुर को मिला गंगा महारानी का यह भव्य मंदिर.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
भरतपुर नरेश महाराजा बलवंत सिंह

1845 में रखी गई मंदिर की नींव, निर्माण में लगे 90 साल

महाराज बलवंत सिंह पुत्र को पाकर आस्था से भर गए. उन्होंने अपने संकल्प के अनुसार 1845 में मंदिर का निर्माण आरंभ कराया. वे मंदिर को भव्य बनवाना चाहते थे. लिहाजा महाराज के बाद उनकी कई पीढ़ियों ने मंदिर निर्माण का काम जारी रखा. आखिरकार 1937 में महाराजा सवाई बृजेंद्र सिंह ने मंदिर में गंगा प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करवाई.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
90 साल में बनकर हुआ तैयार

मुस्लिम मूर्तिकार की आस्था

पुजारी चेतन शर्मा ने बताया कि गंगा मां की प्रतिमा के नाक और कान छिदे हुए नहीं हैं. लिहाजा उन्हें कुंडल या नथ पहनाने होते हैं तो वे इसके लिए मोम का इस्तेमाल करते हैं. प्रतिमा के नाक-कान छिदे न होने का कारण पूछने पर वे एक ऐसी बात बताते हैं. जिसे सुनकर हम भी उस वक्त की गंगा-जमनी तहजीब के मुरीद हो गए. चेतन शर्मा ने बताया कि प्रतिमा का निर्माण एक मुस्लिम मूर्तिकार ने किया था.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
गंगा महारानी की प्रतिमा

मूर्ति बनने के बाद मूर्तिकार ने महाराज बृजेंद्र सिंह से आग्रह किया कि वे एक बार प्रतिमा को देख लें. महाराज ने प्रतिमा को देखा और गौर करते हुए कहा कि महाशय आप गंगा मां के कान और नाक छेदना भूल गए. मूर्तिकार ने अपनी भूल तो स्वीकारी लेकिन नाक-कान छेदने से इंकार कर दिया. कहा कि पहले यह मेरे लिए एक मूर्ति थी, लेकिन अब तो यह मेरी मां है. अब मैं इनके कान-नाक नहीं छेद सकता.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
शिलालेख पर मंदिर का संक्षित्प इतिहास

पढ़ें - नगरफोर्ट के तालाब में दबे हैं मालवा सभ्यता के अवशेष, तालाब में उत्खनन के लिए मांगी अनुमति

रोजाना गंगाजल से अभिषेक

देवस्थान विभाग के अधीन आने वाले इस मंदिर में गंगा मां का अभिषेक सिर्फ गंगाजल से ही किया जाता है. यह सिलसिला मां की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से लगातार जारी है. मंदिर के लिए सालभर के गंगाजल का बंदोबस्त भी देवस्थान विभाग ही करता है. सोरोंजी के गंगातट से टैंकरों में गंगाजल भरकर लाया जाता है और मंदिर के टैंक में स्टोर किया जाता है. उसी जल से मां का अभिषेक होता है और भक्तों को प्रसाद दिया जाता है. साल भर में करीब 15 हजार लीटर गंगाजल से मां का अभिषेक होता है.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है यह मंदिर

भरतपुर के इस मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ है. पत्थर पर इतनी बारीक नक्काशी देखकर हम हतप्रभ रह गए. यह मंदिर पत्थर के आभूषण की तरह नजर आता है. नागर और द्रविड़ शैली में बने मंदिर की दीवारें, स्तंभ और गुंबद पर की गई कारीगरी बेजोड़ है. आस्था से भरा मन लिये हम इस मंदिर से लौटे.

भरतपुर. रियासतकालीन भारत में हमारे देश की गंगा-जमनी तहजीब का स्तर क्या था, यह जानना है तो भरतपुर के गंगा महारानी मंदिर (Ganga Maharani Temple Bharatpur) की यात्रा कीजिए. इस्लाम में बुत परस्ती की मनाही है. लेकिन इस मंदिर में स्थापित गंगा मां की प्रतिमा को एक मुस्लिम मूर्तिकार ने गढ़ा था. मूर्तिकार प्रतिमा के नाक-कान छेदना भूल गया था. महाराजा बृजेंद्र सिंह ने जब कारीगर से इसकी शिकायत की तो मूर्तिकार ने यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि पहले यह मेरे लिए प्रतिमा थी, अब यह मेरी मां है.

भरतपुर का 176 साल पुराना ऐतिहासिक गंगा मंदिर अपनी पवित्रता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खास पहचान रखता है. खास बात यह भी है कि देवस्थान विभाग के अधीन इस मंदिर में गंगा महारानी का अभिषेक सिर्फ गंगाजल से ही होता है. ऐसे में देवस्थान विभाग मंदिर के लिए सालभर के गंगाजल का इंतजाम करता है.

भरतपुर का गंगा महारानी मंदिर : इतिहास यात्रा

मंदिर के लिए 160 किमी दूर सोरोंजी गंगातट (Ganges Beach) से गंगाजल लाया जाता है. उसे मंदिर के टैंक में स्टोर किया जाता है. उसी से गंगा मां का अभिषेक किया जाता है और प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है. यह परंपरा बीते 84 साल से लगातार जारी है.

पढ़ें- उदयपुर में 2 लाख का तोता बना आकर्षण का केंद्र, जानिए क्या है इसमें खास बात

गंगा मां के आशीर्वाद से मिली संतान

मंदिर के पुजारी चेतन शर्मा हमें इतिहास के झरोखे में ले गए. मंदिर के निर्माण को लेकर हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि भरतपुर रियासत के महाराजा बलवंत सिंह को कोई संतान नहीं थी. राजपुरोहित ने उन्हें सलाह दी कि वे गंगा मैया से प्रार्थना कर संतान प्राप्ति की कामना करें. महाराजा बलवंत सिंह हरिद्वार में हर की पौड़ी गए और संकल्प लिया कि अगर उन्हें संतान हुई तो वे अपनी रियासत में गंगा मां का आलीशान मंदिर बनवाएंगे. महाराज बलवंत को जसवंत सिंह के रूप में संतान मिली और भरतपुर को मिला गंगा महारानी का यह भव्य मंदिर.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
भरतपुर नरेश महाराजा बलवंत सिंह

1845 में रखी गई मंदिर की नींव, निर्माण में लगे 90 साल

महाराज बलवंत सिंह पुत्र को पाकर आस्था से भर गए. उन्होंने अपने संकल्प के अनुसार 1845 में मंदिर का निर्माण आरंभ कराया. वे मंदिर को भव्य बनवाना चाहते थे. लिहाजा महाराज के बाद उनकी कई पीढ़ियों ने मंदिर निर्माण का काम जारी रखा. आखिरकार 1937 में महाराजा सवाई बृजेंद्र सिंह ने मंदिर में गंगा प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करवाई.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
90 साल में बनकर हुआ तैयार

मुस्लिम मूर्तिकार की आस्था

पुजारी चेतन शर्मा ने बताया कि गंगा मां की प्रतिमा के नाक और कान छिदे हुए नहीं हैं. लिहाजा उन्हें कुंडल या नथ पहनाने होते हैं तो वे इसके लिए मोम का इस्तेमाल करते हैं. प्रतिमा के नाक-कान छिदे न होने का कारण पूछने पर वे एक ऐसी बात बताते हैं. जिसे सुनकर हम भी उस वक्त की गंगा-जमनी तहजीब के मुरीद हो गए. चेतन शर्मा ने बताया कि प्रतिमा का निर्माण एक मुस्लिम मूर्तिकार ने किया था.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
गंगा महारानी की प्रतिमा

मूर्ति बनने के बाद मूर्तिकार ने महाराज बृजेंद्र सिंह से आग्रह किया कि वे एक बार प्रतिमा को देख लें. महाराज ने प्रतिमा को देखा और गौर करते हुए कहा कि महाशय आप गंगा मां के कान और नाक छेदना भूल गए. मूर्तिकार ने अपनी भूल तो स्वीकारी लेकिन नाक-कान छेदने से इंकार कर दिया. कहा कि पहले यह मेरे लिए एक मूर्ति थी, लेकिन अब तो यह मेरी मां है. अब मैं इनके कान-नाक नहीं छेद सकता.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
शिलालेख पर मंदिर का संक्षित्प इतिहास

पढ़ें - नगरफोर्ट के तालाब में दबे हैं मालवा सभ्यता के अवशेष, तालाब में उत्खनन के लिए मांगी अनुमति

रोजाना गंगाजल से अभिषेक

देवस्थान विभाग के अधीन आने वाले इस मंदिर में गंगा मां का अभिषेक सिर्फ गंगाजल से ही किया जाता है. यह सिलसिला मां की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से लगातार जारी है. मंदिर के लिए सालभर के गंगाजल का बंदोबस्त भी देवस्थान विभाग ही करता है. सोरोंजी के गंगातट से टैंकरों में गंगाजल भरकर लाया जाता है और मंदिर के टैंक में स्टोर किया जाता है. उसी जल से मां का अभिषेक होता है और भक्तों को प्रसाद दिया जाता है. साल भर में करीब 15 हजार लीटर गंगाजल से मां का अभिषेक होता है.

Ganga Mandir,  Devasthan Department,  Muslim sculptor,  Ganga temple in Bharatpur
स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है यह मंदिर

भरतपुर के इस मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ है. पत्थर पर इतनी बारीक नक्काशी देखकर हम हतप्रभ रह गए. यह मंदिर पत्थर के आभूषण की तरह नजर आता है. नागर और द्रविड़ शैली में बने मंदिर की दीवारें, स्तंभ और गुंबद पर की गई कारीगरी बेजोड़ है. आस्था से भरा मन लिये हम इस मंदिर से लौटे.

Last Updated : Jul 3, 2021, 7:17 PM IST
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