झालावाड़. लॉकडाउन में छोटे-बड़े सभी वर्गों के व्यवसाय बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं. ऐसे में झालावाड़ के विभिन्न क्षेत्रों के कुम्हार परिवारों के लिए बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. साल भर मेहनत करके मटकियां और मिट्टी के बर्तन तैयार करने के बावजूद इनकी बिक्री नहीं हो पा रही है. जिससे इन परिवारों के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है.
कुम्हारों के सामने आर्थिक संकट-
इस लॉकडाउन ने 'गरीबों के फ्रीज' बनाने वाले या यूं कहें कि मिट्टी के बर्तन और मटके बनाने वाले कुम्हार परिवार की कमर तोड़ दी है. एक तो लॉकडाउन की वजह से वे कहीं बाहर मटकियां भी नहीं भेज सकते. दूसरा कोई घर से बाहर ही नहीं निकल रहा है, तो कोई मिट्टी के बर्तन कैसे खरीदेगा. वहीं शादियों में मिट्टी के बर्तनों और मटकों का बड़ी तादाद में इस्तेमाल होता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते महीने भर से शादियां भी नहीं हो पा रही हैं.
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जिले में लॉकडाउन लागू है पर कुम्हारों ने सीजन को देखते हुए स्टॉक में बर्तन बना लिए थे, ऐसे में कुम्हारों को कितनी परेशानी उठानी पड़ रही है. इसको जानने के लिए संवाददाता की टीम जिले विभिन्न क्षेत्रों के कुम्हार मोहल्ले में पहुंची. जहां पर कहीं दर्जनों परिवार रहते हैं, जो मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं. हर सीजन में एक परिवार 700 से 800 मटकियां और मिट्टी के अन्य बर्तन बेचते हैं. वहीं अब तक 10-15 ही मटकियां बिकी है. जिसकी वजह से उनके सामने बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है.
बिक्री न होने से कुम्हार हैं मायूस-
वहीं कुम्हार परिवारों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण से ये सीजन उनके लिए सबसे खराब गुजर रहा है. लॉकडाउन की वजह से ना तो ग्राहक उनके पास आ रहे हैं और ना ही उनके मटकों की बिक्री हो पा रही है. मटकियों की बिक्री के लिए यह सबसे अच्छा सीजन रहता है. वहीं गर्मियों की शुरुआत होते ही लोग मिट्टी के बर्तन खरीदने लगते हैं. ऐसे में पहले से ही स्टॉक में घड़े बनाकर हम रख लेते हैं.
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कुम्हार ने बताया कि इस सीजन में वो अन्य कस्बों और शहरों गांवों ढाणियों में बेचने के लिए भी मटकियां भेजते थे. इस बार वो भी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में साल भर मेहनत करके उन्होंने जो मिट्टी के बर्तन और मटकियां तैयार की थी. उनकी बिक्री नहीं हो पाने के कारण उनका व्यवसाय पूरी तरह से चौपट होने के कगार पर पहुंच गया है. ऐसे में कुम्हारों के सामने अपने परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया है.