टीकमगढ़। जिले के लिधौरा में एक अनोखा मंदिर है, जहां भगवान राम की मूर्ती है, लेकिन उनकी पूजा उनके छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में होती है. टीकमगढ़ जिले से 40 किलोमीटर की दूरी पर विश्व का अनोखा लक्ष्मण जी का मंदिर है. इस मंदिर में भगवान राम लला बिराजमान हैं, लेकिन ये मंदिर उनके नाम से नहीं जाना जाता, जबकि ये मंदिर रामचन्द्र जी के छोटे भाई लक्ष्मण के नाम से विख्यात है. और इस मंदिर में भगवान राम की पूजा लक्ष्मण जी के नाम से होती है.
भगवान राम को लिधौरा के मंदिर में लक्षमण जी के नाम से जाना जाता है. इस मूर्ति का रंग सांवलिया है. जिसे देखने और दर्शनों के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. इस मंदिर के अंदर रामचन्द्र जी के बगल में उनके सेवक पवनपुत्र पंचमुखी रूप में बिराजमान हैं, जो सभी भक्तों के कष्टों का हरण करते हैं. इस मंदिर और मूर्ति को लेकर बुजुर्ग बताते हैं कि 500 साल पहले जब मुगलों का शासन था और मुगल हिन्दू धर्म के मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट कर रहे थे, उसी समय ओरछा में काफी केवट समाज के लोग निवास करते थे और वहीं लोग ओरछा से रामजी की ये मूर्ति पालकी में रखकर लिधौरा लाए थे. इस मूर्ति की स्थापना एक चबुतरे पर की गई थी, और जैसे ही यहां के राजा को पता चला तो उन्होंने राम चन्द्र जी का एक मंदिर बनवाया.
जब केवट समाज के लोग ओरछा से रामचन्द्र जी को लेकर आए थे, केवट समाज की भक्ति से प्रसन्न होकर रामजी ने कहा था कि वो एक शर्त पर उनके साथ चलेंगें कि वो जहां जाएंगे वहां उनकी पूजा उनके छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में होगी. साथ ही उन्होंने कहा था कि उनके मंदिर के पीछे केवट समाज की बस्ती होगी. भगवान राम की शर्त मनाकर केवट समाज के लोग भगवान को लिधौरा लाए थे.
वहीं बुजर्गों का कहना ये भी है कि भगवान राम ने कहा था उनके हर जगह मंदिर हैं, लेकिन लक्ष्मण के नहीं और ओरछा में राजा के रूप में उनकी पूजा होती है, इसलिये यहां पर मेरे नाम की नहीं लक्ष्मण के नाम से मेरी पहचान होगी, और पूजा भी तभी से इस मंदिर को लक्ष्मण जी के मंदिर के नाम से जाना जाता है, और उनके नाम से पूजा की जाती है. जबकि इस मंदिर में भगवान राम बिराजे हुए हैं, लेकिन अभी तक कोई भी इस रहस्य से पर्दा नहीं उठा सका कि आखिरकार ये रामचन्द्र जी यहां पर अपनी पहचान छिपाकर क्यों बिराजमान होना चाहते थे. लिधौरा में आज भी इस मंदिर के पीछे केवट समाज की बस्ती बनी हुई है, जो इस मंदिर के पंडा माने जाते हैं.