सागर। भारत में ब्रिटिश काल की कानून व्यवस्था ऐसी थी कि अपील के लिए लोगों को भारत से 7 हजार मील दूर प्रीवी काउंसिल के लिए जाना होता था, जहां के जज भारतीय संस्कृति और भारतीय सभ्यता को नहीं समझते थे. ऐसी स्थिति में भारतीयों के लिए न्याय नहीं मिल पाता था, भारत में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 के बाद उपनिवेश केंद्रीय विधान सभा का गठन किया गया था, जिसके सदस्य डॉ हरिसिंह गौर नागपुर सेंट्रल से चुनकर बने थे. उन्होंने सबसे पहले उपनिवेश केंद्रीय विधानसभा में 26 मार्च 1921 में भारत में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना का प्रस्ताव रखा था, उनके प्रस्ताव को भारी समर्थन मिला और महात्मा गांधी ने भी उनकी भूरी भूरी प्रशंसा की. भारत के न्यायालयीन इतिहास में डॉ हरिसिंह गौर के लिए सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट की स्थापना का प्रयास करने वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है, डॉ हरिसिंह गौर के योगदान को देखते हुए आज मांग हो रही है कि सुप्रीम कोर्ट के संग्रहालय में उनका पोट्रेट स्थापित किया जाए.
नागपुर सेंट्रल से चुनकर उपनिवेशीय केंद्रीय विधानसभा पहुंचे डॉ हरीसिंह गौर: सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ सर हरिसिंह गौर को भारत रत्न दिलाने के लिए सागर विश्वविद्यालय द्वारा एक भारत रत्न समिति का गठन किया गया था, जिसके सदस्य डॉ संदीप रावत ने डॉ हरिसिंह गौर के योगदान को लेकर काफी शोध किया था और शोध के आधार पर उन्होंने देश की आजादी और भारत की न्याय व्यवस्था के गठन में उनके योगदान पर प्रकाश डाला था. डॉ. संदीप रावत बताते हैं कि, "डॉ हरिसिंह गौर विधायी कार्य में काफी निपुण थे और संसदीय प्रक्रिया कानून के बहुत बड़े ज्ञाता थे. 1919 में जब भारत में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट लागू हुआ और उपनिवेशीय केंद्रीय विधान सभा का गठन किया गया, तो डॉ हरिसिंह गौर नागपुर सेंट्रल से चुने गए थे और लगातार 16 साल तक नागपुर सेंट्रल के सदस्य रहे. पहली बार जब नागपुर सेंट्रल से चुनकर उपनिवेशीय केंद्रीय विधानसभा में पहुंचे, तो उन्होंने 26 मार्च 1921 को केंद्रीय विधानसभा में भारत में सुप्रीम कोर्ट के गठन का प्रस्ताव पेश किया. तब भारत में सुप्रीम कोर्ट की कोई व्यवस्था नहीं थी और भारत के लोगों को अपील के लिए प्रीवी काउंसिल जाना होता था."
डॉ गौर के सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव की प्रशंसा में महात्मा गांधी ने लिखा लेख: डॉ. संदीप रावत बताते हैं कि, "ब्रिटिशकाल में प्रीवी काउंसिल एक ऐसा न्यायालय था, जो भारत से 7 हजार मील दूर था और वहां के अंग्रेज जज हमारी जनता के साथ न्याय नहीं कर पाते थे. चाहे वह क्रिमिनल केस हो या फिर सिविल केस हो, डॉ हरिसिंह गौर ने पहला प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के गठन को लेकर उपनिवेशीय केंद्रीय विधानसभा में रखा था, जिसकी बहुत ज्यादा तारीफ हुई थी और उस प्रस्ताव को लेकर महात्मा गांधी ने एक राष्ट्रीय अखबार में लेख लिखा था, जिसकी प्रतियां उपनिवेशीय केंद्रीय विधानसभा के सदन के अंदर लहराई गई थी. बाद में समाचार पत्र के लेख को विधानसभा की कार्यवाही में शामिल किया गया था, जिसके चलते एक स्थायी रिकॉर्ड हो गया था कि महात्मा गांधी ने भी हरिसिंह गौर के सुप्रीम कोर्ट के गठन के प्रयास की भूरी भूरी प्रशंसा की थी."
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सुप्रीम कोर्ट म्यूजियम में पोट्रेट लगाने की मांग: डॉ. संदीप रावत कहते हैं कि, "मुझे अपनी रिसर्च के दौरान पता चला कि हमारे सुप्रीम कोर्ट ने करीब 20 साल पहले सुप्रीम कोर्ट से लगे तिलक मार्ग पर एक म्यूजियम की स्थापना की है. सुप्रीम कोर्ट के म्यूजियम में एक कमेटी होती है, जिसके सदस्यों की संख्या घटती बढ़ती रहती है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संख्या 36 है और 36 में से 3 जज कमेटी के सदस्य होते हैं, जो यह तय करते हैं कि म्यूजियम में क्या लगाया जाए, क्या नहीं लगाया जाए. सुप्रीम कोर्ट के संग्रहालय में पूर्व न्यायाधीश के पोर्ट्रेट लगे हैं, जब वह अपने मुख्य न्यायाधीश के पोर्ट्रेट लगा सकते हैं तो हम लोगों का मानना है कि डॉ हरिसिंह गौर तो उनके पूर्व पितामह हैं, उनका चित्र लगाने में कोई दिक्कत नहीं होना चाहिए।. इसके लिए हम पहले प्रयास कर चुके हैं और फिर से पत्राचार करेंगे. नए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ भी अकादमिक पृष्ठभूमि से हैं, उन्होंने भी डॉक्टरेट किया है और उन्हें 2 साल का कार्यकाल मिला है, वह हमारी बातों पर जरूर गौर करेंगे."