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'खूटा गाड़े जमीन जोतो आंदोलन' के तहत नुक्कड़ सभा का हुआ आयोजन

पन्ना जिले की गुनौर विधानसभा अंतर्गत कल्दा क्षेत्र के ग्राम पौड़ी कला में आदिवासी वनवासी संगठन के आव्हान पर शासन-प्रशासन के नियमों का पालन करते हुए 'खूटा गाड़े जमीन जोतो आंदोलन' जन जागरण अभियान के तहत नुक्कड़ सभा का आयोजन हुआ.

Nukkad Sabha organized under Jan Jagran Abhiyan
जन जागरण अभियान के तहत नुक्कड़ सभा का हुआ आयोजन
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Published : Aug 7, 2020, 7:24 PM IST

पन्ना। जिले में 1 अगस्त से 9 अगस्त तक 'खूटा गाड़े जमीन जोतो आंदोलन' जारी है. पन्ना जिले के गुनौर विधानसभा अंतर्गत कल्दा क्षेत्र के ग्राम पौड़ी कला में आदिवासी वनवासी संगठन के आव्हान पर शासन-प्रशासन के नियमों का पालन करते हुए 'खूटा गाड़े जमीन जोतो आंदोलन' जन जागरण अभियान के तहत नुक्कड़ सभा का आयोजन हुआ. आयोजन में मुख्य अतिथि आदिवासी संगठन के जिला प्रभारी केपी सिंह बुंदेला रहे और कार्यक्रम की अध्यक्षता धीरज सिंह आदिवासी ने की.

मुख्य अतिथि बुंदेला ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, ये आंदोलन एक अगस्त से नौ अगस्त तक चलेगा. जब तक 2005 के पूर्व वनवासियों के पट्टे नहीं मिल जाते लड़ाई चलती रहेगी. शीघ्र वन भूमि पट्टा नहीं मिलने पर आगे उग्र आंदोलन होगा. कार्यक्रम के अध्यक्ष धीरज सिंह ने बताया कि वर्ष 1973 से पिपरिया गांव के 44 आदिवासी परिवार वन भूमि में काबिज हैं. दावा आवेदन वर्ष 1916 में डाले गए लेकिन दावा आवेदन के मुताबिक वन भूमि अधिकार पत्र नहीं मिले. इसी के चलते आदिवासी उग्र आंदोलन करने के लिए बाध्य हैं.

पन्ना। जिले में 1 अगस्त से 9 अगस्त तक 'खूटा गाड़े जमीन जोतो आंदोलन' जारी है. पन्ना जिले के गुनौर विधानसभा अंतर्गत कल्दा क्षेत्र के ग्राम पौड़ी कला में आदिवासी वनवासी संगठन के आव्हान पर शासन-प्रशासन के नियमों का पालन करते हुए 'खूटा गाड़े जमीन जोतो आंदोलन' जन जागरण अभियान के तहत नुक्कड़ सभा का आयोजन हुआ. आयोजन में मुख्य अतिथि आदिवासी संगठन के जिला प्रभारी केपी सिंह बुंदेला रहे और कार्यक्रम की अध्यक्षता धीरज सिंह आदिवासी ने की.

मुख्य अतिथि बुंदेला ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, ये आंदोलन एक अगस्त से नौ अगस्त तक चलेगा. जब तक 2005 के पूर्व वनवासियों के पट्टे नहीं मिल जाते लड़ाई चलती रहेगी. शीघ्र वन भूमि पट्टा नहीं मिलने पर आगे उग्र आंदोलन होगा. कार्यक्रम के अध्यक्ष धीरज सिंह ने बताया कि वर्ष 1973 से पिपरिया गांव के 44 आदिवासी परिवार वन भूमि में काबिज हैं. दावा आवेदन वर्ष 1916 में डाले गए लेकिन दावा आवेदन के मुताबिक वन भूमि अधिकार पत्र नहीं मिले. इसी के चलते आदिवासी उग्र आंदोलन करने के लिए बाध्य हैं.

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