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गाय के गोबर से बनाई गई भगवान कृष्ण की अकृति, की गई विशेष पूजा अर्चना

पड़वा के दिन महिलाएं गाय के गोबर से घर के मुख्य द्वार पर गोवर्धन पर्वत की आकार की आकृति बनाकर उनकी विधि- विधान से पूजा कर अच्छी फसल की कामना करती हैं.

भगवान कृष्ण की अकृति की महिलाएं करती है पूजा
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Published : Oct 28, 2019, 10:54 PM IST

हरदा। भारत में हर एक त्योहार के पीछे धार्मिक महत्व के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी जुड़ा होता है. ऐसा ही एक त्योहार गोवर्धन पूजा आज भी परंपरागत रूप से मनाया जाता है. कृषि प्रधान हरदा जिले में कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर जिन परिवारों में पशु पालन किया जाता हैं. उन परिवारों की महिलाओं द्वारा गोवंश के गोबर से घर के मुख्य द्वार पर गोवर्धन पर्वत के आकार की आकृति बनाकर विधि- विधान से पूजा की जाती है. महिलाएं अच्छी फसल और क्षेत्र की खुशहाली की कामना करती हैं.

इस परंपरागत पूजन में महिलाओं द्वारा अलग अलग व्यंजनों का भोग लगाकर परिक्रमा की जाती है. वही इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी महत्व रखता है. जिस जगह पर गाय के गोबर से लिपाई पुताई की जाती है. उस स्थान से रेडियम की किरणें पार नहीं होती हैं.

गाय के गोबर के गोवर्धन बनाने से बारिश के दौरान उत्पन्न हुए बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं. इसके लिए यह पूजा धार्मिक के साथ- साथ वैज्ञानिक आधार से भी किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है.

शास्त्रों में गाय, गंगा नदी के समान पवित्र है. मान्यता के अनुसार मूसलाधार बारिश से बचाने भगवान कृष्ण ने सात दिनों तक अपने हाथ पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी.
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं इस परम्परागत पर्व को पूरी आस्था के साथ मनाती हैं, साथ ही अच्छी फसल की कामना भी करती हैं.

हरदा। भारत में हर एक त्योहार के पीछे धार्मिक महत्व के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी जुड़ा होता है. ऐसा ही एक त्योहार गोवर्धन पूजा आज भी परंपरागत रूप से मनाया जाता है. कृषि प्रधान हरदा जिले में कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर जिन परिवारों में पशु पालन किया जाता हैं. उन परिवारों की महिलाओं द्वारा गोवंश के गोबर से घर के मुख्य द्वार पर गोवर्धन पर्वत के आकार की आकृति बनाकर विधि- विधान से पूजा की जाती है. महिलाएं अच्छी फसल और क्षेत्र की खुशहाली की कामना करती हैं.

इस परंपरागत पूजन में महिलाओं द्वारा अलग अलग व्यंजनों का भोग लगाकर परिक्रमा की जाती है. वही इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी महत्व रखता है. जिस जगह पर गाय के गोबर से लिपाई पुताई की जाती है. उस स्थान से रेडियम की किरणें पार नहीं होती हैं.

गाय के गोबर के गोवर्धन बनाने से बारिश के दौरान उत्पन्न हुए बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं. इसके लिए यह पूजा धार्मिक के साथ- साथ वैज्ञानिक आधार से भी किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है.

शास्त्रों में गाय, गंगा नदी के समान पवित्र है. मान्यता के अनुसार मूसलाधार बारिश से बचाने भगवान कृष्ण ने सात दिनों तक अपने हाथ पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी.
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं इस परम्परागत पर्व को पूरी आस्था के साथ मनाती हैं, साथ ही अच्छी फसल की कामना भी करती हैं.

Intro:भारत में हर एक त्योहार के पीछे धार्मिक महत्व के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी जुड़ा होता है।जिससे लोगों के द्वारा परंम्परा रूप से इन पर्वो को आज तक मनाया जा रहा है।मध्यप्रदेश के कृषि प्रधान हरदा जिले में कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर जिन परिवारों में पशु पालन किया जाता हैं।उन परिवारों की महिलाओं के द्वारा गोवंश मवेशियों के गोबर से घर के मुख्य द्वार पर गोवर्धनपर्वत के आकार की आकृति बनाकर उनकी विधि विधान से पूजा कर अच्छी फसल ओर क्षेत्र की खुशहाली की कामना की जाती है।इस परंपरागत पूजन में महिलाओं के द्वारा अलग अलग व्यंजनों का भोग लगाकर परिक्रमा की जाती है।


Body:उधर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर गोवर्धन यानी गायों का सवंर्धन इसी से जुड़ा है।जिस स्थान पर गाय के गोबर से लिपाई पुताई की जाती है।उस स्थान से रेडियम की किरणें पार नही होती।गाय के दूध और गोमूत्र में स्वर्ण भी निकलता है।वही गोबर के गोबर्धन बनाने से बारिश के दौरान उत्पन्न हुए बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते है।इसके लिए यह पूजा धार्मिक के साथ साथ वैज्ञानिक आधार से किसी संजीवनी बूटी से कम नही है।वही शास्त्रों में गाय गंगा नदी के समान पवित्र होती है।मान्यता के अनुसार मूसलाधार बारिश से बचाने भगवान कृष्ण ने सात दिनों तक अपने हाथ पर रखकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी।


Conclusion:जिलामुख्यालय सहित ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं ने इस परम्परागत पर्व की पूरी आस्था के साथ मनाया गया।वही अच्छी फसल होने को लेकर भी कामना की गई।
बाईट- अंजली शर्मा

बाईट-अनिता बादर
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