हरदा। भारत में हर एक त्योहार के पीछे धार्मिक महत्व के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी जुड़ा होता है. ऐसा ही एक त्योहार गोवर्धन पूजा आज भी परंपरागत रूप से मनाया जाता है. कृषि प्रधान हरदा जिले में कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर जिन परिवारों में पशु पालन किया जाता हैं. उन परिवारों की महिलाओं द्वारा गोवंश के गोबर से घर के मुख्य द्वार पर गोवर्धन पर्वत के आकार की आकृति बनाकर विधि- विधान से पूजा की जाती है. महिलाएं अच्छी फसल और क्षेत्र की खुशहाली की कामना करती हैं.
इस परंपरागत पूजन में महिलाओं द्वारा अलग अलग व्यंजनों का भोग लगाकर परिक्रमा की जाती है. वही इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी महत्व रखता है. जिस जगह पर गाय के गोबर से लिपाई पुताई की जाती है. उस स्थान से रेडियम की किरणें पार नहीं होती हैं.
गाय के गोबर के गोवर्धन बनाने से बारिश के दौरान उत्पन्न हुए बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं. इसके लिए यह पूजा धार्मिक के साथ- साथ वैज्ञानिक आधार से भी किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है.
शास्त्रों में गाय, गंगा नदी के समान पवित्र है. मान्यता के अनुसार मूसलाधार बारिश से बचाने भगवान कृष्ण ने सात दिनों तक अपने हाथ पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी.
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं इस परम्परागत पर्व को पूरी आस्था के साथ मनाती हैं, साथ ही अच्छी फसल की कामना भी करती हैं.